चुनाव प्रचार में फिल्मी गाने

अभिजीत राय टिप्पणीकार abhijit@tatanagar.com इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनावी गानों के बहाने मतदाताओं का अच्छा-खासा मनोरंजन होता है. हमारी हिंदी फिल्में भी इस मामले में पीछे नहीं है. साठ और सत्तर के दशक की कई फिल्माें में गीतों के जरिये चुनाव प्रचार को गति देने का प्रयास किया गया है. संभवतः वर्ष 1969 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2019 1:00 AM
अभिजीत राय
टिप्पणीकार
abhijit@tatanagar.com
इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनावी गानों के बहाने मतदाताओं का अच्छा-खासा मनोरंजन होता है. हमारी हिंदी फिल्में भी इस मामले में पीछे नहीं है. साठ और सत्तर के दशक की कई फिल्माें में गीतों के जरिये चुनाव प्रचार को गति देने का प्रयास किया गया है.
संभवतः वर्ष 1969 से गीतों के माध्यम से चुनाव प्रचार करने की यह परंपरा हिंदी फिल्मों में शुरू हुई. इसी वर्ष फिल्मकार सत्येन बोस द्वारा निर्देशित फिल्म ‘आंसू बन गये फूल’ में पहली बार किशोर कुमार की आवाज में एक गीत सुनने को मिला, जिसके बोल थे इलेक्शन में मालिक के लड़के खड़े हैं, अरे इन्हें कम न समझो, ये खुद भी बड़े हैं, इनके सिवा वोट का हकदार कौन.
ताज भोपाली के लिखे इस गीत की धुन बनायी थी संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने. अशोक कुमार, प्राण, देव मुखर्जी, अलका कृष्ण अभिनीत इस फिल्म का निर्माण अशोक कुमार के छोटे भाई अभिनेता अनूप कुमार ने किया है. इसके बाद वर्ष 1972 में फिल्मकार तपन सिन्हा की फिल्म ‘जिंदगी-जिंदगी’ में एसडी बर्मन के संगीत निर्देशन में मन्ना डे ने गाया- कौन सच्चा है कौन झूठा है, पहले ये जान लो, फिर अपना वोट दो. इसे लिखा था आनंद बख्शी ने.
इसी साल तत्कालीन सुपरस्टार राजेश खन्ना, मुमताज की सुपरहिट फिल्म ‘अपना देश’ में किशोर कुमार, लता मंगेशकर की आवाज में एक गीत था- सुन री चंपा सुन तारा, कोई जीता कोई हारा. अगले वर्ष 1973 में फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी की सुपरहिट फिल्म ‘नमक हराम’ का गीत है- वो झूठा है वोट न उसको देना.
यह गीत भी अपने समय में काफी हिट रहा. आरडी बर्मन के संगीत निर्देशन में बनी इन दो गीतों की रचना भी लोकप्रिय गीतकार आनंद बक्षी ने ही की थी. वर्ष 1974 में आयी फिल्मकार मनमोहन देसाई की फिल्म ‘रोटी’ का गीत- यह जो पब्लिक है, सब जानती है, का फिल्मांकन भले ही चुनाव की पृष्ठभूमि में न किया गया हो, लेकिन गाने के बोल यह जरूर बता देते हैं कि राजनेता चाहे लाख कोशिश कर लें, लेकिन जनता से उनकी असलियत छुप नहीं सकती.
इस शृंखला में गीतकार गुलजार की लिखी व निर्देशित फिल्म ‘आंधी’ की कव्वाली अंदाज में बने गीत- सलाम कीजिए आली जनाब आये हैं, ये पांच सालों का देने हिसाब आये हैं, को भला कैसे भुलाया जा सकता है. आपातकाल में आयी फिल्म ‘आंधी’ को उस समय कोई खास सफलता नहीं मिली, लेकिन आपातकाल के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने फिल्म को दूरदर्शन पर दिखाने को मंजूरी दी थी.
फिल्मकार विजय आनंद की फिल्म ‘जान हाजिर है’ में भी जनता और नेता के बीच की तकरार को दिखाने के लिए एक गीत था. गीतकार शैलेंद्र के बेटे शैली शैलेंद्र के लिखे गीत- भांडे फूट जायेंगे, छक्के छूट जायेंगे, जनता शोर मचायेगी, चोर पकड़े जायेंगे, को गाया है अमित कुमार और मनहर उधास ने. संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी के साथ सहयोगी रहे जयकुमार पार्टे ने इस फिल्म को संगीत दिया था.

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