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क्या फ्लिपकार्ट है अगला इन्फोसिस!

।। राजीव रंजन झा ।। संपादक, शेयर मंथन ..लेकिन, फ्लिपकार्ट अब भी घाटे में है, भले ही इसका घाटा पहले से कम हो गया है. यह हर महीने करीब 15 करोड़ रुपये का घाटा उठाती है. अमेरिका में इंटरनेट का भरा-पूरा विस्तार होने के बावजूद वहां अमेजन ढंग से मुनाफा नहीं कमा पा रही. इंटरनेट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 6, 2014 5:18 AM

।। राजीव रंजन झा ।।

संपादक, शेयर मंथन

..लेकिन, फ्लिपकार्ट अब भी घाटे में है, भले ही इसका घाटा पहले से कम हो गया है. यह हर महीने करीब 15 करोड़ रुपये का घाटा उठाती है. अमेरिका में इंटरनेट का भरा-पूरा विस्तार होने के बावजूद वहां अमेजन ढंग से मुनाफा नहीं कमा पा रही.

इंटरनेट पर खुदरा बिक्री (इ-रिटेलिंग) की प्रमुख वेबसाइट ‘फ्लिपकार्ट’ ने देश के शहरी क्षेत्रों में काफी हद तक अपनी पहुंच बना ली है. हाल में इसमें टाइगर ग्लोबल और नैपस्टर के नेतृत्व में निवेशकों के एक समूह ने एक अरब डॉलर यानी करीब 6,000 करोड़ रुपये का बड़ा निवेश किया है, जिसके बाद इसके संस्थापकों की तुलना इन्फोसिस के संस्थापकों से होने लगी है.

दरअसल, इस ताजा निवेश में फ्लिपकार्ट का मूल्यांकन लगभग सात अरब डॉलर यानी 42,000 करोड़ रुपये आंका गया है. इस मूल्यांकन से ‘फ्लिपकार्ट’ के संस्थापकों सचिन बंसल और बिन्नी बंसल को सबसे अमीर भारतीयों में गिना जाने लगा है. इस जोड़ी के पास ‘फ्लिपकार्ट’ की लगभग 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जिसका मूल्यांकन एक अरब डॉलर से कुछ ज्यादा बैठता है.

इस आधार पर वे इन्फोसिस के नारायणमूर्ति से थोड़े ही पीछे हैं, जिनके पास इन्फोसिस के लगभग 8,700 करोड़ रुपये के शेयर हैं. नंदन नीलकेणि की तो उन्होंने लगभग बराबरी कर ही ली है, जिनके पास इन्फोसिस के लगभग 6,500 करोड़ रुपये के शेयर हैं. दिलचस्प यह है कि इन्फोसिस के तीन दशकों के सफर के बाद नारायणमूर्ति और नीलकेणि जितनी बड़ी संपदा जुटा सके हैं, उतनी हैसियत फ्लिपकार्ट संस्थापकों की इस जोड़ी ने केवल छह साल में हासिल कर ली है.

हालांकि, वैश्विक स्तर पर बंसल-द्वय अभी फेसबुक संस्थापकों या चीन के अलीबाबा के संस्थापक से काफी पीछे हैं, लेकिन इतना तो है कि इंटरनेट उद्यमियों की वैश्विक कतार में अब उन्हें भी गिना जाने लगा है. बंसल बंधुओं ने अक्तूबर, 2008 में केवल चार लाख रुपये की शुरुआती पूंजी से ‘फ्लिपकार्ट’ की शुरुआत की थी.

उन्हें पहला बड़ा सहारा मिला जुलाई, 2010 में, जब टाइगर ग्लोबल ने ‘फ्लिपकार्ट’ में एक करोड़ डॉलर का निवेश किया. उसके बाद तो कंपनी लगातार बड़े निवेश आकर्षित करती चली गयी. केवल बीते तीन वर्षो के दौरान कंपनी ने अपनी सालाना बिक्री को करीब एक करोड़ डॉलर से बढ़ा कर दो अरब डॉलर यानी करीब 12,000 करोड़ रुपये पर पहुंचा लिया है.

भारत में इंटरनेट ने अभी-अभी तो वह जगह बनायी है, जहां लोग भरोसे से कह सकें कि इंटरनेट पर सामान खरीदे-बेचे जा सकते हैं. इसीलिए जब बंसल दावा करते हैं कि अगले 10 वर्षो में भारत में 100 अरब डॉलर वाली कई इंटरनेट कंपनियां होंगी, तो इसे हंसी में नहीं उड़ाया जा सकता.

हालांकि, फ्लिपकार्ट जैसी ही दूसरी प्रमुख वेबसाइट ‘स्नैपडील’ के संस्थापक कुणाल बहल ने फ्लिपकार्ट में हुए ताजा निवेश की घोषणा के बाद इसे मिले मूल्यांकन पर सवाल उठाया है. बहल कह रहे हैं कि ‘फ्लिपकार्ट’ को उसके निवेशकों ने उचित से ज्यादा मूल्यांकन दे दिया है. अब कोई हैरत में पड़ सकता है कि जिन खुर्राट निवेशकों का काम ही उद्यमों का मूल्यांकन करके उनमें पैसा लगाना हो, वे भला ‘फ्लिपकार्ट’ पर ऐसी मेहरबानी क्यों करेंगे! तो फिर कुणाल बहल ने ऐसी टिप्पणी क्यों की?

