बेहतर हो स्वास्थ्य सेवा
देश के कई राज्यों में स्वास्थ्य सेवा से संबंधित बुनियादी सुविधाओं व चिकित्सकों की बहुत कमी है. इनमें से ज्यादातर राज्य उत्तर भारत और पूर्वी भारत में हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संसद को दी गयी जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, कर्नाटक और बिहार प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में अभाव से सर्वाधिक प्रभावित हैं. […]
देश के कई राज्यों में स्वास्थ्य सेवा से संबंधित बुनियादी सुविधाओं व चिकित्सकों की बहुत कमी है. इनमें से ज्यादातर राज्य उत्तर भारत और पूर्वी भारत में हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संसद को दी गयी जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, कर्नाटक और बिहार प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में अभाव से सर्वाधिक प्रभावित हैं.
मंत्रालय के आंकड़े 2018 की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट पर आधारित हैं. ऐसे केंद्रों में पानी और बिजली की उपलब्धता तथा वहां तक वाहन से पहुंचने के लिए समुचित सड़क होने के मामले में उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम और उत्तराखंड सबसे पीछे हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्वास्थ्य सेवा संरचना के आधार होते हैं. सुविधा और संसाधन से वंचित होने के कारण ऐसे केंद्र ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों में समुचित उपचार मुहैया नहीं करा पाते हैं.
इससे सामान्य बीमारियां भी गंभीर होकर जानलेवा बन जाती हैं तथा लोगों को शहरों में जाकर महंगे इलाज पर खर्च करना पड़ता है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत केंद्र सरकार राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को अस्थायी तौर पर चिकित्सकों की नियुक्ति करने, जरूरी साजो-सामान जुटाने और सुविधाएं बढ़ाने के लिए वित्तीय व तकनीकी सहयोग प्रदान कर रही है.
पिछले पांच सालों में चिकित्सकीय शिक्षा के लिए 29 हजार से अधिक सीटें भी जोड़ी गयी हैं. वर्ष 2017-18 की बजटीय घोषणा के अनुरूप आयुष्मान भारत योजना के तहत डेढ़ लाख उप केंद्रों व प्राथमिक केंद्रों को पूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करानेवाले केंद्रों के रूप में बदला जा रहा है.
इस पहल से लगभग 50 करोड़ निर्धन व निम्न आय वर्ग के लोगों को दिये जा रहे पांच लाख रुपये की महती बीमा योजना पर दबाव भी कम किया जा सकेगा. ऐसे उपायों के साथ यह भी जरूरी है कि बुनियादी सेवा मुहैया कराने के लिए सरकार अधिक निवेश का प्रयास करे. पिछले माह सरकार द्वारा जारी नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में सार्वजनिक स्वास्थ्य के मद में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक फीसदी से भी कम हिस्सा खर्च किया गया था. यह आंकड़ा अभी सवा फीसदी के आसपास है.
इस लिहाज से भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जो स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करते हैं. संतोष की बात है कि सरकार ने इस अनुपात को 2025 तक ढाई फीसदी करने का लक्ष्य रखा है. परंतु इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए खर्च के मौजूदा स्तर में लगातार बढ़ोतरी करने की जरूरत है.
उल्लेखनीय है कि बीते एक दशक से कुल घरेलू उत्पादन के अनुपात में खर्च का हिस्सा औसतन एक फीसदी के आसपास बना हुआ है. बिना निवेश बढ़ाये आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा देने के कार्यक्रम को पूरा कर पाना भी बेहद मुश्किल होगा. उम्मीद है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की बढ़त के साथ स्वस्थ देश के सपने को साकार करने के लिए सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की जायेगी.