निजीकरण से विकास संभव नहीं
भारत विकसित देशों की पंक्ति में अपना स्थान बनाने को आतुर है. विकसित देश भी भारत की विशाल अर्थव्यवस्था और विस्तृत बाजार को ललचाई निगाहों से देख रहे हैं. इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव तो अवश्यंभावी है, परंतु हमारी विकास की गाड़ी त्वरित गति से गतिमान है. लेकिन, सरकार विकसित अर्थव्यवस्था के सपने में खोयी […]
भारत विकसित देशों की पंक्ति में अपना स्थान बनाने को आतुर है. विकसित देश भी भारत की विशाल अर्थव्यवस्था और विस्तृत बाजार को ललचाई निगाहों से देख रहे हैं. इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव तो अवश्यंभावी है, परंतु हमारी विकास की गाड़ी त्वरित गति से गतिमान है.
लेकिन, सरकार विकसित अर्थव्यवस्था के सपने में खोयी हुई अपने नीतियों से भटक रही है. अपने सरकारी तंत्र की कमियों को छुपाने की चाह में निजीकरण को बढ़ावा देने की नीति तर्कसंगत नहीं है. भारत एक लोकतांत्रिक सामाजिक समरसता की एक अद्भुत मिसाल वाला देश है, यह पूंजीवादी देश नहीं है.
निजी हाथों में व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण हो सकता है, परंतु जनता के हित के बजाय कुछ मुट्ठी भर लोगों की जेबें ही गर्म होंगी. देश के कुछ राज्यों में प्राथमिक शिक्षा को निजी हाथों में दे दिया जाना कदापि उचित नहीं है. निजीकरण से विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता. लोकतंत्र में जनता के बहुमूल्य वोट सिर्फ सरकार बनाकर अपनी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि करना नहीं, बल्कि अपने पुरुषार्थ पर जनता की भलाई करना होता है.
देवेश कुमार, गिरिडीह