अर्थव्यवस्था की चिंता
चिंता इस बात की नहीं की जीडीपी का आंकड़ा लगातार पिछले छह सालों में न्यूनतम स्तर यानी 4.5 फीसद पर आ गया है. चिंता इस बात की हो रही है कि इसके सुधरने का कोई आसार दूर-दूर तक दिखायी नहीं पड़ रहा है. दुख यह भी है कि सत्ताधारी लोग मंदी के घड़घड़ाहट को सुनने […]
चिंता इस बात की नहीं की जीडीपी का आंकड़ा लगातार पिछले छह सालों में न्यूनतम स्तर यानी 4.5 फीसद पर आ गया है. चिंता इस बात की हो रही है कि इसके सुधरने का कोई आसार दूर-दूर तक दिखायी नहीं पड़ रहा है.
दुख यह भी है कि सत्ताधारी लोग मंदी के घड़घड़ाहट को सुनने से इनकार कर रहे हैं. अब भी रट्टा लगाये जा रहे हैं कि हम विश्व में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था हैं. भविष्य का सुनहरा सपना देख कर क्या हम अपने आज के बुरे दिन से निबट सकते हैं? हर क्षेत्र का आंकड़ा चिंताजनक आ रहा है. विनिर्माण तो शून्य से भी नीचे जा चुका है. नयी नौकरियां नहीं आ रही हैं. जो हैं, वे भी जा रही हैं. कल-कारखाने बंद हो रहे हैं, जिससे मांग में कोई वृद्धि नहीं हो रही है. निजी क्षेत्र तो एकदम मृतप्राय पड़ा है. क्या हम असुरक्षित भारत की तरफ बढ़ रहे हैं?
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड