प्राणघातक वायु प्रदूषण
दुनिया के एक बड़े हिस्से में निरंतर बढ़ते वायु प्रदूषण के खतरे गंभीर होते जा रहे हैं. इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान स्वास्थ्य पर इसके असर का उल्लेख भी होता रहता है, लेकिन एक हालिया अध्ययन की मानें, तो अब तक इस असर की भयावहता का जो आकलन है, उससे कहीं बहुत अधिक नुकसान […]
दुनिया के एक बड़े हिस्से में निरंतर बढ़ते वायु प्रदूषण के खतरे गंभीर होते जा रहे हैं. इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान स्वास्थ्य पर इसके असर का उल्लेख भी होता रहता है, लेकिन एक हालिया अध्ययन की मानें, तो अब तक इस असर की भयावहता का जो आकलन है, उससे कहीं बहुत अधिक नुकसान जहरीली हवा से हो सकता है. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शरीर की लगभग हर कोशिका प्रदूषित वायु से प्रभावित हो सकती है. इस अध्ययन का एक मुख्य आधार हवा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने के साथ अस्पतालों में मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी है.
इसमें यह भी पाया गया है कि प्रदूषण बढ़ने से मरनेवालों की तादाद भी बढ़ती है तथा उपचार पर खर्च में भी वृद्धि होती है. हमें पहले से इस बात की जानकारी है कि हृदयाघात, मस्तिष्क कैंसर, गर्भपात, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं, फेफड़े की बीमारियों आदि की एक वजह जहरीली हवा में सांस लेना भी है. हमारे देश के नीति-निर्धारकों को ऐसे अध्ययनों का गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर भारत में ही हैं. पिछले कुछ समय से उत्तर भारत समेत देश के अनेक हिस्सों में हवा में प्रदूषण की मात्रा लगातार बेहद खतरनाक स्तर पर बनी हुई है. प्रदूषित क्षेत्र में करोड़ों लोग बसते हैं और इन इलाकों में अन्य प्रकार के प्रदूषणों व संक्रमणों की समस्या भी चिंताजनक है.
आर्थिक रूप से कम विकसित होने तथा स्वास्थ्य सेवाओं की लचर व्यवस्था जैसी चुनौतियों का सामना भी ऐसे क्षेत्र के निवासियों को करना पड़ता है. हालांकि केंद्र व राज्य सरकारों ने वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए पहलकदमी की है और न्यायालयों ने भी इस मसले पर कड़ा रुख अपनाया है, किंतु ठोस नीतिगत पहलों और दीर्घकालिक योजनाओं का स्पष्ट अभाव है. पर्यावरण से जुड़ी अन्य समस्याओं की तरह प्रदूषण के भी अनेक कारण हैं और इस पर नियंत्रण पाना किसी एक या कुछ राज्य सरकारों के वश की बात नहीं है.
ऐसे में एक केंद्रीकृत प्रयास की आवश्यकता है, जो विभिन्न राज्यों व संस्थाओं के बीच समन्वय, संतुलन और निर्देशन की भूमिका निभा सके. राज्यों के बीच समुचित सहभागिता न होने का एक उदाहरण हम दिल्ली व आसपास के इलाकों में प्रदूषण बढ़ने के मामले में दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में तालमेल के अभाव के रूप में देख सकते हैं. इसी तरह से ऐसे कई राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समय पर न तो रिपोर्ट देते हैं और न ही उनके कामकाज में सक्रियता रहती है.
दुर्भाग्य से करोड़ों लोगों की जान खतरे में डालनेवाली समस्या को लेकर भी आरोप-प्रत्यारोप और दलगत राजनीति के पचड़े में समय एवं सामर्थ्य को बर्बाद कर दिया जाता है. आज जरूरत इस बात की है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ राज्यों के बोर्डों को अधिकार व संसाधन देकर जवाबदेह भी बनाया जाए. वायु प्रदूषण पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो इससे हमारे वर्तमान के साथ भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न लग जायेगा.