एमएलए पैकर्स एंड मूवर्स सेवा

पीयूष पांडे व्यंग्यकार pandeypiyush07@gmail.com हमारे देश में अक्सर कोई नेता कहने लगता है कि लोकतंत्र की हत्या हो गयी. ऐसी अफवाह हजारों बार पहले भी फैली है, लेकिन लोकतंत्र का शव कभी बरामद नहीं हुआ. जब तक शव बरामद न हो, तब तक मरण की गारंटी कोई नहीं ले सकता. बगदादी का उदाहरण सामने है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 28, 2019 7:46 AM

पीयूष पांडे

व्यंग्यकार

pandeypiyush07@gmail.com

हमारे देश में अक्सर कोई नेता कहने लगता है कि लोकतंत्र की हत्या हो गयी. ऐसी अफवाह हजारों बार पहले भी फैली है, लेकिन लोकतंत्र का शव कभी बरामद नहीं हुआ. जब तक शव बरामद न हो, तब तक मरण की गारंटी कोई नहीं ले सकता. बगदादी का उदाहरण सामने है.

चैनलों ने बगदादी को सैकड़ों बार समाचारों में मार डाला, लेकिन कोई उसका शव नहीं दिखा पाया. नतीजा- बगदादी हर बार वापस आया. जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने बगदादी के मारे जाने का ऐलान किया, तब उसका शव बरामद हुआ है.

लगता है कि हमारा लोकतंत्र रजनीकांत की तरह है, जिसे दुश्मन कितनी भी गोलियां मार दे, वह मर नहीं सकता. कभी भ्रम होता है कि भारतीय लोकतंत्र के पास कर्ण का दिया चमत्कारी कवच है, जो उसकी रक्षा करता है.

कभी-कभी कंफ्यूजन होता है कि लोकतंत्र को शायद अमरत्व का वरदान मिला हुआ है, वरना देश में जब एक साल की बच्ची के साथ बलात्कार होता है, किसी गरीब दलित को कुएं से पानी नहीं भरने दिया जाता है, या संसद में सवाल पूछने तक के लिए सांसद पैसे लेते दिखते हैं, तब लोकतंत्र खुद ही शर्म से मर जाता.

इमरजेंसी के वक्त तो इत्ता हल्ला मचा बायगॉड कि अब लोकतंत्र की अस्थियां भी नहीं मिलेंगी, लेकिन लोकतंत्र तब भी बच निकला. मुझे भरोसा है कि हमारा लोकतंत्र फिल्मी हीरो की तरह विलेन को ठिकाने लगाकर आग से बाहर निकल आयेगा. इस बीच मुझे कारोबार की तमाम संभावनाएं दिख रही हैं.

हर चार महीने में किसी ना किसी राज्य में विधायकों को एक राज्य से दूसरे राज्य सुरक्षित ले जाना होता है, इसके लिए स्पेशल एमएलए पैकर्स एंड मूवर्स सेवा आरंभ की जा सकती है. राजनीतिक दलों को अपने विधायकों की चिंता की जरूरत नहीं होगी. जैसे ही नौटंकी शुरू हो, एमएलए पैकर्स एंड मूवर्स को ठेका दे दिया जाये.

हर राज्य में दो-चार एमएलए-एमपी पैकर्स एंड मूवर्स कंपनियां आसानी से चल सकती हैं. आधुनिक राजनीति में रिजॉर्ट और होटल को लोकतंत्र का पांचवा खंभा कहा जा सकता है, जहां नेताओं को सुरक्षित रखा जाता है, ताकि वे भविष्य में लोकतंत्र को बचाने में अपनी भूमिका निभायें.

एक कंपनी ऐसी भी खोली जा सकती है, जो अपने खर्चे पर 20-25 लोगों को चुनाव लड़वाये, यानी कि इनवेस्ट करे, और फिर चुनाव जीतने के बाद उन विधायकों को बेच दे. इससे विधायकों की खरीद-फरोख्त में पारदर्शिता आयेगी और भारतीय राजनीति में शुचिता आयेगी! कंपनी विधायक-सांसद किसी पार्टी को बेचेगी और पार्टी उन पर मुहर लगाकर आधिकारिक पर्ची राज्यपाल या राष्ट्रपति तक पहुंचा देगी. कोई कंफ्यूजन नहीं.

लोकतंत्र की हत्या की शंका के बीच कारोबार की अपार संभावनाओं को टटोला जाना चाहिए. क्या पता, कुछ साल बाद यही धंधा देश को पांच ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनाने में बड़ा योगदान दे! फिलहाल, मैं कंपनी खोलने जा रहा हूं. आप में से कोई यह काम करे, तो मुझे रॉयल्टी जरूर पहुंचवा दे.

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