प्रो सतीश कुमार, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
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पाकिस्तान के इस्लामिक मित्र देश उसका साथ छोड़ चुके हैं, फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा हुआ है. चीन अगर पाकिस्तान का हिमायती है, तो उसके भी अपने निजी स्वार्थ हैं, लेकिन स्वार्थ कभी स्थायी नहीं होता.
पिछले दिनों पाकिस्तान में ‘स्वतंत्र सिंधु देश’ की मांग को लेकर सिंधु समुदाय के हजारों लोग कराची की सड़कों पर उतरे. अपनी मांग के समर्थन में देशभर से जुटे सिंधी नागरिकों ने 17-18 नवंबर को कराची में गुलशन-ए-हदीद से प्रेस क्लब तक मार्च किया. सिंधु देश के प्रतीक लाल झंडे लेकर हजारों लोगों ने स्वतंत्र देश के समर्थन में नारे लगाये. जय सिंध कौमी महाज (जेएसक्यूएम) ने इस मार्च का आयोजन किया था. सिंधी समुदाय का कहना है कि सिंध खुद में एक अलग राष्ट्र है, लेकिन पाकिस्तान ने उस पर जबरन कब्जा कर रखा है. पाकिस्तान से स्वतंत्र सिंधु देश बनाने की मांग पहली बार 1972 में सिंधी नेता जीएम सईद ने उठायी थी. सिंध में ही ज्यादातर अल्पसंख्यक वर्ग, मसलन हिंदू और ईसाई रहते हैं. वहां पर उनके साथ घोर भेदभाव होता है. पाकिस्तान की कठोर धार्मिक नीतियों की वजह से वहां हिंदू और सिख समुदाय हाशिये पर हैं.
पाकिस्तान एक आर्टिफिशियल स्टेट है. अर्थात राज्य बनाने की बुनियादी शर्तें उसके पास नहीं हैं. पंजाब की राजनीति अन्य प्रांतों की अस्मिता को दबोचे हुए है. अल्पसंख्यक वर्ग एक परिवर्तन की खोज में हैं, जिससे उनको मुक्ति मिल जाये. यह सब कुछ पाकिस्तान के विखंडन के बाद ही संभव है. आर्थिक और राजनीतिक कारणों ने पाकिस्तान को एक खतरनाक मुहाने पर लाकर खड़ा किया है.
पाकिस्तान का विखंडन भारत की नीति होनी चाहिए. इसके कारण हैं. चीन-पाकिस्तान गठबंधन भारत-विरोध की नींव पर टिका हुआ है. चीन अपने स्वार्थ और कूटनीतिक धूर्तता की वजह से पाकिस्तान को आतंकी देश बनने की खुराक दे रहा है. इसका कारण पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति को लेकर है. अगर बंटवारे और आजादी के पहले के इतिहास को देखा जाये, तो ज्यादातर आक्रमण उत्तर पश्चिमी मुहानों से हुए हैं. तुर्क, हुण या मुगलों के आक्रमण का रास्ता यही रहा है. भारत के उत्तर-पश्चिमी विस्तार के बीच अगर कोई सबसे बड़ी बाधा है, तो वह पाकिस्तान की भारत-विरोधी सोच है. अफगानिस्तान, मध्य एशिया और ईरान तक भारत का व्यापार कई गुना बढ़ चुका होता, अगर पाकिस्तान अवरोधक नहीं होता. अगर अफगानिस्तान से सेना वापस जाती है, तो इसका बड़ा खामियाजा भारत को झेलना पड़ेगा.
पाकिस्तान एक बनावटी ढांचा है, जो आज पूरी तरह से दलदल में फंसा हुआ है. पाकिस्तान की कपोल कल्पना करनेवाले मशहूर शायर इकबाल और पाकिस्तान के कायदे-आजम जिन्ना ने अपने जीवन काल में ही दीमक लगते हुए देख लिया था और राजनीतिक भविष्य पर खून के आंसू रोने लगे थे. पाकिस्तान की एक लेखिका ने 1945 से लेकर 2019 तक की यात्रा को चार खंडों में बांटा है, जो पाकिस्तान का सही चित्रांकन करते हैं. पहले खंड में 1945 से 1951 के बीच मुस्लिमवाद को सजाने की कोशिश अर्थात मुस्लिम आबादी के आधार पर राजनीतिक व्यवस्था को संजोने की कोशिश हुई. मालूम है कि 1971 में देश के अलग होने के बाद मुस्लिम ढांचा पूरी तरह से टूट गया. जैश-ए-मोहम्मद जैसे दर्जनों संगठन सेना और सरकार के पथ-प्रदर्शक बन गये. उनके फैलने की बस एक ही पहचान थी- भारत का विरोध. साल 1974 के बाद पाकिस्तान के टेक्स्टबुक में मुस्लिम आक्रमणकारियों की वीरगाथा लिखी गयी, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किये थे, फिर भी पाकिस्तान एक नहीं बन पाया. शियाओं पर आक्रमण तेज हो गये. अहमदिया को मुस्लिम का दर्जा नहीं दिया गया. तमाम क्षेत्रीय घटक अलग होने लगे.
पाकिस्तान के भीतर चार बड़े प्रांत हैं- पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और फाटा. बलूचिस्तान 1948 से ही पाकिस्तान से अलग होना चाहता है. यह सबसे बड़ा प्रांत है- पूरे पाकिस्तान का करीब 42 प्रतिशत हिस्सा इसमें शामिल है. यह क्षेत्र आर्थिक रूप से सबसे पिछड़ा हुआ है. इसकी सीमाएं अफगानिस्तान और ईरान से मिलती हैं. यहां खनिज संपदा भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. भाषा और संस्कृति भी पाकिस्तान से कुछ भिन्न है. वर्ष 1948 के रेफरेंडम में केवल 50.5 प्रतिशत लोगों ने पाकिस्तान में विलय की सहमति जतायी थी. शेष लोग पाकिस्तान से अलग होना चाहते थे. वहां के अलगाववादी तत्वों से निबटने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने एक लाख 65 हजार सैनिकों की एक अलग सेना तैयार की है, ताकि बलूच लोगों पर काबू पाया जा सके.
एक और बड़ी बात है. पाकिस्तान के क्षेत्राधिकार से जो बाहर है, वह है गिलगित बालटिस्तान. यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर का कभी हिस्सा था, जिसे अंग्रेजों ने पाकिस्तान में मिलने की व्यूह रचना रची. चीन की सीपेक परियोजना इसी क्षेत्र से होकर गुजरती है. पाकिस्तान ने इसी क्षेत्र के मुख्य भाग को चीन को देकर भारत के लिए सुरक्षा व्यवस्था को गंभीर बना दिया है. पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में भी पाकिस्तान विरोधी मुहिम शुरू हो चुकी है. सिंध में भी विद्रोह की हवा तेज है. भारत से गये हुए मुसलमान ज्यादातर सिंध के कराची में रहते हैं.
पाकिस्तान के इस्लामिक मित्र देश उसका साथ छोड़ चुके हैं, फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा हुआ है. चीन अगर पाकिस्तान का हिमायती है, तो उसके भी अपने निजी स्वार्थ हैं. लेकिन स्वार्थ कभी भी स्थायी नहीं होता. विश्व राजनीति के समीकरणों के साथ स्वार्थ की सुई भी बदलती रहती है. जब बदलेगी, तब पाकिस्तान को टूटने से कोई रोक नहीं पायेगा. क्योंकि वहां आपस में क्षेत्रीय विषमताएं निरंतर उग्र होती जा रही हैं.