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युवा जनसंख्या का लाभ

हमारी आबादी में निर्भर लोगों (14 साल या उससे कम और 65 साल से ज्यादा उम्र के) की तुलना में कामकाजी लोगों (15 से 64 साल उम्र के) की तादाद ज्यादा है. यह स्थिति पिछले साल से बनी है और 2055 तक इसके बरकरार रहने की उम्मीद है. देश की जनसंख्या के आधे हिस्से की […]

हमारी आबादी में निर्भर लोगों (14 साल या उससे कम और 65 साल से ज्यादा उम्र के) की तुलना में कामकाजी लोगों (15 से 64 साल उम्र के) की तादाद ज्यादा है. यह स्थिति पिछले साल से बनी है और 2055 तक इसके बरकरार रहने की उम्मीद है. देश की जनसंख्या के आधे हिस्से की आयु 26 साल से कम है तथा 2020 में 29 साल की औसत आयु होने की संभावना के साथ भारत दुनिया का सबसे युवा देश बन जायेगा. आबादी के हिसाब में ऐसे बदलाव को ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ यानी जनांकिक लाभांश कहा जाता है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की परिभाषा के अनुसार, इससे आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

हालांकि साढ़े तीन दशकों तक युवाओं की संख्या कार्यबल में जुड़ती रहेगी, लेकिन देश के सामने 2035 तक ही मौका है, क्योंकि उसके बाद से आबादी की औसत उम्र बढ़ने की गति तेज होने लगेगी. चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसी बड़ी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की सफलता में कामकाजी लोगों की आबादी अधिक होने के दौर का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

इतनी बड़ी आबादी के लिए अवसर उपलब्ध कराना बहुत बड़ी चुनौती है और अगर प्राथमिकता के साथ इस चुनौती का सामना नहीं किया गया, तो इस लाभांश से हाथ भी धोना पड़ सकता है. शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की समुचित व्यवस्था के बिना विकास प्रक्रिया में युवाओं का सही उपयोग संभव नहीं है. लगातार सुधारों के बावजूद हमारे प्रशासनिक ढांचे, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तंत्र की गुणवत्ता निराशाजनक है. तकनीक और वित्तीय सेवाओं की पहुंच बहुत सीमित है. कुपोषण, निर्धनता, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से पीछा नहीं छुड़ाया जा सका है. रोजगार की कमी तो है ही, शिक्षित युवाओं के बड़े हिस्से के पास दक्षता का अभाव भी है.

अर्थव्यवस्था की गिरावट का नकारात्मक असर आमदनी, रोजगार, बचत और उपभोग पर हो रहा है. सरकारी खर्च के अलावा कुल घरेलू उत्पादन के अन्य आधारों- निजी उपभोग खर्च, निवेश और निर्यात- की स्थिति चिंताजनक है. ऐसे में सरकारों तथा उद्योगों को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक नीतियां व कार्यक्रम तैयार करना चाहिए. सुधारों को तेज करने के साथ आर्थिकी की बेहतरी के लिए हो रहे उपायों को अमली जामा पहनाने पर जोर दिया जाना चाहिए. इसके साथ शिशुओं और बच्चों को स्वस्थ, सक्षम और कुशल बनाना चाहिए.

स्वास्थ्य बीमा, टीकाकरण, चिकित्सा केंद्रों की संख्या बढ़ाने, ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल उपलब्धता और स्वच्छता को प्राथमिकता देने जैसे सरकारी प्रयासों से भविष्य के लिए उम्मीदें जुड़ी हुई हैं. इसी तरह की कोशिशें शिक्षा व कौशल प्रशिक्षण में होनी चाहिए. पर्यावरण के संकट का भी संज्ञान लेना जरूरी है. यदि जनांकिक लाभांश के इस मौके को हमने खो दिया, तो विकास और समृद्धि के हमारे सपनों को साकार होने में बहुत लंबा समय लग जायेगा.

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