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एसपीजी सुरक्षा की जरूरत

आकार पटेल लेखक एवं स्तंभकार aakar.patel@gmail.com हमारे हिस्से की दुनिया में सुरक्षा प्रतिष्ठा का भी एक मुद्दा है. हमारे राजनेता, न्यायाधीश एवं जनरल अपनी यात्राओं के वक्त सुरक्षा के लिए समर्पित एक एस्कॉर्ट (मार्गरक्षी दल) को लेकर चलने में गर्व महसूस करते हैं. यह दल जितना ही बड़ा, भड़कीला और आडंबरपूर्ण होता है, उतना ही […]

आकार पटेल
लेखक एवं स्तंभकार
aakar.patel@gmail.com
हमारे हिस्से की दुनिया में सुरक्षा प्रतिष्ठा का भी एक मुद्दा है. हमारे राजनेता, न्यायाधीश एवं जनरल अपनी यात्राओं के वक्त सुरक्षा के लिए समर्पित एक एस्कॉर्ट (मार्गरक्षी दल) को लेकर चलने में गर्व महसूस करते हैं. यह दल जितना ही बड़ा, भड़कीला और आडंबरपूर्ण होता है, उतना ही ज्यादा प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है. मगर, कुछ लोगों की सुरक्षा के खतरे वास्तविक तथा सतत भी होते हैं. पैंतीस वर्ष पहले 31 अक्तूबर, 1984 को दिल्ली में इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी.
उनके 25 वर्षीय बॉडीगार्ड बेअंत सिंह ने ही अपने .38 सर्विस रिवाल्वर से उन पर तीन बार गोलियां दागीं. जब प्रधानमंत्री जमीन पर गिर गयीं, तो उनके एक अन्य बॉडीगार्ड सतवंत सिंह ने अपनी स्टेन मशीनगन से उन पर 30 बार गोलीबारी की. सात गोलियां उन्हें उनके पेट के निचले हिस्से में लगीं, तीन छाती में लगीं और एक गोली उनके दिल में लगी.
इस हत्या के बाद, सरकार ने राजीव गांधी की सुरक्षा के लिए अमेरिका के यूएस सीक्रेट सर्विस की तर्ज पर स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) का गठन किया. गौरतलब है कि यूएस सीक्रेट सर्विस अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, भूतपूर्व राष्ट्रपतियों एवं उनके परिवारों के अलावा विपक्षी दलों के भी प्रमुख नेताओं की रक्षा करती है.
वर्ष 1991 में तमिलनाडु में आयोजित एक रैली के दौरान एक 17 वर्षीय लड़की के द्वारा राजीव गांधी की हत्या कर दी गयी. मुझे नहीं मालूम कि तब एसपीजी क्या कर रही थी, पर यदि मेरी याददाश्त सही है, तो इस घटना की जिम्मेदारी यह कहते हुए उस शहीद राजनेता पर ही थोप दी गयी कि भीड़ को अपने निकट आने देने में उन्हें कोई उज्र नहीं था.
यदि पूरे विश्व में जोखिम झेलनेवाला कोई एक परिवार है, तो वह गांधी परिवार ही है. यूएस सीक्रेट सर्विस के विपरीत, भारत में ऐसी कोई सूची नहीं है कि एसपीजी किन लोगों की सुरक्षा करेगी. यह पूरी तरह वर्तमान सरकार पर निर्भर होता है कि वह किसे किस श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करने का फैसला करती है.
अब नरेंद्र मोदी सरकार ने यह निर्णय किया है कि गांधी परिवार से एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली जाये. जब कांग्रेस ने इस पर पुनर्विचार का अनुरोध किया, तो सरकार ने वैसा करने से इनकार कर दिया. संसद में सरकार की दलील यह थी कि गांधी परिवार से सुरक्षा वापस नहीं ली गयी है.
पर यह एक निरर्थक बचाव है, क्योंकि सरकार पर संपूर्ण सुरक्षा की वापसी का कोई आरोप है भी नहीं. आरोप तो यह है कि भारत सरकार जान-बूझकर खतरे में जी रहे एक परिवार के सदस्यों की सुरक्षा का स्तर निम्न कर उनकी जिंदगी जोखिम में डाल रही है. प्रधानमंत्री के द्वारा इस आरोप का जवाब उनकी सुरक्षा की गारंटी लेकर दिया जाना चाहिए था. मगर, उन्होंने ऐसा न करना ही उचित समझा.