क्या इसे केवल ईष्र्या समझें? आखिर ‘फ्लिपकार्ट’ को ज्यादा मूल्यांकन मिलने से बहल की कंपनी ‘स्नैपडील’ को भी तो फायदा है, क्योंकि तुलनात्मक रूप से ‘स्नैपडील’ का भी मूल्यांकन बढ़ जाता है.

मई, 2014 में ‘फ्लिपकार्ट’ में रूसी अरबपति यूरी मिलनेर की अगुवाई में निवेशकों ने 21 करोड़ डॉलर का जो निवेश किया था, उसमें ‘फ्लिपकार्ट’ का मूल्यांकन लगभग तीन अरब डॉलर आंका गया था. इसलिए यह सवाल अस्वाभाविक नहीं होगा कि केवल दो महीनों में ऐसा कौन-सा चमत्कार हुआ, जिससे ‘फ्लिपकार्ट’ का मूल्यांकन दोगुने से भी ज्यादा हो गया!

लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि निजी स्वामित्व वाली ऐसी कंपनियों का मूल्यांकन पूरी तरह से खरीदनेवाले और बेचनेवाले के आपसी मोलभाव पर निर्भर करता है. इस मोलभाव का नतीजा इस बात पर निर्भर करता है कि निवेश करनेवाला ज्यादा तत्पर है, या निवेश मांगनेवाला.

इसलिए जो सबसे ताजा सौदा है, उसी को वर्तमान मूल्यांकन मानना होगा. कोई चाहे तो कह दे कि टाइगर ग्लोबल और दूसरे निवेशकों ने इस बार ‘फ्लिपकार्ट’ को ज्यादा पैसे दे दिये!

लेकिन, कहीं यह एक और अंधी दौड़ का नतीजा तो नहीं? क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2016 में भारत में इंटरनेट पर खुदरा बाजार (ऑनलाइन रिटेलिंग) 50,000 करोड़ रुपये का हो सकेगा. अतीत के अनुभव बताते हैं कि अक्सर ऐसे अनुमान वास्तविकता की तुलना में ज्यादा आशावादी होते हैं.

लेकिन अगर इसे सही मान लें, तो क्या पूरे बाजार के दो साल बाद के कारोबार के बराबर का मूल्यांकन आज ही किसी एक कंपनी को मिल सकता है, भले ही वह इस बाजार की सबसे बड़ी कंपनी हो?

फ्लिपकार्ट में इस बड़े निवेश का कारण यह है कि इंटरनेट पर खुदरा बिक्री के बाजार में प्रतिस्पर्धा तीखी हो रही है और खेल बड़ा हो गया है. ‘स्नैपडील’ के पीछे भी कम बड़े निवेशक नहीं हैं. इसे अंतरराष्ट्रीय कंपनी ‘इ-बे’ का सहारा मिला हुआ है. साथ ही ‘टेमासेक’ और ‘विप्रो’ के अजीम प्रेमजी जैसे बड़े निवेशक भी इसके साथ हैं.

वहीं अमेरिका में इंटरनेट पर किताबों की बिक्री की प्रणोता कंपनी ‘अमेजन’ खुद भारतीय बाजार में जोर-शोर से उतर चुकी है. अमेजन ने फ्लिपकार्ट में एक अरब डॉलर के निवेश की घोषणा के तुरंत बाद कह दिया कि वह भारतीय बाजार में दो अरब डॉलर का नया निवेश करने जा रही है.

मगर इतने बड़े खिलाड़ियों और फैलते कारोबार के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि इंटरनेट खरीदारी का कारोबारी मॉडल ठीक से जम गया है. फ्लिपकार्ट अब भी घाटे में है, भले ही इसका घाटा पहले से कम हो गया है. यह हर महीने करीब 15 करोड़ रुपये का घाटा उठाती है. अमेरिका में इंटरनेट का भरा-पूरा विस्तार होने के बावजूद वहां अमेजन ढंग से मुनाफा नहीं कमा पा रही.

एक और सवाल यह है कि क्या अब इंटरनेट व्यक्तिगत उद्यमिता का क्षेत्र रह गया है? करीब 15 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ बंसल युगल भले ही फ्लिपकार्ट के प्रतिनिधि चेहरे के रूप में देखे जायें, लेकिन वास्तव में कंपनी की कमान अब इसके बड़े निवेशकों के पास है. हां इतना जरूर है कि वे रोजमर्रा के कामकाज में दखल नहीं देंगे.

दूसरी बात यह कि इस बाजार में कल को कोई और सचिन, कोई और बिन्नी या कोई और कुणाल अपने किसी नये विचार के साथ उतरना चाहे, तो क्या यह संभव है? जहां अरबों डॉलर का खेल हो रहा हो, वहां अब चार लाख रुपये की पूंजी के साथ कोई नयी शुरुआत संभव हो पायेगी क्या?

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