डायबिटीज का चंगुल

हमारे देश में डायबिटीज (मधुमेह) का शिकार होने की उम्र लगातार घट रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय, यूनिसेफ व पॉपुलेशन काउंसिल द्वारा जारी राष्ट्रीय पोषण सर्वे के अनुसार, 10 फीसदी बच्चों और किशोरों के खून में सुगर की मात्रा सामान्य से अधिक है. यह मात्रा टाइप-2 डायबिटीज से कम होती है और खान-पान व जीवन-शैली में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2019 6:13 AM

हमारे देश में डायबिटीज (मधुमेह) का शिकार होने की उम्र लगातार घट रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय, यूनिसेफ व पॉपुलेशन काउंसिल द्वारा जारी राष्ट्रीय पोषण सर्वे के अनुसार, 10 फीसदी बच्चों और किशोरों के खून में सुगर की मात्रा सामान्य से अधिक है.

यह मात्रा टाइप-2 डायबिटीज से कम होती है और खान-पान व जीवन-शैली में बदलाव लाकर कम की जा सकती है, लेकिन ऐसा नहीं करने पर डायबिटीज होने की आशंका रहती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2016 में दुनिया में 16 लाख मौतों का सीधा कारण डायबिटीज था. भारत में फिलहाल सवा सात करोड़ वयस्क इससे ग्रस्त हैं और अधिक वजन व मोटापा से परेशान वयस्कों की संख्या 16.60 करोड़ है.

सर्वे ने पहली बार यह रेखांकित किया है कि इस बीमारी के संकेत शुरुआती उम्र से ही मिलने लगते हैं. जानकारों ने इस तथ्य को एक गंभीर चेतावनी माना है. भारत में एक ओर जहां बड़ी संख्या में बच्चों को समुचित पोषण नहीं मिल पाता है, वहीं दूसरी ओर अनेक इलाकों में ज्यादा खान-पान की उपलब्धता भी एक समस्या है.

इसी वजह से केरल, सिक्किम, मिजोरम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में 21 से 32 फीसदी बच्चों-किशोरों में अधिक सुगर होने की शिकायत पायी गयी है. पांच से सात साल के 1.3, आठ से नौ साल के 1.1, 10 से 14 साल के 0.7 तथा 15 से 19 साल के 0.5 फीसदी बच्चों को डायबिटीज हो चुका है.

अब जब ठोस आंकड़े आ चुके हैं, तो स्थिति में सुधार के लिए तुरंत पहलकदमी होनी चाहिए. डायबिटीज या सुगर की मात्रा बढ़ने का संबंध पोषण से है, सो जन्म से पहले माता के स्वास्थ्य तथा बाद में माता और शिशु के पोषण पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. जन्म के समय कम वजन के शिशुओं को वयस्क होने पर डायबिटीज और हृदय रोग होने की बहुत अधिक आशंका होती है. सार्वजनिक कार्यक्रमों के अंतर्गत जो भोजन बच्चों को मिल रहा है, उसमें पर्याप्त पोषण को सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

पांच साल से कम आयु के कुपोषित बच्चों की संख्या 4.60 करोड़ है, जबकि मोटापे से ग्रस्त बच्चों की आबादी 1.44 करोड़ है. इन आंकड़ों से साफ इंगित होता है कि बच्चों में मोटापा. कुपोषण और सुगर की अधिकता की समस्या बेहद गंभीर हो चुकी है. यदि जल्दी ही इसकी रोकथाम के लिए कोशिश नहीं की गयी, तो कुछ सालों बाद डायबिटीज हमारे विकास पर नकारात्मक असर डाल सकती है. इसके अलावा अन्य बीमारियों, गरीबी और प्रदूषित हवा व पानी की चुनौतियां भी हैं.

स्वस्थ बच्चे ही हमारे स्वस्थ भविष्य का आधार हैं. उनके ऊपर ही विकास और समृद्धि की आकांक्षाएं निर्भर करती हैं. इस कारण आज उन्हें स्वस्थ रखना बहुत आवश्यक है. खान-पान और व्यायाम जैसे उपायों से यह कर पाना संभव है. इस कोशिश में माता-पिता और शिक्षकों के चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों को जागरूक और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. सरकार, मीडिया और सामाजिक संगठनों के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है.

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