हमारी सरकार और हमारा समाज अपने होनहार सपूतों को उनके जीते जी न तो ठीक से पहचान पाता है, न ही उनका उचित सम्मान कर पाता है.महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ. वशिष्ठ बाबू जैसे और भी प्रतिभाएं हमारे देश में ऐसी ही उपेक्षा का दंश झेल रही है.
उनका सही से इलाज तक नहीं हो पा रहा है, जबकि जिस सिजोफ्रेनिया से वशिष्ठ बाबू पीड़ित थे, उसी से दशकों तक पीड़ित रहनेवाले अमेरिकी अर्थशास्त्री एवं गणितज्ञ जॉन नैश उचित इलाज से ठीक होने के बाद नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए थे.
सही इलाज मिलने पर हमारे देश के ऐसे सपूत भी ठीक हो सकते थे, परंतु जब कुछ देखभाल हो, तब तो! वशिष्ठ बाबू जब मरे, तो उनकी मृत देह तक को उनके घर तक ले जाने के लिए उनके परिजनों को एंबुलेंस के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा. इससे ज्यादा अफसोस की बात और क्या हो सकती है?
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश