संविधान की भावनाओं से इतर फैसले
पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक pavankvarma1953@gmail.com जब सियासी दलों को अप्रत्याशित चुनावी सफलताएं मिल जाती हैं, तो प्रायः वे अपनी शक्ति के बारे में भ्रमित हो जाते हैं. इस वर्ष के आम चुनाव में अपनी कामयाबी के बाद भाजपा के साथ भी यही हुआ प्रतीत होता है. इसने यह यकीन कर लिया है […]
पवन के वर्मा
लेखक एवं पूर्व प्रशासक
pavankvarma1953@gmail.com
जब सियासी दलों को अप्रत्याशित चुनावी सफलताएं मिल जाती हैं, तो प्रायः वे अपनी शक्ति के बारे में भ्रमित हो जाते हैं. इस वर्ष के आम चुनाव में अपनी कामयाबी के बाद भाजपा के साथ भी यही हुआ प्रतीत होता है.
इसने यह यकीन कर लिया है कि अकेले उसे ही देश हित के संबंध में फैसले करने का अधिकार है, जिस पर सवाल उठाने का अधिकार किसी को भी नहीं है, क्योंकि अमित शाह के इस बयान को किसी अन्य तर्क पर आधारित नहीं किया जा सकता कि चूंकि वर्ष 2014 एवं 2019 के आम चुनावों में भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में यह शामिल था, अतः नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) को 130 करोड़ नागरिकों का समर्थन हासिल है.
यदि इस वर्ष के आम चुनावों के बाद भाजपा के एजेंडे पर गौर किया जाये, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि देश हित पर विचार किये बगैर यह पार्टी अपने घोषणापत्र के कार्यक्रमों को एक के बाद एक भयानक तेजी से लागू करती जा रही है.
अनुच्छेद 370 को इस पर उचित विमर्श किये बिना निरस्त कर दिया गया कि इस कदम के क्या नतीजे होंगे. इसी तरह तीन तलाक विधेयक को भी उन लोगों के रचनात्मक विचारों को समाहित किये बगैर पारित करा लिया गया, जो यह समझते थे कि यह दोषपूर्ण है. पार्टी की कार्रवाइयों में एक स्पष्ट अहंकार नजर आता है, जो बहसों, असहमतियों और यहां तक कि सदाशयी आलोचनाओं के लिए कोई अवकाश ही नहीं छोड़ता.
ऐसी क्रियाविधि ने देश में काफी अस्थिरताएं पैदा कर दी हैं. सीएबी को संसद द्वारा पारित उन अत्यंत अनावश्यक विधेयकों में ही गिना जाना चाहिए, जो बहुत विभाजक भी है.
यदि अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से शरण अथवा नागरिकता चाहनेवाले लोगों को नागरिकता देनी ही थी, तो पहले से मौजूद नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित कर ऐसा किया जा सकता था, पर वास्तविक उद्देश्य तो यह था कि श्रीलंका, नेपाल या म्यांमार को छोड़ते हुए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिमों अल्पसंख्यकों को धार्मिक आधार पर नागरिकता दी जाए.
यह पूरी तरह अस्वीकार्य तथा दोषपूर्ण विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत विहित उस प्रावधान के प्रत्यक्षतः विरुद्ध है, जो यह कहता है कि यह राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर भेद नहीं करेगा. सीएबी (अब सीएए) को उचित बताने को अमित शाह की दलील यह थी कि पाकिस्तान का सृजन इस्लामी देश के आधार पर किया गया था, इसलिए भारत को भी अपनी नागरिकता चाहनेवालों के साथ इसी तरह का धार्मिक भेद करना चाहिए.
संभवतः भाजपा को पूरी तरह यह नहीं समझ पाने के लिए माफ किया जाना चाहिए कि संविधान में निहित भारत के विचार का आधार क्या था? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ न तो स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा था, न ही उस विचार का, जिससे इस गणतंत्र को जीवंत करनेवाली भावना रूपायित हुई. भारत का विचार पाकिस्तान के विचार का ठीक विपरीत है.
हमारे संविधान का आधारभूत सिद्धांत सभी तरह की आस्थाओं के लिए सम्मान, सभी नागरिकों की समानता तथा धार्मिक आधार पर जनता को विभाजित करने की सियासत का जोरदार विरोध है. यही वजह है कि हमारा भारत फला-फूला और भारत ही रहा, पाकिस्तान नहीं बना.
सीएए और उससे भी अधिक हानिकारक राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) का लक्ष्य भारत को विभाजित कर यहां की शांति तथा सद्भाव को समाप्त करना है. सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी को असम के लिए सुनिश्चित किया था, पर इसने वहां भी मतभेद, प्रताड़ना एवं अस्थिरता को जन्म दिया.
विडंबना यह है कि वहां स्वयं भाजपा नेताओं ने ही इसे अस्वीकार कर दिया है. इसे पूरे देश तक विस्तारित करने का कोई भी न्यायिक आदेश नहीं है, मगर भाजपा इस पर अड़ी है कि वह पूरे देश में ऐसा ही करेगी. किस आधार पर? किस उद्देश्य के लिए? भाजपा का यह कदम खतरनाक व एकपक्षीय हैं, जहां राष्ट्रहित को इस पार्टी के लक्ष्यों के अधीन कर दिया गया है.
हिंदुओं समेत भारत के लोग इस सतत अशांति, मतभेद, कटुता एवं अस्थिरता का वातावरण नहीं चाहते. वे शांति एवं सुरक्षा के साथ जीवनयापन करते हुए एक स्थिर राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता के फायदे उठाते हुए अच्छी शिक्षा, समृद्ध अर्थव्यवस्था, रोजगार के अवसरों, सुगम सड़कों, निर्बाध बिजली, निकटस्थ अस्पतालों तथा नित्य के तीन आहारों के आनंद लेना चाहते हैं. यही वह एजेंडा है, जो भाजपा की प्राथमिकता में नहीं है.
अर्थव्यवस्था बिगड़ती जा रही है, कृषि पिछड़ रही है, कानून और व्यवस्था विघटित हो रही है और रोजगार अदृश्य हो रहे हैं, मगर भाजपा का सरोकार अनुच्छेद 370 के स्थगन, सीएए एवं एनआरसी से है, रोजगारों, आर्थिक प्रगति या सामाजिक समरसता से नहीं. नतीजे किसी के लिए भी साफ हैं. भारत के लोगों को मतभेद एवं समरसता, शांति तथा संघर्ष, समानता और भेदभाव, लोकतंत्र तथा अधिनायकवाद, स्थिरता एवं अस्थिरता और आर्थिक प्रगति तथा सामाजिक विभाजनशीलता के बीच अपनी पसंद स्पष्ट करनी ही चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)