शिक्षा के समान अवसर का सवाल

योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com किसी भी बड़े आंदोलन का लक्षण यह है कि वह किसी छोटे और तीखे मुद्दे के बहाने बहुत बड़े और दूरगामी परिवर्तन की मांग करता है. जेएनयू आंदोलन को इसी नजर से देखना होगा. जेएनयू न तो इस देश की सबसे गरीब यूनिवर्सिटी है, न ही उसकी फीस सबसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 29, 2019 7:28 AM

योगेंद्र यादव

अध्यक्ष, स्वराज इंडिया

yyopinion@gmail.com

किसी भी बड़े आंदोलन का लक्षण यह है कि वह किसी छोटे और तीखे मुद्दे के बहाने बहुत बड़े और दूरगामी परिवर्तन की मांग करता है. जेएनयू आंदोलन को इसी नजर से देखना होगा. जेएनयू न तो इस देश की सबसे गरीब यूनिवर्सिटी है, न ही उसकी फीस सबसे अधिक है.

राज्य सरकारों द्वारा चलाये जा रहे विश्वविद्यालयों के मुकाबले में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के पास ज्यादा पैसा है. बाकी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तुलना में भी जेएनयू बेहतर स्थिति में है. जेएनयू की फीस बाकी सरकारी संस्थानों से ज्यादा नहीं है. जेएनयू की हॉस्टल फीस 32 हजार रुपये से बढ़कर अगर ₹56 हजार हो भी जाती है, तो भी यह देश का सबसे महंगा विवि नहीं होगा.

अब आप पूछेंगे कि फिर जेएनयू में फीस वृद्धि को लेकर आंदोलन क्यों? जेएनयू की खासियत यह है कि यह देश की उन चंद विश्वविद्यालयों में से है, जहां सचमुच पूरे देश से विद्यार्थी आते हैं, काफी गरीब घरों के बच्चे आते हैं.

असली सवाल यह है कि अगर फीस वृद्धि से जेएनयू के विद्यार्थी भी परेशान हैं, तो यह समस्या बाकी देश में कितनी गहरी होगी? सवाल है कि क्या उच्च शिक्षा एक साधारण परिवार की पहुंच से बाहर होती जा रही है? अगर ऐसा है तो असंतोष आज जेएनयू में फूट रहा है, वह देर-सबेर देश की तमाम उच्च शिक्षण संस्थाओं में किसी न किसी स्वरूप में उभरेगा.

हाल ही में भारत सरकार ने राष्ट्रीय सैंपल सर्वे की एक रिपोर्ट पेश की है. देश में एक लाख से अधिक घरों में जाकर यह सर्वेक्षण पूछता है कि आपने शिक्षा पर कितना खर्च किया. अगर आप बिल्कुल साधारण से साधारण किस्म की शिक्षा दिलवायें, यानी स्थानीय कॉलेज में जायें, जहां न तो शिक्षा मिलेगी, न ही डिग्री समय पर मिलेगी और उसमें से नौकरी तो कतई नहीं मिलेगी, वहां पर भी आप के सालाना ₹20 हजार रुपये खर्च होंगे.

अगर थोड़ी बेहतर जगह जायें, कोई भी प्रोफेशनल डिग्री के लिए, जिसमें शायद नौकरी की गुंजाइश बन जाती है, उसकी कीमत ₹50 हजार से ₹70 हजार रुपये प्रति वर्ष है. अगर कुछ बेहतर प्राइवेट संस्थान में जाना हो, तो वहां ₹2 लाख प्रति वर्ष. इसमें हॉस्पिटल का या बाहर कमरा लेकर ठहरने का खर्चा शामिल नहीं है.

