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11 भाषाओं में जेईई मेन

आईआईटी और एनआईटी समेत देश के शीर्ष तकनीकी शिक्षण संस्थानों के इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए वर्ष में दो बार संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) मेन आयोजित होती है. इसमें लाखों छात्र शामिल होते हैं. हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) से कहा है कि आगामी सत्र से इस […]

आईआईटी और एनआईटी समेत देश के शीर्ष तकनीकी शिक्षण संस्थानों के इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए वर्ष में दो बार संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) मेन आयोजित होती है. इसमें लाखों छात्र शामिल होते हैं.

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) से कहा है कि आगामी सत्र से इस परीक्षा को 11 भाषाओं में आयोजित किया जाये. अब तक यह परीक्षा हिंदी और अंग्रेजी के अलावा गुजराती भाषा में होती रही है.

केंद्र सरकार के निर्देश के बाद अब मराठी, तेलुगु, कन्नड़, उड़िया, उर्दू, असमी, बांग्ला और तमिल भाषाओं में जेईई मेन आयोजित की जायेगी. पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुजराती भाषा में परीक्षा पर आपत्ति जताते हुए बांग्ला समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल किये जाने की मांग की थी. अब सरकार के इस फैसले के बाद तैयारी कर रहे लाखों छात्रों को अपनी भाषा में परीक्षा देने की सहूलियत मिलेगी. हालांकि, उक्त बदलाव 2021 सत्र से होंगे.

सरकार अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को भी स्थानीय भाषाओं में आयोजित करने पर विचार कर रही है. राज्य शिक्षा बोर्ड से स्थानीय भाषा में पढ़ाई करनेवाले छात्रों के लिए अंग्रेजी माध्यम में विज्ञान और तकनीकी की पढ़ाई बड़ी चुनौती है. जबकि, ज्यादातर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में छात्रों को हिंदी या अंग्रेजी माध्यम ही चुनना पड़ता है.

भाषा के इस बाधा के कारण छात्रों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बन जाता है, जिसका असर उनके करियर पर पड़ता है. ऐसे में छात्र अपने विषय पर केंद्रित करने की बजाय अभिव्यक्ति के माध्यम पर ध्यान देने लगते हैं, जिससे उनका दोहरा नुकसान होता है.

शिक्षण विधा की खामियों के कारण छात्र कम्युनिकेशन कुशलता से वंचित रह जाते हैं. मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन के अनुसार, विज्ञान की पढ़ाई और अभिव्यक्ति के लिए स्थानीय भाषाओं का प्रयोग होना चाहिए. उनका कहना तर्कपूर्ण है कि अपनी भाषा में अर्जित ज्ञान की मौलिकता होती है. आपको समाज से जोड़नेवाली भाषा ज्ञान-विज्ञान से भी बेहतर तरीके से जोड़ सकती है.

आबादी का बड़ा हिस्सा विज्ञान और तकनीकी शिक्षा से महरूम है, इसका बड़ा कारण यह भी है कि उसे अंग्रेजी नहीं आती. एक साथ पूरी आबादी को अंग्रेजी नहीं सिखायी जा सकती, लेकिन यह संभव है कि सबको अपनी भाषा में सीखने-समझने की सुविधा दी जाये. अंग्रेजी की जानकारी आपको दुनिया से जोड़ती है, लेकिन विज्ञान से जुड़ने के लिए यह अंतिम सत्य नहीं है. चीन, जापान, कोरिया जैसे देश मातृभाषा में विज्ञान और तकनीक को सीखते-सिखाते हैं.

मूलभूत यह है कि हम समाज से कैसे जुड़ते हैं, कितने कल्पनाशील और आत्मविश्वासी हैं. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भाषाई बाधा को दूर करने के लिए व्यापक योजना जरूरी है, तभी हिंदी और अंग्रेजी से दूर प्रतिभावान युवाओं को मौका मिलेगा और वे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दे सकेंगे.

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