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विकास जा रहा विनाश की ओर

रोटी, कपड़ा और मकान इंसान की सबसे बड़ी जरूरतें हैं. इन जरूरतों ने ही विकास की अवधारणा को आगे बढ़ाया है. लेकिन विकास की मखमली पगडंडी विनाश की कंटीली झाड़ियों में जाती है. कुओं से भागता पानी और चिमनियों से निकलता कार्बन तबाही की मिसाल हैं. विकास की तलाश में भागती दुनिया ने घुमक्कड़ी को […]

रोटी, कपड़ा और मकान इंसान की सबसे बड़ी जरूरतें हैं. इन जरूरतों ने ही विकास की अवधारणा को आगे बढ़ाया है. लेकिन विकास की मखमली पगडंडी विनाश की कंटीली झाड़ियों में जाती है. कुओं से भागता पानी और चिमनियों से निकलता कार्बन तबाही की मिसाल हैं. विकास की तलाश में भागती दुनिया ने घुमक्कड़ी को भी कारोबार बना दिया है.

नजारों को नयी शक्ल देकर रोजगार की नयी खिड़की खोलने की लगातार कोशिश हो रही है. वहीं, कई शहरों में सैर-सपाटे की भीड़ ने मुसीबत के दरवाजे खोल दिये हैं. सुना है कई मुल्कों में सैलानियों की भीड़ बेकाबू होने लगी है. सनद रहे कि इस बढ़ते बोझ का खामियाजा कुदरत हमें ही सूद सहित वापस करनेवाली है. आश्चर्य नहीं कि एक दिन यह भीड़ भस्मासुर बन कर हमारे सामने खड़ी हो और हम चीखते-चिल्लाते रह जाएं.

एमके मिश्रा, रातू

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