मौलाना आजाद की शिक्षा नीति
प्रो एमजे वारसी भाषावैज्ञानिक, एएमयू warsimj@gmail.com आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्मदिन हर साल 11 नवंबर को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. किसी देश-समाज के विकास के लिए शिक्षा जरूरी तत्व है. शिक्षा के बिना तरक्की संभव नहीं है. दुनिया के कई देशों में भारतवासियों […]
प्रो एमजे वारसी
भाषावैज्ञानिक, एएमयू
warsimj@gmail.com
आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्मदिन हर साल 11 नवंबर को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. किसी देश-समाज के विकास के लिए शिक्षा जरूरी तत्व है. शिक्षा के बिना तरक्की संभव नहीं है. दुनिया के कई देशों में भारतवासियों ने अपनी बेहतर शिक्षा की वजह से ही अपना ऊंचा मकाम बनाया है.
आज अगर दुनिया में एक मजबूत, प्रगतिशील और लोकतांत्रिक देश के रूप में हमारी छवि पुख्ता हुई है, तो इसमें शिक्षा का भी बड़ा हाथ है. शिक्षा उन्नति, प्रगति, उत्पादन, विकास और स्वास्थ्य रक्षा का मुख्य आधार है. आज की नयी पीढ़ी को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना बहुत जरूरी है.
शिक्षा से व्यक्तित्व का विकास होता है तथा छात्र जीवन विकास का सर्वश्रेष्ठ समय है. भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे और पत्रकार भी थे. उनकी पत्रकारिता उनके राष्ट्रप्रेम और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के प्रति उनके दृढ़ विश्वास की प्रतीक थी. मौलाना आजाद ने ही सर्वप्रथम ‘शिक्षा को जन्मसिद्ध अधिकार’ कहा था.
मौलाना अबुल कलाम आजाद के पौत्र फिरोज बख्त अहमद उनके बारे में लिखते हैं- ‘कट्टरपंथी मुल्लाओं से वे बहुत दूर रहना चाहते थे. इस्लामी शिक्षा को मौलाना आजाद ने एक नयी दिशा दी.
उन्होंने इस्लाम की देशभक्ति और भारत के सांप्रदायिक सौहार्द का समन्वय बिठाकर एक सर्वधर्म समभाव वाली सभ्यता का निर्माण किया. बतौर शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद ने आईसीसीआर, आईसीएसआर, यूजीसी, तकनीकी विज्ञान के संस्थानों आदि की नींव रखी. आज के भारत में शिक्षा का विस्तार मौलाना आजाद की शिक्षा नीति की ही देन है.’
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तो मौलाना आजाद को इल्म का बादशाह कहते थे. मौलाना आजाद ने ही पहली बार भारत में शिक्षा नीति की नींव डाली थी. उन्होंने वर्षों पहले जो सपना देखा था, वह एक अप्रैल, 2010 को साकार हुआ और ‘शिक्षा का अधिकार’ के रूप में देश में शिक्षा बच्चों का बुनियादी अधिकार बना.
मौलाना आजाद की सोच को ही शिक्षा का अधिकार कानून को अमल में लाने का श्रेय जाता है. उन्होंने इस सपने को साकार करने के लिए शिक्षा मंत्री के होते ही अपने विचार व्यक्त किये थे, लेकिन इसे लागू करने में वर्षों लग गये. आज देश में फैला शिक्षा का प्रचार और सर्व शिक्षा अभियान इसी का परिणाम है.
सूचना प्रौद्योगिकी के युग में संपूर्ण विश्व तेजी से एक वैश्वीकृत ग्राम (ग्लोबल िवलेज) का रूप धारण करता जा रहा है. इस बदलाव ने मानव समाज के सामने अनेक चुनौतियों को उत्पन्न किया है. हमारा समाज भी इन चुनौतियों से अछूता नहीं है. परंपरागत मूल्यों एवं मान्यताओं में परिवर्तन का प्रभाव शिक्षा तथा विशेष रूप से उच्च शिक्षा पर पड़ा है.
शिक्षा मानव व्यक्तित्व के निर्माण में विनियोजन, तथा व्यक्ति के माध्यम से समाज एवं राष्ट्र-निर्माण एवं विकास की आधारशिला है. आज ज्ञान-विज्ञान तथा वैश्वीकरण के इस दौर में एक शक्तिशाली एवं विकसित राज्य बिहार के निर्माण में सर्वाधिक निर्णायक भूमिका शिक्षा जगत की ही होगी. इन उच्च आदर्शों की पूर्ति के लिए यह जरूरी है कि समाज के हर आयु वर्ग को बेहतरीन शिक्षा दी जाये.
हमारे सामने प्रेरणा स्वरूप नारायण मूर्ति का उदाहरण मौजूद है. मात्र 120 रुपये वेतन से नौकरी की शुरुआत करनेवाले नारायण मूर्ति दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी इन्फोसिस का मालिक बनकर आज ढाई लाख लोगों को रोजगार दे रहे हैं. आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की मदद से सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक असंतुलन को कम करने के प्रयास करने होंगे.
लोक कल्याण के निमित्त प्राथमिकता के आधार पर अविकसित तथा पिछड़े क्षेत्रों में विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों की स्थापना करनी होगी. शासन का प्रयास यह होना चहिए कि बदलते परिवेश में समाज का संतुलित विकास एवं उसके विभिन्न अंगो के बीच पारस्परिक सामंजस्य की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए उच्च शैक्षणिक संस्थाओं के गुणात्मक विकास पर बल दिया जाये, ताकि विकसित राज्य के निर्माण के लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके.
विज्ञान की प्रगति का प्रभाव अब गांव में भी ले जाना आवश्यकता है, ताकि किसान कृषि अनुसंधान की जानकारी मोबाइल से पा सकें और पंचायत में लगे इंटरनेट से अपनी खातेदारी की नकल पा सकें. मौलाना आजाद ने जो सच्चे और वास्तविक राष्ट्र की कल्पना की थी, उसकी सही तस्वीर हमारे सामने अच्छी शिक्षा से ही आ सकेगी.
समय के साथ तकनीक और संसाधन जरूर बदले हैं, परंतु सबका मुख्य उद्देश्य समाज का विकास करना ही है. यह विश्वास है कि भारत अध्ययनशील समाज के रूप में मानव संसाधन के क्षेत्र में एक शक्तिशाली राष्ट्र बन जायेगा और साथ ही पूरे देश में अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा.
स्कूल, विद्यालय या महाविद्यालय का मतलब सिर्फ क्लासरूम नहीं होता. ये वही मंच होते हैं, जहां सभी धर्मों के बच्चे साथ मिलकर ठहाका लगा सकते हैं और बिना भेदभाव के साथ बैठकर खाना खा सकते हैं. इससे उनके पूर्वाग्रह टूटते हैं.
आज शिक्षा दिवस पर हमें साक्षरता की दर में वृद्धि का संकल्प लेना चाहिए और बीच में पढ़ाई छोड़कर जानेवाले बच्चों को पुनः शिक्षा से जोड़ने का दायित्व निभाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि सभी बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें. महान शिक्षाविद मौलाना आजाद को यही हमारी श्रद्धांजलि होगी!