पेयजल की गुणवत्ता
मुंबई के अलावा तीन महानगरों और 17 राजधानियों में नलों से मुहैया होनेवाले पेयजल की गुणवत्ता ठीक नहीं है. भारतीय मानक ब्यूरो के अध्ययन में दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई का पानी 11 में से करीब 10 कसौटियों पर खरा नहीं उतरा है. रांची, हैदराबाद, भुवनेश्वर, रायपुर, अमरावती और शिमला के नमूने एक या अधिक मानकों […]
मुंबई के अलावा तीन महानगरों और 17 राजधानियों में नलों से मुहैया होनेवाले पेयजल की गुणवत्ता ठीक नहीं है. भारतीय मानक ब्यूरो के अध्ययन में दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई का पानी 11 में से करीब 10 कसौटियों पर खरा नहीं उतरा है. रांची, हैदराबाद, भुवनेश्वर, रायपुर, अमरावती और शिमला के नमूने एक या अधिक मानकों पर ठीक नहीं पाये गये हैं, जबकि चंडीगढ़, गुवाहाटी, बेंगलुरु, गांधीनगर, लखनऊ, जम्मू, जयपुर, देहरादून, चेन्नई और कोलकाता समेत 13 राजधानियों का पेयजल किसी भी आधार पर ठीक नहीं पाया गया. पीने के पानी की यह स्थिति जब इन शहरों में है, तो देश के बाकी हिस्से की हालत का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है.
तीन साल पहले आयी वाटरएड रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 7.6 करोड़ लोगों को तो नलके का पानी ही नहीं मिलता. साल 2013 तक 30 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में ही पानी पहुंचाया जा सका था. उपलब्धता के संकट का अनुमान एशियन डेवलपमेंट बैंक के इस आकलन से लगाया जा सकता है कि 2030 तक जरूरत का 50 फीसदी पानी ही हमारे पास होगा. भू-जल के दोहन, निकास व शोधन की कमी और लापरवाह संरक्षण जैसी समस्याओं के साथ साफ पानी का अभाव भारत के लिए बेहद गंभीर चुनौती है.
अभी 45 हजार से अधिक गांवों में नल के या हैंडपंप से पानी मिलता है, लेकिन करीब 19 हजार गांव ऐसे भी हैं, जहां ऐसी उपलब्धता नहीं है. पिछले साल संसदीय रिपोर्टों में रेखांकित किया गया था कि ग्रामीण भारत में पेयजल पहुंचाने की सरकारी कोशिश भू-जल पर बहुत अधिक निर्भर है, लेकिन 20 से अधिक राज्यों में भू-जल में खतरनाक रसायन हैं. बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, मणिपुर और कर्नाटक के 68 जिलों के भू-जल में आर्सेनिक की मात्रा बहुत ज्यादा है. पूर्वी भारत के गंगा-ब्रह्मपुत्र क्षेत्र इस समस्या से बेहद प्रभावित हैं.
रसायनों के मिश्रण का एक कारण पेयजल के लिए गहरी खुदाई करना भी है. गांवों में पानी मुहैया कराने के लिए सरकार ने जल जीवन मिशन के नाम से महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरुआत की है. इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित इस कार्यक्रम के तहत 2024 तक हर ग्रामीण परिवार तक साफ पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये की लागत के इस प्रयास की सफलता से करीब 15 करोड़ परिवारों को पेयजल मिलने की आशा है. साफ पानी की कमी का सीधा संबंध बीमारियों से है. इस कमी की भरपाई सिर्फ नदियों के पानी या भू-जल से कर पाना मुमकिन भी नहीं है.
इसलिए सरकार ने इस मिशन को स्वच्छता, पानी बचाने, वर्षा जल के संरक्षण और नदियों की सफाई से जोड़ कर दूरदर्शी पहल की है. भारत बारिश के पानी का महज छह फीसदी ही बचा पाता है. समुचित सरकारी पहलों और सामुदायिक सक्रियता से पानी की उपलब्धता बढ़ाना संभव है. ऐसा होने पर ही गुणवत्ता को भी बेहतर किया जा सकेगा तथा बीमारियों पर अंकुश लगाकर लाखों जानें बचायी जा सकेंगी. आज के प्रयास पर भविष्य की संभावनाएं निर्भर हैं.