आयोग को सशक्त बनाया शेषन ने

एसवाई कुरैशी पूर्व चुनाव आयुक्त delhi@prabhatkhabar.in चुनाव आयोग देश की एक ऐसी जिम्मेदार संस्था है, जिस पर लोकतंत्र की बहुत-सी बुनियादी बातें निर्भर करती हैं. यह आयोग ही है, जो जनता के लिए उसी के जरिये उनका अपना प्रतिनिधि चुनने में मददगार होता है. जाहिर है, ऐसी संस्था का मजबूत और निष्पक्ष होना बहुत जरूरी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2019 7:47 AM

एसवाई कुरैशी

पूर्व चुनाव आयुक्त

delhi@prabhatkhabar.in

चुनाव आयोग देश की एक ऐसी जिम्मेदार संस्था है, जिस पर लोकतंत्र की बहुत-सी बुनियादी बातें निर्भर करती हैं. यह आयोग ही है, जो जनता के लिए उसी के जरिये उनका अपना प्रतिनिधि चुनने में मददगार होता है. जाहिर है, ऐसी संस्था का मजबूत और निष्पक्ष होना बहुत जरूरी है, जो जन-अधिकारों को मजबूत बनाती है. दुनिया के किसी भी देश में चुनाव आयोग जितना ही निष्पक्ष और मजबूत होगा, वहां का लोकतंत्र और उसकी जनता दोनों उतना ही मजबूत होंगे.

ऐसे में, जाहिर है कि इस संस्था का आयुक्त भी मजबूत इच्छाशक्ति वाला तथा लोकतांत्रिक आकांक्षाओं और अधिकारों को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेनेवाला होना चाहिए. एक चुनाव आयुक्त का सशक्त होना बहुत जरूरी है और यह भी कि उसमें इस बात की क्षमता हो कि वह जिम्मेदारी के साथ संवैधानिक नियमों का पालन करे और अपने तहत आनेवाले सभी कनिष्ठ अधिकारियों से पालन भी करवाये. इस मामले में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन एक मिसाल हैं.

चुनाव आयोग की जो विश्वसनीयता, दर्शनीयता और जिम्मेदारियां संविधान में निहित हैं, उन सबका अपने कार्यकाल में उन्होंने अच्छी तरह से निर्वाह किया और लोकतंत्र को एक नयी ऊंचाई पर ले गये. यही वजह है कि आज उनके जाने के बाद हम उन्हें शिद्दत से याद कर रहे हैं और उनके किये कामों को वर्तमान समय के लिए प्रासंगिक मान रहे हैं.

जिस जमाने में हमने आयोग का काम संभाला था, उस वक्त संस्था की जो स्थिति थी, उसके लिए हमें टीएन शेषन साहब का ही शुक्रगुजार होना पड़ेगा कि हम सब अधिकारियों को उन्होंने एक सशक्त राह बनाकर दी थी. उनके बनाये रास्ते पर चलकर ही हमने चुनाव आयोग को और उसके अधिकार को यथावत बनाये रखा.

आयोग को बहुत सारे अधिकार हैं और उसकी शक्तियां भी हैं. संस्था को ताकतवर और विजिबल यानी आम जनमानस के बीच एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक संस्था बनानेवाले शेषन ही थे. इससे पहले किसी ने आयोग को इतना महत्वपूर्ण नहीं बनाया था. या यूं कह लें कि उनसे पहले किसी ने अपने उन अधिकारों का उपयोग ही नहीं किया, जो उसे संविधान से प्राप्त थे. उन्होंने चुनाव आयुक्त के पद को जो ऊंचाई प्रदान की है, वह किसी मिसाल से कम नहीं है.

यह उनकी ही देन है कि हिंदुस्तान के चुनाव बेहद साफ-सुथरे होने लग गये. मतदान केंद्रों पर कब्जा व हिंसा पर जबरदस्त तरीके से नियंत्रण पा लिया गया, जो उनके पहले के जमाने में बहुत ही मुश्किल था. पहले की कमियों पर लगाम लगाकर आयोग के भरोसे को साबित किया जा सकता था. यह शेषन का सबसे बड़ा योगदान है.

सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी लोकतंत्र के लिए शेषन साहब जैसा चुनाव आयुक्त होना बहुत जरूरी है. संविधान ने तो चुनाव आयोग को स्वायत्त और स्वतंत्र बनाया ही था, लेकिन उनसे पूर्व जो चुनाव आयुक्त रहे, वे सभी सिर्फ नाम के वास्ते ही चुनाव आयुक्त रहे. चुनाव आयोग को उसके वास्तविक स्वरूप में शेषन साहब ने ही बदला. इसे शक्तिशाली बनाने का श्रेय उन्हीं को ही जाता है. इस एतबार से हमेशा ही हमारे देश को टीएन शेषन की कमी खलती रहेगी.

आजकल का जो माहौल है, उस माहौल में तो उनकी कमी और भी खलती है. अक्सर उनसे मेरी मुलाकात होती थी और हम विभिन्न विषयों पर खूब बातें करते थे. चुनाव आयोग की शक्तियों को लेकर समीक्षाएं होती थीं.

यह मेरा सौभाग्य ही है कि मैंने उनके अधीन काफी काम किया है. मैंने यह महसूस किया है कि एक नौकरशाह के तौर पर उनके काम करने के तरीके में काफी स्पष्टता थी. वे कभी भी भेदभाव वाली चीजों को अपने पास नहीं फटकने देते थे. निर्णय लेने की उनकी क्षमता जबरदस्त थी.

इसलिए जिस बात का वह निर्णय ले लेते थे, उसे लागू करके ही दम लेते थे. दरअसल वे किसी भी काम को लेकर पूरी जवाबदेही चाहते थे. उनका मानना था कि जिस व्यक्ति को जो काम सौंपा गया है, उसे वह हर हाल में पूरा करना ही चाहिए और बड़ी ईमानदारी से पूरा करना चाहिए. जाहिर है, ऐसा अधिकारी भ्रष्टाचार को कहां बरदाश्त कर पायेगा! इसलिए उनके जमाने में भ्रष्ट लोगों की दाल नहीं गलती थी, क्योंकि वे बहुत ही निडर भी थे.

उन्हें संविधान के आधार पर चलने में एक तरह से आनंद आता था, जो लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है. बतौर नौकरशाह उनका जो प्रदर्शन रहा, वह बहुत शानदार था. वे खुद भी समय के पक्के थे और साथ के अन्य अधिकारियों से उम्मीद रखते थे कि सब समय का ध्यान रखें.

यही वजह है कि उनके कार्यकाल के दौरान किसी को भी दफ्तर में एक मिनट भी देर से आने की छूट नहीं थी. अगर कोई देर से आया भी, तो उससे कारण पूछा जाता था. चुनाव सुधार तो निरंतर जारी रहनेवाली प्रक्रिया है. इस मामले में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है.

बहुत से चुनाव सुधार तो टीएन शेषन ने ही किये हैं. उनके बाद भी कई सुधार हुए हैं. शेषन का सबसे बड़ा चुनाव सुधार था मतदाता पहचान पत्र, जिसकी वजह से फर्जी मतदान में बड़ी कमी आयी और जनता को सही प्रतिनिधि को मत देने का अधिकार मिला. उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि चुनाव आयोग के अधिकारों का पूरा-पूरा सम्मान किया जाये.

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