विकसित देशों के पैंतरे
व्यापार के क्षेत्र में भी अपनी पकड़ व बढ़त बनाये रखने के लिए विकसित देश ऐसे तौर-तरीके अपना रहे हैं, जिनसे विकासशील देशों के वाणिज्यिक हितों को नुकसान हो रहा है. ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों के व्यापार मंत्रियों की बैठक में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उचित ही इस विसंगति को रेखांकित […]
व्यापार के क्षेत्र में भी अपनी पकड़ व बढ़त बनाये रखने के लिए विकसित देश ऐसे तौर-तरीके अपना रहे हैं, जिनसे विकासशील देशों के वाणिज्यिक हितों को नुकसान हो रहा है.
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों के व्यापार मंत्रियों की बैठक में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उचित ही इस विसंगति को रेखांकित किया है कि एक ओर तो विकसित देश विकासशील देशों में शुल्कों को हटाकर या कम कर मुक्त व्यापार की पैरोकारी करते हैं, लेकिन वे अपने बाजार को संरक्षित करने के लिए शुल्कों के अलावा अन्य उपायों से अन्य देशों की पहुंच को बाधित कर देते हैं.
इनमें प्रतिबंध, सीमित मात्रा का निर्धारण, रोक और अतिरिक्त शुल्क लगाने जैसे उपाय शामिल हैं. सूक्ष्म, छोटे व मझोले उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था का आधार हैं. अगर इनके उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में, विशेष रूप से विकसित देशों के बाजार में, जगह नहीं मिलेगी, तो इसका नकारात्मक असर निर्यात पर होता है. इस कारण उत्पादन, आय और रोजगार में भी कमी होती है.
हमारे उत्पादों को अलग-अलग कारणों से रोककर विकसित देशों की कोशिश रहती है कि उनकी वस्तुएं मामूली शुल्क देकर हमारे बाजार में आती रहें. एक तरफ इससे घरेलू उद्योग को चोट पहुंचती है और दूसरी तरफ आयात बढ़ने से व्यापार घाटा बढ़ता है. निश्चित रूप से यह असंतुलन हमारे और अन्य विकासशील देशों के आर्थिक हितों के विरुद्ध हैं तथा इससे अनिश्चितताएं भी बढ़ती जा रही हैं.
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले ही 15 देशों के साथ प्रस्तावित आर्थिक सहयोग समझौते से भारत ने अपने को अलग कर लिया है क्योंकि प्रावधानों में बाजारों तक पहुंच और शुल्कों के अलावा अन्य तरीकों के रोक के संबंध में उसकी चिंताओं का निवारण सही ढंग से नहीं किया गया था. संरक्षणवाद और एकतरफा वाणिज्यिक निर्णयों से दुनिया की आर्थिकी को परेशानी हो रही है, फिर भी भारत ने कॉर्पोरेट करों में कमी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों को सरल बनाने, रियल इस्टेट व छोटे उद्यमों को बढ़ावा देने जैसे अनेक उपायों के जरिये निवेशकों और उद्योगों के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध कराने की लगातार कोशिश की है.
वैश्विक स्तर की शीर्ष इ-कॉमर्स कंपनियां कम दाम और भारी छूट पर सामान बेचकर लाखों भारतीय खुदरा कारोबारियों को नुकसान पहुंचा रही हैं. ये कंपनियां वस्तुओं के बारे में फर्जी प्रशंसा वेबसाइट पर छापकर ग्राहकों को भ्रमित करती हैं. उनके जरिये बेचे जा रहे सामान की गुणवत्ता की गारंटी को लेकर भी लापरवाही बरती जा रही है. सरकार ने ऐसे कारोबारियों और ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए कुछ दिन पहले ही इ-कॉमर्स बाजार के नियमन का मसौदा जारी किया है. यह कवायद बहुत समय से जारी है. इ-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों के मुख्य केंद्र भी विकसित देशों में हैं और उन्हें उनका संरक्षण भी मिलता है. सरकार ने आयात, निर्यात और खुदरा बाजार की चिंताओं पर जरूरी कदम उठाया है और उम्मीद है कि इन पर सही फैसला भी जल्दी लिया जायेगा.