प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त राजस्व से ही सार्वजनिक व्यय और कल्याण योजनाओं के लिए धन उपलब्ध होता है. अनेक देशों की तरह भारत में भी कराधान प्रणाली की जटिलता एक बड़ी समस्या रही है.
इस कारण कारोबारियों और कर संग्रहण से संबंधित विभागों के बीच विवाद होते रहते हैं. ऐसे में व्यापारिक लेन-देन और कमाई की सही जानकारी नहीं देने या समुचित कर देने में कोताही की प्रवृत्ति भी बढ़ती है.
पिछले कुछ सालों से वित्तीय नियमों व कराधान प्रक्रिया को सरल व पारदर्शी बनाने के अनेक प्रयास हुए हैं, जिनमें वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली (जीएसटी) एक प्रमुख पहल है, लेकिन वित्त मंत्रालय और राजस्व विभाग के सामने इस नये तंत्र को व्यवस्थित रूप से लागू करने की चुनौती के साथ एक बड़ी समस्या वर्षों से लंबित विवादों का निबटारा करना भी है. केंद्रीय शुल्क एवं सेवा कर के विवादों की वजह से बड़ी मात्रा में राजस्व की धनराशि सरकार को नहीं मिल पा रही है. इसके अलावा विभाग को इन विवादों पर भी समय और धन व्यय करना पड़ता है तथा नयी पहलों पर ठीक से अमल करने में अवरोध पैदा होता है.
इस स्थिति के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने सितंबर से दिसंबर तक एक विशेष योजना चला रही है, जिसमें इस वर्ष जून से पहले के सभी ऐसे लंबित विवादों को समाप्त करने और बकाया करों को जमा करने का अवसर कारोबारियों को दिया गया है. इसमें विवादित शुल्कों पर 70 प्रतिशत तक रियायत देने के साथ हर तरह के अर्थदंड, ब्याज और मुकदमे से भी संरक्षण दिया गया है. ‘सबका विश्वास’ नामक इस योजना में आयुक्त व ट्रिब्यूनल से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक चल रहे विवादों को शामिल किया गया है.
इस योजना का लाभ उठाने के इच्छुक कारोबारी जीएसटी की वेबसाइट पर जाकर आवेदन दे सकते हैं, जिसका संज्ञान लेने का उत्तरदायित्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को है. वर्ष 1998 में कर विवाद समाधान और 2013 में स्वेच्छा से घोषणा करने जैसी पहलें हो चुकी हैं, लेकिन उनका दायरा सीमित था. इस कारण सफल होने के बावजूद वे योजनाएं बहुत प्रभावी नहीं हो सकी थीं. इस दृष्टि से सबका विश्वास योजना सही मायने में व्यापारियों के लिए अभूतपूर्व अवसर है.
इससे न केवल सरकार लंबित विवादों की बोझिल विरासत से पिंड छुड़ा सकेगी, बल्कि व्यापारी पर पुरानी झंझटों से छुटकारा पाकर अपने कारोबार के वर्तमान व भविष्य पर पूरा ध्यान दे सकेंगे. मामलों की सुनवाई कर रही संस्थाओं व न्यायालयों का भार भी कम होगा. दिसंबर के मध्य तक लगभग 60 हजार आवेदन आ चुके हैं और सरकार को इनसे साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये के आसपास राजस्व मिलने का अनुमान है.
आशा है कि शेष बचे सप्ताह में बड़ी संख्या में कारोबारी स्वेच्छा से घोषणाएं करेंगे और लंबित मामलों में सुलह के लिए आवेदन देंगे. जानकारों की मानें, तो अगले बीस-तीस साल तक ऐसी कोई योजना नहीं आयेगी, सो कारोबारियों को इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए.