प्रेम की वापसी
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com कितने दिन हुए जब आपने कोई मधुर धुन वाला नया प्रेमगीत सुना हो. कोई प्रेम कविता, कोई कहानी, कोई ऐसा उपन्यास, जिसमें प्रेम की कोमलतम अनुभूतियां हों. हमारे समाज में जितनी हिंसा बढ़ी है या मामूली बातों पर जान ली-दी जा रही है. ऐसे में यदि किसी बात की सर्वाधिक […]
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
kshamasharma1@gmail.com
कितने दिन हुए जब आपने कोई मधुर धुन वाला नया प्रेमगीत सुना हो. कोई प्रेम कविता, कोई कहानी, कोई ऐसा उपन्यास, जिसमें प्रेम की कोमलतम अनुभूतियां हों. हमारे समाज में जितनी हिंसा बढ़ी है या मामूली बातों पर जान ली-दी जा रही है. ऐसे में यदि किसी बात की सर्वाधिक जरूरत है, तो वह प्रेम ही है.
लेकिन, अधिकारवाद के सामने प्रेम की क्या औकात. नफरत, लड़ाई, कांइयापन, चतुराई, दूसरे की पीठ पीछे इतनी निंदा कि वह संसार का सबसे बड़ा खलनायक और सामने इतनी तारीफ कि वह नायक दिखे.
मध्यवर्ग के इस चलन में बेचारा प्रेम और समर्पण कहां जगह पा सकता है. वह इन दिनों पिछड़े विचारों के खाते में है. वैसे भी मध्यवर्ग की फेसबुक और टिकटाॅक पीढ़ी प्रेम को कुछ इस रूप में देखती है कि आज जिससे प्रेम है, जरूरी नहीं कि कल भी वह बना रहे. ऐसे में भला कौन है, जो इस गाने को पसंद करे कि- न ये चांद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे.
सच तो यह है कि हमारे समाज में प्रेम बहुतायत में हिंदी फिल्मों के जरिये आया. इसलिए चार-पांच दशक पहले माता-पिता लड़के-लड़कियों को फिल्में देखने से रोकते थे कि कहीं वे इन्हें देख कर प्रेम करना न सीख जायें और माता-पिता इस क्षेत्र में दखलंदाजी करने लगें.
अगर खबरों पर ध्यान दें, तो प्रेम इन दिनों वहां पल रहा है, जहां दो जून की रोटी के लिए संघर्ष है. और प्रेम की पजेसिवनेस ऐसी कि मार दूंगा/दूगीं या मर जाऊंगा/जाऊंगी. मध्यवर्ग का युवा तो प्रेम के बजाय करियर या अधिकारवाद में उलझा है. सब किसी से कुछ न कुछ मांग रहे हैं. न मिले तो देख लेने और सर्वनाश करने की धमकी दे रहे हैं.
समानता के अधिकारवाद से इतर, प्रेम से ज्यादा समानतावादी दूसरा कोई और नहीं है. जहां स्त्री यदि पुरुष का इंतजार कर रही है, तो पुरुष भी स्त्री का इंतजार कर रहा है. दिलचस्प यह भी है कि प्रेम की जिस अमरता की बात की जाती है, वह अकसर इकतरफा प्लेटोनिक होता है.
वही हमेशा यादों में रहता है और जिंदा रहता है. लेकिन, आज जहां शरीर को प्रेम का पर्याय बना दिया गया है, ऐसे में यदि प्लेटोनिक लव के बारे में बात की जाये, तो एक नंबर का पिछड़ा हुआ और समय के साथ न चलनेवाला समझा जायेगा.
वैसे भी, जब इस दौर में पाठ यह पढ़ाया जा रहा हो कि स्त्री पुरुष की दुश्मन है और पुरुष स्त्री का दुश्मन है, ऐसे में प्रेम की बात कौन करे. कौन उन गानों के बारे में सोचे, जिनकी उम्र इतनी लंबी है कि दशकों पहले लिखे गये थे, लेकिन आज भी बहुत अच्छे लगते हैं, अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के कारण.
जहां किसी को देख लेना, किसी से एक बार मिल लेना ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हुआ करती है. आज के गाने तो आज आते हैं और अगले ही पल न जाने कहां गायब हो जाते हैं. वे किसी को याद भी नहीं रहते. तो पुराने गानों के जरिये ही सही, हमारे जीवन में प्रेम की वापसी होनी चाहिए.