ग्लासगो में शर्मिदगी से सबक ले सरकार
ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में चल रहे कॉमनवेल्थ खेलों से भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन की खबरों के बीच दो वरिष्ठ भारतीय खेल अधिकारियों की गिरफ्तारी से खेलप्रेमियों को बेहद निराशा हुई है. भारतीय ओलिंपिक संघ के महासचिव राजीव मेहता को नशे में धुत होकर गाड़ी चलाने और कुश्ती के रेफरी विरेंदर मलिक को यौन […]
ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में चल रहे कॉमनवेल्थ खेलों से भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन की खबरों के बीच दो वरिष्ठ भारतीय खेल अधिकारियों की गिरफ्तारी से खेलप्रेमियों को बेहद निराशा हुई है.
भारतीय ओलिंपिक संघ के महासचिव राजीव मेहता को नशे में धुत होकर गाड़ी चलाने और कुश्ती के रेफरी विरेंदर मलिक को यौन हमले के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. हालांकि ये दोनों आधिकारिक 215 सदस्यीय भारतीय दल में शामिल नहीं हैं, पर आयोजन में उनकी उपस्थिति बतौर भारतीय है, इसलिए उनकी हरकतें देश के लिए शर्मनाक हैं.
इस घटना ने हमें फिर से उन मसलों की ओर देखने के लिए मजबूर किया है, जिनकी वजह से भारत खेल प्रतिभाओं एवं संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर पिछड़ा हुआ है. यह किसी से छिपा नहीं है कि खेल के वर्तमान व भविष्य के लिए जिम्मेवार खेल संघों पर कुछ प्रभावशाली राजनेता और नौकरशाह काबिज हैं. संघों की अक्षमता तथा अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार, यौन शोषण, पक्षपात आदि के आरोप नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाते हैं.
खेल संघों व संस्थानों के निम्न दर्जे के प्रबंधन और अनियमितताओं को रोकने के लिए एक निगरानी संस्था बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए विगत शुक्रवार को दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि यह सरकारों की जिम्मेवारी है. दुर्भाग्य है कि 1982 से एक विभाग और 2000 से एक मंत्रलय के रूप में काम कर रहा खेल मंत्रलय संबद्ध खेल संघों और संस्थानों पर समुचित नियंत्रण स्थापित नहीं कर सका है. पिछले वर्ष मंत्रलय ने कहा था कि यौन शोषण के आरोपितों पर कठोर कार्रवाई होगी, पर कोई ठोस पहल नहीं हुई. भविष्य की आशंका से भयभीत पीड़ित अधिकतर मामलों में चुप रह जाते हैं. खेल माफिया इतने ताकतवर हैं कि उन्होंने 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार के आरोपितों को भारतीय ओलिंपिक संघ से बाहर रखने के अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के निर्देश को भी नहीं माना था. समिति द्वारा भारत को ओलिंपिक से बाहर रखने की धमकी के बाद इस पर अमल हुआ. अब जरूरी हो गया है कि खेल मंत्रालय भारत में खेलों के संचालन के लिए एक आचार-संहिता बनाये और उसे ईमानदारी से लागू करे.