संसद में सरकार ने एक दूसरा दावा किया कि यह किसी सियासी फैसले का नतीजा नहीं है. इस कथन पर केवल वही लोग यकीन कर सकते हैं, जिन्हें बिल्कुल ही पता नहीं कि भारत में सरकारें कैसे चला करती हैं.
सरकार द्वारा किया गया तीसरा दावा यह था कि गांधी परिवार की सुरक्षा का स्तर निम्न किये जाने का निर्णय इसलिए किया गया कि उनकी सुरक्षा संबंधी आकलन के दौरान उन पर जोखिम में कमी महसूस की गयी. सरकार के लिए यह जरूरी था कि वह ऐसी सामग्रियां सामने रखती, जिससे यह साबित होता हो, पर एक बार पुनः उसने ऐसा नहीं किया.
सुरक्षा स्तर में की गयी इस कमी से इन लोगों के जीवन खतरे में पड़ेंगे. हालांकि, एसपीजी सुरक्षा भी कोई वैसी चीज नहीं होती, जैसा हम उसे समझते हैं.
कुछ ही महीने पहले मैंने 10 जनपथ में सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. मुझे सिर्फ उस टैक्सी का नंबर बताना था, जिसमें मैं बैठा था और उसे अंदर आने दिया गया. जहां तक मुझे याद है, स्वयं इस टैक्सी का निरीक्षण नहीं किया गया. बस मुझे अपना मोबाइल फोन रिसेप्शन पर ही छोड़ने को कहा गया. मुझे नहीं याद कि हवाई अड्डे पर की जानेवाली जांच से ज्यादा कोई सुरक्षा जांच वहां की गयी. ऐसे में, मैंने यह महसूस किया कि एसपीजी सुरक्षा भी कुछ खास नहीं है.
कुछ वर्ष पहले, प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा भी एसपीजी श्रेणी में शामिल नहीं थी, पर मैं इस बात पर निश्चित हूं कि उन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा तो अवश्य ही दी गयी थी. एक बार फिर, यह उससे कुछ खास अलग नहीं था, हम जिसके अभ्यस्त हो चुके हैं. तथ्य यह है कि भारत में सारी प्रणालियां ही कमजोर हैं, जिनका लाभ किसी के भी द्वारा उठाया जा सकता है और उसका नुकसान बहुत बड़ा हो सकता है.
लगभग दो वर्ष पहले मैं श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला से मिलने गया. वे अभी अपने कार्यालय में नहीं आये थे. मेरी एक संक्षिप्त जांच की गयी और उनके कार्यालय में भेज दिया गया. हुआ ऐसा कि वे मुझसे मिलना ही नहीं चाहते थे, किंतु जैसे ही मैं उनके कार्यालय से निकल रहा था, गलियारे में ही मेरा उनसे सामना हो गया.
लगभग 20 वर्षों पूर्व, एडिटर्स गिल्ड की एक बैठक में मैं मौजूद था. उस समय एलके आडवाणी हमारे ग्रुप में एक आमंत्रित व्यक्ति थे. जब हम सब सभागार में प्रवेश पा चुके थे, तभी आडवाणीजी ने अंदर प्रवेश किया, और जिस टेबल की चारों ओर हम बैठे थे, वहीं आडवाणीजी और जेटलीजी भी आकर बैठे. अंदर प्रवेश के वक्त किसी की भी जांच नहीं की गयी, जबकि वहां जेड प्लस सुरक्षा श्रेणी के स्तर का एक व्यक्ति मौजूद था.
तीस वर्षों से भी अधिक पहले की बात है. रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपतित्व काल में मैं व्हॉइट हाउस गया था. तब राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन उस भवन में मौजूद थे, पर अपना पहचान पत्र मुहैया करने तथा कुछ बिल्कुल ही बुनियादी जांचों के अलावा मेरे साथ और कुछ नहीं किया गया था. जब तेल अवीव में मैं इस्राइली प्रधानमंत्री शिमोन पेरेस से मिला, तो मैंने वहां भी कुछ ऐसा ही मामला पाया. यह कल्पना कर पाना कठिन है कि इस स्तर की सुरक्षा भी अत्यंत जोखिम झेलते लोगों को स्थायी रूप से सुरक्षित बना देती है.
जैसा मैंने कहा, सुरक्षा एक प्रतिष्ठापूर्ण मामला है. किसी व्यक्ति से इसे हटाने का अर्थ उस व्यक्ति को उसकी जगह बताना भर ही है. पर मोदी सरकार का यह खेल खतरनाक है. उसे चाहिए कि वह मौन भाव से गांधी परिवार को उसकी एसपीजी सुरक्षा बहाल कर दे.
(अनुवाद: विजय नंदन)

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