चीन के उगते सूरज को पकड़िए

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्त्री हमें अमेरिका से तात्कालिक मधुर संबंध बनाये रखते हुए चीन के उगते सूरज की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए, जैसे हम फैक्ट्री के लिए तकनीक अमेरिका से खरीदें, लेकिन पार्टनरशिप चीन के साथ करें. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी की यात्रा के पहले चीन के विदेश मंत्री वांग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 5, 2014 4:40 AM

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।

अर्थशास्त्री

हमें अमेरिका से तात्कालिक मधुर संबंध बनाये रखते हुए चीन के उगते सूरज की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए, जैसे हम फैक्ट्री के लिए तकनीक अमेरिका से खरीदें, लेकिन पार्टनरशिप चीन के साथ करें.

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी की यात्रा के पहले चीन के विदेश मंत्री वांग ली भारत आ चुके हैं. विश्व के इन दोनों ध्रुवों के बीच भारत को लुभाने की होड़ है. कैरी की यात्रा का तात्कालिक उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा की भूमिका तय करना है. अमेरिका का प्रयास है कि भारत अपने को अमेरिकी प्रभाव क्षेत्र में रखे और उसके साथ मिल कर चीन का सामना करे.

अब हमें तय करना है कि विश्व समुदाय के इन दो उभरते ध्रुवों में से किसे पकड़ेंगे. नि:संदेह आज विश्व में अमेरिका का बोलबाला है. अमेरिका की विकास दर लगभग 2 प्रतिशत है, जबकि चीन की 7 प्रतिशत. अत: कुछ वर्षो में चीन की अमेरिका से आगे निकलने की परिस्थिति बन रही है.

अमेरिका की समस्या ऋण की है. अर्थव्यवस्था में ऋण के भार का आकलन जीडीपी के संदर्भ में किया जाता है. जैसे टैक्सी मालिक की वार्षिक आय एक लाख रुपये हो, तो 5 लाख का ऋण भारी है. इसके सामने ट्राली मालिक की आय 20 लाख हो, तो वही 5 लाख का ऋण मामूली रह जाता है. अर्थशास्त्रियों की दृष्टि में देश का ऋण यदि जीडीपी से ज्यादा हो, तो अर्थव्यवस्था को कमजोर माना जाता है.

यहां बताना जरूरी है कि अमेरिकी सरकार का घाटा तेजी से घट रहा है. वर्ष 2012 में घाटा 106 हजार करोड़ डॉलर था, जो 2013 में 56 हजार करोड़ डॉलर रह गया. यूएसए टुडे के अनुसार, इस घटत के बावजूद कुल ऋण के बढ़ते जाने का अनुमान है. वर्तमान में अमेरिका का ऋण 17 हजार करोड़ डॉलर है, जो अगले दस वर्षो में 27 हजार करोड़ डॉलर होने का अनुमान है. अत: अमेरिका के ऋण के दलदल से निकलने की संभावना कम ही है. इसके विपरीत चीन एक ऋण शून्य देश है.

यूं समझें कि हमें घाटे में चल रहे एक बड़े बैंक तथा लाभ में चल रहे एक छोटे बैंक के बीच चयन करना है. मैं अपनी रकम लाभ में चल रहे बैंक में ही जमा कराना चाहूंगा, क्योंकि बीमार बैंक कभी भी धराशायी हो सकता है.

अमेरिका और चीन के बीच चयन करने का दूसरा आधार आधुनिक तकनीकें हैं. यहां भी वर्तमान में अमेरिका को बोलबाला है. उसकी ताकत तकनीकी आविष्कार है. इन आविष्कारों को बेच कर अमेरिका भारी मात्र में रायल्टी कमा रहा है. विश्व के निवेशक अमेरिका पर बढ़ते ऋण की अनदेखी कर रहे हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की पारंपरिक तकनीकी उत्कृष्टता पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. परंतु तकनीकी अविष्कार ढीले पड़ रहे हैं और ढीले पड़ते गये, तो अमेरिका को ऋण मिलना बंद हो जायेगा और उसकी अर्थव्यवस्था संकट में आ जायेगी.

अमेरिकी विश्वविद्यालयों में उत्तम शिक्षा मुहैया करायी जा रही है. वहां से निकले इंजीनियरों द्वारा सुपर कंप्यूटर जैसे उत्पादों का आविष्कार किया जा रहा है. परंतु इसमें चीन और भारत भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. ये देश विशिष्ट उच्च शिक्षण संस्थाओं में भारी निवेश कर रहे हैं, जिससे कि इनके ग्रेजुएट अमेरिका तथा यूरोप की प्रतिस्पर्धा में खड़े रह सकें. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में चीन अमेरिका से टक्कर लेने वाला है.

आज हमारी आइआइटी संस्थाओं के इंजीनियर विकसित देशों के बराबर हैं. इन्हीं के द्वारा नये अविष्कार किये जाते हैं. अत: नयी तकनीकों में अमेरिका की अग्रणी स्थिति का आधार खिसक रहा है. आनेवाले दशक में हम पायेंगे कि चीन तथा भारत में नयी तकनीकों का अविष्कार होगा.

अमेरिका में नयी तकनीकों के अविष्कार में विदेशी वैज्ञानिकों का विशेष योगदान है. साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका के अनुसार, अमेरिका में इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर साइंस तथा फिजिक्स में आधे से अधिक पीएचडी विदेशी छात्रों को दी जा रही है. पत्रिका ने खेद जताया है कि अमेरिकी करदाता द्वारा अदा किये गये टैक्स से विदेशी छात्रों को अमेरिका द्वारा उत्कृष्ट ज्ञान दिया जा रहा है.

ज्ञात हो कि वर्तमान समय में बड़ी संख्या में विदेशी छात्र शिक्षा प्राप्त करके वापस अपने देश लौट रहे हैं. ये छात्र अग्रणी तकनीकों को अपने साथ स्वदेश ला रहे हैं. अत: आगामी समय में अमेरिका को चीन व भारत से कड़ा सामना करना होगा.

अमेरिका और चीन के बीच चयन करने के लिए हमें तात्कालिक और दीर्घकालीन स्थितियों का अलग-अलग आकलन करना होगा. तात्कालिक स्थिति अमेरिका के पक्ष में है. अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. उच्च शिक्षा और तकनीकों में भी वह आगे है. परंतु दीर्घकालीन स्थिति इसके विपरीत है. अमेरिका भारी ऋण से दबा हुआ है और लंबे समय तक दबा रहेगा, जबकि चीन दूसरों को ऋण दे रहा है. चीन उच्च शिक्षा में अमेरिका की बराबरी की स्थिति में पहुंच गया है.

भविष्य में अमेरिका की तकनीकी उत्कृष्टता भी दबाव में आयेगी. अत: हमें अमेरिका से तात्कालिक मधुर संबंध बनाये रखते हुए चीन के उगते सूरज की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए, जैसे हम फैक्ट्री के लिए तकनीक अमेरिका से खरीदें, लेकिन पार्टनरशिप चीन के साथ करें.

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