आर राजागोपालन
वरिष्ठ पत्रकार
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झारखंड चुनाव के दौरान और देवेंद्र फडणवीस की गड़बड़ी से हुई महाराष्ट्र की राजनीतिक दुर्घटना के बाद कर्नाटक उपचुनाव में जीत भाजपा के लिए बहुत उत्साहवर्धक है. इस जीत के बाद राज्य कांग्रेस इकाई में इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया है.
लेकिन, इसका सबसे अधिक नुकसान एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (सेकुलर) को हुआ है. विपक्ष की ऐसी तबाही से अमित शाह को और अधिक ऊर्जा मिलेगी. कर्नाटक में मोदी रणनीति ने काम किया है. महाराष्ट्र की गड़बड़ी को कर्नाटक के क्षत्रप बीएस येदियूरप्पा के करो या मरो के संघर्ष ने भुला दिया है.
इस चुनाव में उन्हें सत्ता में बने रहने के लिए कम से कम छह सीटें जीतनी जरूरी थी. गौरतलब है कि कर्नाटक में 15 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 12 सीटों पर जीत हासिल की है और वहीं कांग्रेस ने मात्र दो सीटें जीती हैं. बाकी बची एक सीट पर निर्दलीय को जीत मिली है, जो भारतीय जनता पार्टी का ही बागी उम्मीदवार था.
क्या कर्नाटक की जीत का मतलब यह है कि भाजपा के क्षेत्रीय क्षत्रप मोदी-शाह की जोड़ी से आगे निकल रहे हैं? इस प्रश्न का उत्तर हां में हो सकता है. इसका कारण यह है कि यह बड़ी जीत येद्दि परिवार के लिए उपलब्धि है. स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री इस परिणाम से प्रसन्न हुए हैं और झारखंड की चुनावी सभा में उनके इस बयान से भी इसकी झलक मिलती है कि कांग्रेस और जनता दल (सेकुलर) को ‘पिछले दरवाजे से’ जनादेश की चोरी करने के लिए जनता ने ‘एक सबक सिखाया है’.
एक सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा- ‘कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने कर्नाटक में जनादेश का उल्लंघन किया था और पीठ में छूरा भोंकने का काम किया था. लोगों ने पार्टी को अब सबक सिखा दिया है. कुछ लोग कहते थे कि दक्षिण भारत में भाजपा का सीमित प्रभाव है, कर्नाटक के लोगों ने उपचुनाव में लोकतांत्रिक तरीके से उन्हें परास्त किया है और दंडित किया है.’
कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियूरप्पा आज एक प्रसन्न व्यक्ति हैं क्योंकि जुलाई में कांग्रेस और जनता दल (सेकुलर) के विरुद्ध तख्तापलट जैसा कारनामा करने और सरकार की बागडोर संभालने के बाद शायद पहली बार उनके चेहरे पर बड़ी मुस्कान तब दिखी, जब वोटों की गिनती के रुझान आने शुरू हुए.
खतरों के प्रति आगाह येदियुरप्पा कर्नाटक में भाजपा के एकमात्र राज्य स्तरीय नेता हैं और उन्होंने पार्टी के लिए उपचुनाव की सभी पंद्रह सीटों पर आक्रामक एवं विस्तृत ढंग से प्रचार किया था. अपने ही दल के नेताओं के विरोध और चेतावनी को अनसुना करते हुए उन्होंने अयोग्य ठहराये गये पंद्रह विधायकों में से तेरह को चुनावी मैदान में उतारा था.
उपचुनाव में येदियुरप्पा ने राष्ट्रीय मुद्दों को चतुराई से दरकिनार करते हुए स्थानीय मुद्दों को मुख्य कारक बनाया. मतदाताओं से एक भावनात्मक निवेदन में उन्होंने कहा था कि यह उनकी आखिरी पारी है और मतदाताओं को उन्हें वोट देना है, न कि उम्मीदवारों को. लिंगायत वर्चस्व वाली छह सीटों पर उन्होंने जाति का कार्ड खेला और मतदाताओं से अपनी जाति के बड़े नेता के मुख्यमंत्री कार्यालय में अंतिम कार्यकाल में साथ नहीं छोड़ने की अपील की.
ऐसा लगता है कि अयोग्य ठहराये गये सभी विधायकों को अपनी सरकार में कैबिनेट बनाने के येदियुरप्पा के वादे का भी फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला है. उन्होंने सही ही इसे जनता की जीत की संज्ञा दी है और कहा है कि वे अपने सभी वादे पूरा करेंगे तथा अब से वह शासन पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगे और राजनीति पर कम.
दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रचार अभियान का नेतृत्व भूतपूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या और पार्टी के राज्य अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव ने किया था. दल के अन्य शीर्ष नेताओं ने खुद को प्रचार से अलग रखा. उनका आरोप था कि इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस को ‘अगवा’ कर लिया है. उम्मीदवारों के अनुसार, पार्टी के पास स्पष्ट रणनीति का भी अभाव था, भले ही कांग्रेस यह आरोप लगाये कि भाजपा की जीत ‘नैतिकता पर धनबल की जीत है’.
बहरहाल, इस चुनाव में सबसे बड़ी हार जनता दल (सेकुलर) की हुई है. येदियुरप्पा के हाथों मुख्यमंत्री पर गंवानेवाले एचडी कुमारस्वामी टूटे-फूटे जनादेश की उम्मीद कर रहे थे. इस परिणाम के साथ भाजपा के बहुमत का आंकड़ा अकेले दम पर पार कर लेने के बाद ऐसी आशंका है कि जनता दल (सेकुलर) में बहुत जल्दी बिखराव हो सकता है.
जनता दल (सेकुलर) एक भी सीट पर जीत नहीं पायी है. परिणाम से हतप्रभ गौड़ा वंश ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाया है कि उसने उपचुनाव में वैधानिक रूप से निर्धारित सीमा से कहीं अधिक धन खर्च किया है. पूर्व मंत्री एचडी रेवन्ना ने कहा है कि चुनाव के दौरान समूची सरकारी मशीनरी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में काम कर रही थी.
दक्षिण भारत में राजनीतिक परिवेश चाहे जैसा है या भविष्य में होगा, कर्नाटक भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा के खाते में एक बड़ी उपलब्धि और डाल दी है. आज कर्नाटक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी उग्र हिंदुत्व विचारधाराओं की ठोस उपस्थिति का स्थान है.