घटती जीवन प्रत्याशा पर चिंता
जीवन पानी का बुलबुला है, क्षणिक अस्तित्व है, यह तो हम दार्शनिक भावों से स्वीकार करते हैं, परंतु वास्तविकता की धरातल पर इसे सच होता देखना दुखद है. लोगों की जीने की चाह भी घटती जा रही है. आजकल समाज में बढ़ते तनाव के कारण बच्चों, युवाओं, बुजुर्गों, बहन, बेटियों को अपने अनमोल जीवन की […]
जीवन पानी का बुलबुला है, क्षणिक अस्तित्व है, यह तो हम दार्शनिक भावों से स्वीकार करते हैं, परंतु वास्तविकता की धरातल पर इसे सच होता देखना दुखद है. लोगों की जीने की चाह भी घटती जा रही है.
आजकल समाज में बढ़ते तनाव के कारण बच्चों, युवाओं, बुजुर्गों, बहन, बेटियों को अपने अनमोल जीवन की इहलीला समाप्त करते देखता हूं, तो ऐसा लगता है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर भी अपने अद्वितीय कृति की दशा पर खून के आंसू रोता होगा. मिलावटी खाना, अनियमित जीवन शैली और तनाव जीवन की प्रत्याशा को पहले ही खत्म कर चुका है. जीवन के हर पल को ईश्वर का अनमोल तोहफा समझकर ‘जीत जायेंगे हम’ गीत गुनगुना कर आगे बढ़ते जाने की आवश्यकता है तभी मानव जीवन सार्थक हो पायेगा.
देवेश कुमार देव, गिरिडीह, झारखंड