संविधान दिवस : लोकतांत्रिक मूल्यों वाला संविधान

डॉ संजय जायसवाल सांसद व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, बिहार delhi@prabhatkhabar.in एक राष्ट्र की पहचान उसके नैतिक सामाजिक मूल्यों और उसके जनमानस की आकांक्षाओं से होती है. संविधान वस्तुतः इन्हीं भावों का वस्तुनिष्ठ करता है. हम सब जानते हैं कि 26 नवंबर, 1949 को भारत का यह संविधान जनता को समर्पित किया गया. इस मंथन में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 26, 2019 12:22 AM
डॉ संजय जायसवाल
सांसद व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, बिहार
delhi@prabhatkhabar.in
एक राष्ट्र की पहचान उसके नैतिक सामाजिक मूल्यों और उसके जनमानस की आकांक्षाओं से होती है. संविधान वस्तुतः इन्हीं भावों का वस्तुनिष्ठ करता है. हम सब जानते हैं कि 26 नवंबर, 1949 को भारत का यह संविधान जनता को समर्पित किया गया. इस मंथन में भारत के नवऋषियों ने अपना-अपना ऐतिहासिक बहुमूल्य योगदान दिया. बिहार की भूमि को भी यह गौरव प्राप्त हुआ कि डॉ सच्चिदानंद सिन्हा व डॉ राजेंद्र प्रसाद जैसे महानुभाव उसकी धरती पर जन्मे.
संविधान सभा का कुशल नेतृत्व करने में इन दोनों विभूतियों का विशेष योगदान था. भारतीय संविधान को विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ भीमराव आंबेडकर ने अंतिम रूप दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने अपने इस सपूत के 125वें जन्मवर्ष पर उनके प्रति अपनी श्रद्धा का इजहार करते हुए प्रतिवर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता के कारण ही ‘आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर’ का निर्माण व बाबासाहेब के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण स्थलों को विकसित कर ‘पंचतीर्थ’ की स्थापना करना संभव हो सका है.
वर्तमान सरकार डॉ आंबेडकर के जीवन-दर्शन के लोक प्रसार में संलग्न है. भारत ने अपने यूपीआई एप का नाम ‘भीम’ रखा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के संविधान को ‘होप’ से परिभाषित करते हुए कहा था कि ‘एच’ का तात्पर्य ‘हारमोनी’ अर्थात ‘समरसता’ है, ‘ओ’ अर्थात ‘ऑपरच्युनिटी’ या ‘अवसर’, ‘पी’ का अर्थ ‘पीपुल्स पार्टिसिपेशन’ या ‘जन सहभागिता’ तथा ‘ई’ का तात्पर्य ‘इक्वलिटी’ या ‘समता’ है.
संविधान को जीवंत करने की सर्वप्रथम शर्त ‘राष्ट्रीय संप्रभुता’ का होना है. विचारक गुन्नार मिर्डल ने भारत को ‘सॉफ्ट स्टेट’ कहकर दुत्कारा था. परंतु 2014 के पश्चात विश्व ने भारत का एक नया रूप देखा है. इस नये भारत ने सिद्ध कर दिखाया है कि हम अपनी संप्रभुता की रक्षा करना बखूबी जानते हैं.
संविधान निर्माताओं की संकल्पना में भारत एक ‘गणतांत्रिक लोकशाही’ (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) है, पर देश की आजादी के बाद यह देखना वाकई दुखद था कि एक परिवार विशेष ने लंबे समय तक इस महान देश की राजनीति को अपने इर्द- गिर्द घुमाये रखा. पर वे भूल गये थे कि भारतीय जनता ने भगवान बुद्ध के समय से ही लोकतांत्रिक मूल्यों को आत्मसात कर रखा है.
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा दूरदर्शी, राष्ट्र भावना से ओत- प्रोत, जनकल्याण के लिये समर्पित व्यक्तित्व का विकल्प देश की जनता के सामने आया, तो उन्होंने जाति-धर्म, भाषा-क्षेत्र के तमाम बंधन तोड़कर उन्हें प्रचंड बहुमत के साथ देश की कमान सौंप दी. बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के एक चाय बेचनेवाले व्यक्ति के पुत्र का प्रधानमंत्री बनना और दलित परिवार के एक व्यक्ति का राष्ट्रपति बनना भारतीय गणराज्य की महानता को दर्शाता है. इस लोकसभा में देश की आजादी के बाद पहली बार 78 महिला सांसद चुनी गयी हैं, जो जाहिर करता है कि भारतीय जनता लैंगिक समता के संवैधानिक लक्ष्य को पाने के लिए किस कदर प्रयासरत है.
भारत सरकार ने भी समता के अधिकारों को अधिक प्रबल करने के लिए अनेक कदम उठाये हैं. चाहे वह तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं को इस कुप्रथा से मुक्ति देना हो या अनुच्छेद 35 ए को हटाकर गैर-कश्मीरियों को अपने कश्मीरी भाइयों के समान हक प्रदान करना. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने के साथ ही ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा देना मोदी सरकार की ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की नीति को पुष्ट करती है. इस ध्येय के मूल में दीनदयाल उपाध्याय का ‘एकात्म मानववाद’ का दर्शन है.
भारतीय संघवाद और केंद्र-राज्य संबंध को भी प्रधानमंत्री के नेतृत्व में नये युग के लिए नव परिभाषित किया जा रहा है. इसकी शुरुआत ‘योजना आयोग’ को भंग कर ‘नीति आयोग’ की स्थापना के साथ सरकार ने राज्यों को 42 फीसदी फंड देकर विकेंद्रीकरण को प्रोत्साहन दिया है़
अब राज्य आर्थिक मामलों में न सिर्फ अधिक स्वायत्त हो रहे हैं, अपितु एक-दूसरे से परस्पर सौहार्द्रपूर्ण प्रतिस्पर्द्धा की भावना के साथ सीख भी रहे हैं. अनुच्छेद 279 ए के अंतर्गत जीएसटी कौंसिल का गठन भी वित्तीय संघवाद की इस नयी अवधारणा का उदाहरण है.
अनुच्छेद 370 का अंत भी भारतीय संघवाद को मजबूत करने की दिशा में एक और कदम है. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ‘एक निशान, एक प्रधान और एक संविधान’ का सपना अब पूरा हो चुका है. पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक में हिंदू, जैन, बौद्ध व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय लगातार प्रताड़ित होते आ रहे हैं. इस लिहाज से नागरिकता के संप्रत्यय का पुनः अवलोकन कर एनआरसी एवं सिटीजनशिप एमेंडमेंट बिल इसी दिशा में उठाये जाने वाले कदम हैं.
संविधान सभा की बहसों को अगर हम गौर से पढ़ें, तो बाबासाहेब की उस दिली भावना का पता चलेगा, जिसके एक संदर्भ में उन्होंने कहा था, ‘भारत का संविधान एक उम्दा संविधान है.’ यह हमारा फर्ज है कि हम संकल्पित होकर देशहित में संविधान निर्माताओं के सपनों के साथ न्याय करें, संविधान को जमीनी धरातल पर साकार करें.

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