धूप वाले दिन

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kavitavikas28@gmail.com कश्मीर में बर्फ पड़ती है, तो दिल्ली कांपने लगती है. ऊपर से बारिश का कहर. ऐसे में खिली धूप कितनी शिद्दत से याद आती है. वही धूप जिसे गरमियों में देखकर हम सरपट छाया की तरफ दौड़ते हैं, मगर वह इन दिनों कितनी प्यारी लगती है. सरदी के दिनों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 20, 2019 5:35 AM
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
kavitavikas28@gmail.com
कश्मीर में बर्फ पड़ती है, तो दिल्ली कांपने लगती है. ऊपर से बारिश का कहर. ऐसे में खिली धूप कितनी शिद्दत से याद आती है. वही धूप जिसे गरमियों में देखकर हम सरपट छाया की तरफ दौड़ते हैं, मगर वह इन दिनों कितनी प्यारी लगती है.
सरदी के दिनों में जब तक धूप का आखिरी टुकड़ा रहता है, सब उसकी गरमी लेने के लिए उसके इर्द-गिर्द ही रहते हैं. जो लोग गांव से शहर आये हैं, वे बचपन की धूप, आंगन में बिछा पलंग और उस पर लेटकर धूप का आनंद लेना, मूंगफली, गजक, रेवड़ी, मूली, टमाटर, गाजर, संतरे, मटर खाना आदि नहीं भूलते हैं. गन्ने मिल जायें, तो कहने क्या.
हर काम के लिए धूप की बाट जोहना पड़ता है. धूप आये तो सिर धोयें, धूप आये तो तेल लगायें, दाल बीनें, गेहूं साफ करें, दही बिलोयें, रजाई में डोरे डालें, चिप्स बनायें, मूंग की बड़ियां तोड़ें आदि. न जाने ऐसे कितने काम जो आज के युवाओं को तो पता ही नहीं है. क्योंकि आज बहुत से खाद्य पदार्थ जो घरों में बनाये जाते थे, अब बाजार में मिलते हैं.
और हां, धूप में बैठी औरतों के वे समूह, जिनकी उंगलियां ऊन के फंदों और सलाइयों में उलझी रहती थीं और मुंह किसी की बुराई या भलाई में चलता रहता था, अद्भुत था. अब वह समय चाहे बीत गया हो, मगर धूप की चाहत में कोई कमी नहीं आयी है. कई दिनों तक बदली छायी रहे, धूप न निकले, तो लोग परेशान हो जाते हैं. हीटर में भला वह आनंद कहां. हालांकि महानगरों के घरों में धूप एक लग्जरी की तरह है. फ्लैट्स में धूप कम आती है.
फिर सुरक्षा कारणों या जगह की कमी से लोग जहां से धूप आ सकती है, उन बाल्कनियों को बंद कर देते हैं. हालांकि इन दिनों यह भी देखने में आता है कि लोग सवेरे घूमने के मुकाबले धूप में घूमना पसंद करते हैं, ताकि धूप का आनंद भी मिले और घूमना भी हो जाये. इन सरदियों में जानवर भी धूप सेकने के लिए धूप में लेटे नजर आते हैं.
दुष्यंत कुमार की कविता की ये पंक्तियां इन दिनों खूब याद आती हैं- ‘कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गये, कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गये.’ पहले बुजुर्ग अपने हाथ-पांव और हड्डियों के दर्द को कम करने के लिए धूप में बैठते थे. उसके ताप से उन्हें आराम मिलता था. इसका कारण विज्ञान ने बताया कि धूप या सूरज की रोशनी से विटामिन डी मिलता है, जो हड्डियों की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है.
नवजात शिशुओं को भी सरसों के तेल की खूब मालिश करके धूप में लिटा दिया जाता था. कहा जाता था कि इससे तेल उनके शरीर में अंदर तक चला जायेगा और बच्चे ताकतवर बनते हैं. बताया जाता है कि सूर्योदय के समय की सूरज की किरणों में सबसे अधिक विटामिन डी होता है. ईश्वर ने धूप के रूप में इसे मुफ्त में दिया है. लेकिन, लोगों का वश चले तो जैसे आजकल हवा को बेचा जा रहा है, धूप को भी बेचने और लाभ कमाने की तिकड़म भिड़ा लें.

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