इस समय देश में पांच लोगों के एक परिवार की औसत आय लगभग ₹12 हजार रुपये प्रति महीना है यानी ₹उनकी 1,40,000 की सालाना आय है. अब बताइए, ऐसा औसत परिवार उच्च शिक्षा के खर्चे को कैसे उठा सकता है. अगर जेएनयू की फीस बढ़ जाती है, जो आपको और हमें लगता है थोड़ा ही तो फर्क है, लेकिन उस परिवार के लिए यह पानी के ऊपर नाक रखने और नाक पानी के अंदर जाने का फर्क है.

आज देशभर में लाखों करोड़ों लोग पहली बार उच्च शिक्षा में आ रहे हैं, जिनके मां-बाप ने कभी कॉलेज-यूनिवर्सिटी का चेहरा नहीं देखा. उनके मन में सपने हैं, उनके मां-बाप किसी तरह पेट काटकर उनको यूनिवर्सिटी में भेज रहे हैं. वह बच्चे मेहनत करने को तैयार हैं. उनमें प्रतिभा है. लेकिन उनके पास पैसे नहीं हैं. तो क्या उन्हें उच्च शिक्षा पाने का अधिकार नहीं है? हमारा संविधान कहता है कि सबको समान अवसर मिलेंगे! वह समान अवसर कैसे मिलेंगे? समाधान सिर्फ फीस में नहीं है, समाधान के लिए कम-से-कम चार कदम उठाने होंगे.

पहला, उच्च शिक्षा की लागत कम रखनी पड़ेगी. चाहे फीस हो, हॉस्टल फीस हो, मेस फीस हो. यह सोचकर तय करना होगा कि एक साधारण परिवार कैसे उठा सकता है इतना खर्च. यानी सरकार को अनुदान देना होगा. अगर कोई कहता है कि सरकार शिक्षा का बोझ क्यों उठाये, तो उससे पूछिये कि सरकार का और काम क्या है?

दूसरा, स्कॉलरशिप और फेलोशिप में काफी वृद्धि करनी होगी. आज हमारे देश में केंद्र सरकार उच्च शिक्षा की स्कॉलरशिप और फैलोशिप मिलाकर 1,800-2,000 करोड़ के करीब खर्च करती है. तीन करोड़ से ज्यादा विद्यार्थी हैं. मतलब प्रति विद्यार्थी प्रति वर्ष कुल ₹600 रुपये की स्कॉलरशिप देती है. यह बहुत कम है.

तीसरा, विद्यार्थियों के लिए यूनिवर्सिटी-कॉलेज में कुछ कमाने का जरिया होना चाहिए. यानी विद्यार्थी हफ्ते में 20 घंटे तक लाइब्रेरी में या ऑफिस में या किसी रिसर्च का काम कर सकते हैं. इससे विद्यार्थी अपने मेस का खर्चा निकाल सकते हैं. इससे विद्यार्थी काम करना सीखेंगे, श्रम के प्रति इज्जत आयेगी और चार पैसे भी कमायेंगे.

और चौथा, कुछ कोर्स महंगे रहेंगे, तो उनके लिए एजुकेशन लोन की व्यवस्था करनी होगी. आज के 12-14 प्रतिशत ब्याज वाले लोन का बोझ तो विद्यार्थियों को ही खत्म कर देगा. विद्यार्थियों को किसानों के तर्ज पर लोन मिले. ब्याज 7 प्रतिशत हो, समय से चुकाने पर और भी छूट मिले और सरकार उसकी गारंटी दे.

असली सवाल सिर्फ जेएनयू का या उसकी फीस का नहीं है. सवाल यह है कि भारत का संविधान जो अवसरों की समानता की बात करता है, वह लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति है या नहीं. जेएनयू के छात्रों को सलाम कि उन्होंने एक बड़ा सवाल उठाया है.

लेकिन यह आंदोलन तब सफल होगा, जब वह पूरे देश के युवाओं का आंदोलन बने, सस्ती शिक्षा, सार्थक शिक्षा, समान शिक्षा के अधिकार का संघर्ष बने. जेएनयू आंदोलन का सवाल सिर्फ फीस तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उच्च शिक्षा के समान अवसर से जुड़ा है.

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