शराफत कम नहीं हुई है दुनिया से
मंगलवार की सुबह एक बुरी खबर से नींद टूटी. खबर मिली कि औरंगाबाद में एक सड़क हादसे में 10 कांवरियों की मौत हो गयी है. मैंने तुरंत नींद को तिलांजलि दी और अखबार की वेबसाइट पर खबर अपडेट करायी. सोचा कि जब जग ही गया हूं, तो पत्नी को फोन कर लूं. फोन किया, तो […]
मंगलवार की सुबह एक बुरी खबर से नींद टूटी. खबर मिली कि औरंगाबाद में एक सड़क हादसे में 10 कांवरियों की मौत हो गयी है. मैंने तुरंत नींद को तिलांजलि दी और अखबार की वेबसाइट पर खबर अपडेट करायी. सोचा कि जब जग ही गया हूं, तो पत्नी को फोन कर लूं. फोन किया, तो उसने आश्चर्य से पूछा, ‘‘तबीयत तो ठीक है न?’’ मैंने कहा, ‘‘यों ही नींद टूट गयी थी, सो फोन कर लिया.’’ पत्नी ने कहा, ‘‘आपका कुछ समझ नहीं आता है.’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘मैं दिल में आता हूं, समझ में नहीं. उसने कहा कि लगता है ‘किक’ का बुखार आप पर भी चढ़ गया है. इसी बीच, अखबार के मुख्यालय से फोन आने लगा. घटनास्थल की तसवीर के लिए. मैंने सोचा, अब सात बजे तसवीर कहां से भेजूं. लोकल ऑफिस बंद होगा. साइबर कैफे भी खुले नहीं होंगे.
खैर, संयोग से एक कैफे खुला मिल गया. वहां पहुंचा, तो कैफेवाले ने पहचान पत्र मांगा. मेरी जेब में 10 के दो नोट के अलावा कुछ नहीं था. मैंने कहाकि जल्दी में आ गया. वह मानने को तैयार नहीं. मैंने परिचय दिया, तो अड़ गया. बोला, ‘‘भाई साहब! कुछ दिन पहले आप ही के अखबार में साइबर कैफे को लेकर खबर छपी थी. कायदे-कानून बताये गये थे.’’ मेरी हिम्मत नहीं हुई, यह बताने कि वह खबर मैंने ही लिखी थी. खैर, मेरी तत्काल जरूरत को महसूस कर वह मान गया. काम निबटाने के बाद संतोष था, मगर छुट्टी में देर तक सोने का प्लान तो चौपट हो ही गया था. इसी बीच, एक परिचित मुङो लेने मेरे घर आ गये.
रास्ते में जीवन के फलसफे के बारे में उन्होंने इतना बताया कि मेरा सोच अचानक बदल गया. मेरे अंदर शालीनता और शराफत का सोता फूट पड़ा. उनके घर से निकलते-निकलते शाम के सात बजे गये. तेज बारिश में वह मुङो घर तक छोड़ने आये. उनके जाने के बाद मैं बाजार गया. बरसात के बाद मेरे शहर की सड़कों का हाल, वह भी सब्जी मंडी में, पूछिए मत. किसी तरह सब्जी लेकर निकला. चौराहे पर एक बाइकवाले से हल्की सी टक्कर हो गयी. उसकी उम्र 15 से ज्यादा नहीं रही होगी. मेरी चप्पल से उसकी पैंट में मिट्टी लग गयी. गलती उसकी थी, लेकिन शराफत दिखाते हुए मैंने ही माफी मांग ली. वह भी शराफत पर उतर आया. कहा-‘‘कोई बात नहीं, आपने जान-बूझ कर मिट्टी तो लगायी नहीं.’’ बात यहीं खत्म नहीं हुई. उसने पूछा, ‘‘भइया, आपको जाना कहां है? चलिए मैं छोड़ देता हूं.’’ उसने मुङो घर तक छोड़ा. घर के बाहर पड़ोसी के बेटे से मुलाकात हो गयी. वह बैंक मैनेजर हैं. नमस्ते किया, तो बोले, ‘‘और पांडेयजी, ईद की छुट्टी मना रहे हैं.’’ मैंने कहा, ‘‘नहीं सर, साप्ताहिक छुट्टी पर हूं.’’ बोले, ‘‘आइए, कुछ देर बैठते हैं.’’ मैंने काम का बहाना बना कर उनसे माफी मांगी. उन्होंने बड़े अदब से फिर कभी आने का न्योता दिया. इतने लोगों से मुलाकात के बाद मुङो लगा कि अभी मुङो और सभ्य होने की जरूरत है.
अजय पांडेय
प्रभात खबर, गया
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