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उच्च क्वालिटी के नीच नेता!

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com वह सेल्समैन अड़ा था कि मुझे 57 इंच का एचडी क्वालिटी का टीवी बेचेगा. मैंने निवेदन किया- नागिन, भूत, चुड़ैल, बेवफाई और नेता ही देखने हैं टीवी पर, तो काहे 57 इंच में देखे जाएं. बवाल छोटे भले, 14 इंच में ही देख लो, या छह इंच के मोबाइल में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 2, 2019 5:38 AM

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

puranika@gmail.com

वह सेल्समैन अड़ा था कि मुझे 57 इंच का एचडी क्वालिटी का टीवी बेचेगा. मैंने निवेदन किया- नागिन, भूत, चुड़ैल, बेवफाई और नेता ही देखने हैं टीवी पर, तो काहे 57 इंच में देखे जाएं. बवाल छोटे भले, 14 इंच में ही देख लो, या छह इंच के मोबाइल में ही देख लो या देखो ही क्यों. टीवी सेल्समैन बोला- देखिए एचडी यानी हाई डेफिनिशन टीवी में देखिए, साफ दिखता है सब कुछ. बड़ी स्क्रीन में देखिये 57 इंच में, एकैदम वड्डा-वड्डा दिखेगा.

मैंने निवेदन किया- टीवी पर अधिकतर भूत, चुड़ैल, नागिन हैं, इन्हें बड़े में क्यों देखना. बड़ी नागिन देखकर क्या फायदा. टीवी सेल्समैन अड़ा हुआ था- देखिए आपको एचडी टीवी में नागिन उच्च क्वालिटी की दिखेगी. मैंने निवेदन किया- अबे पानी निम्न क्वालिटी का मिल रहा है. हवा एकैदम निम्न क्वालिटी की मिल रही है. ऐसे में उच्च क्वालिटी की नागिन देख कर क्या करूंगा. टीवी सेल्समैन बोला- देखिए उच्च क्वालिटी की नागिन देख कर आप बहुत थ्रिल महसूस करेंगे.

मैंने निवेदन किया- इन दिनों तो प्याज के भाव सुन कर ही थ्रिल टाइप फील आ जाता है. सौ रुपये किलो या 110 रुपये किलो. कहीं दो सौ रुपये किलो से ऊपर तो न निकल लिया, सस्पेंस थ्रिल सब आ जाता है, प्याज के भावों में. टीवी सेल्समैन ने कहा- हाॅरर का फील एचडी क्वालिटी में ज्यादा बढ़िया आता है, हाॅरर को एचडी में फील कीजिए.

मैंने निवेदन किया- बेट्टे, इन दिनों प्याज के भाव सुन लिया कर, रीयल बेसिस पर हॉरर का फील आता है. हॉरर के लिए एचडी में क्यों खर्च करूं. टीवी सेल्समैन प्रतिबद्ध था- देखिए सिर्फ एचडी की बात नहीं है, वड्डा-वड्डा दिखता है 57 इंच में. वड्डा-वड्डा देखिए.

मैंने निवेदन किया- वड्डा क्यों देखूं. यह बंदा चार अफेयर में धोखा कर चुका है. यह नागिन पांच को डस चुकी है. यह नेता छह पार्टियां बदल चुका है.

इन्हे वड्डे में देख कर क्या फायदा होना है. ये नेता तो लोकतंत्र का कैंसर हैं, इन्हें बिल्कुल ही न देखना चाहिए. नागिन, चुड़ैल और नेता में कंपेरीजन करें, तो नागिन और चुड़ैल चूंकि सिर्फ दर्शकों को बेवकूफ बनाती हैं, इसलिए उन्हें देखना या न देखना च्वाॅइस का मामला है. पर नेता तो देश को बेवकूफ बना रहे, इसलिए नेता को देखना तो जरूरी है. बवाल छोटा ही दिखे, तो अच्छा, काहे देखूं वड्डा. टीवी सेल्समैन बोला- आपको सिर्फ देखना ही है, कुछ कर तो सकते ही नहीं, तो देखने में तो बड़ा देखिए. जब बड़ा देखते हैं, तो लेवल अलग हो जाता है.

मुझे टीवी सेल्समैन एकदम राजनीतिक समीक्षक टाइप लगा. आम आदमी के हाथ में सिर्फ देखना होता है, कुछ करने का जिम्मा किसी और का है. देखो, देखो, और सिर्फ देखो, 21 इंच में देखो, 35 इंच में देखो, 57 इंच में देखो. देखने के अलावा कुछ और करने की जरूरत नहीं है. देखो, देखो, और घपलों को सिर्फ छोटी स्क्रीन में न देखो, 57 इंच में देखो. उसके झूठ को सिर्फ 21 इंच में क्यों, 57 इंच में देखो. आइए, 57 इंच की स्क्रीन में उच्च कोटि क्वालिटी में नीच नेता देखें.

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