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सुस्ती को पटखनी देने का वक्त

आलोक जोशी वरिष्ठ पत्रकार alok.222@gmail.com कारोबारी लोग कह रहे हैं धंधा अच्छा दिख रहा है, लेकिन बड़ी कंपनियों के लोग, उद्योग संगठन और अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि ग्रीन शूट्स दिख रहे हैं. खेती-बाड़ी की जबान में हरियाली के निशान दिखने लगे हैं या अंकुर निकलने लगे हैं. इन सबका अर्थ एक ही है कि […]

आलोक जोशी

वरिष्ठ पत्रकार

alok.222@gmail.com

कारोबारी लोग कह रहे हैं धंधा अच्छा दिख रहा है, लेकिन बड़ी कंपनियों के लोग, उद्योग संगठन और अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि ग्रीन शूट्स दिख रहे हैं. खेती-बाड़ी की जबान में हरियाली के निशान दिखने लगे हैं या अंकुर निकलने लगे हैं. इन सबका अर्थ एक ही है कि अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन आनेवाले हैं. वहीं दूसरी तरफ चिंताओं का अंबार भी बढ़ रहा है और लगता है कि अच्छे दिनों का नामलेवा अब कोई नहीं है!

फिलहाल चारों तरफ त्राहि-त्राहि मची है. राहुल बजाज जैसे दिग्गज कह चुके हैं कि सब डरते हैं, कोई कुछ नहीं बोलेगा. मगर लोग अब बोलने लगे हैं.

कोई खराब बोल रहा है, तो कोई अच्छा बोल रहा है. हालात भ्रम फैलानेवाले ज्यादा हैं, सफाई देने या हौसला पैदा करनेवाले कम. एक बात साफ है. कोई उम्मीद तभी जगेगी, जब आर्थिक मोर्चे से कोई अच्छी खबर आयेगी. बाकी लोगों के साथ ही यह बात अब सरकार में बैठे लोग भी कहने लगे हैं. मोदी सरकार में परिवहन मंत्रालय के काम की लगातार तारीफ होती रही है. इसके मंत्री नितिन गडकरी ने भी अब साफ कह दिया है कि अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक है.

यह बयान चिंता बढ़ानेवाला है. पहले ही अर्थशास्त्री और उद्योग-व्यापार से जुड़े लोग शिकायत कर रहे थे कि देश में भरोसे की कमी हो गयी है. लोग खर्च नहीं कर रहे, व्यापारी कर्ज नहीं ले रहे और नतीजा अर्थव्यवस्था की तरक्की की रफ्तार कम होती जा रही है. रेटिंग एजेंसी फिच ने इस साल ग्रोथ की रफ्तार 4.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. उधर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से भी संकेत आ रहे हैं कि अगली रिपोर्ट में वह भारत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान गिरा सकता है.

दुनिया की बड़ी कंपनियों में शुमार यूनिलीवर ने भारत के बाजार में कमजोरी देखते हुए अपने कारोबार में बढ़त का अनुमान घटा दिया है. साफ है कि बाजार में मांग नहीं है.

अगर साबुन-तेल जैसी जरूरी चीजों की मांग नहीं है, तो फिर रेडिमेड कपड़ों, घड़ी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन और गाड़ियों जैसी चीजों की मांग कैसे होगी? जानकार एक ही बात कह रहे हैं कि सरकार को सब कुछ छोड़कर विकास की रफ्तार बढ़ाने पर जोर देना चाहिए. हालांकि, बजट के बाद सरकार ने रोलबैक के अंदाज में जो पहला सुधार किया, वह कंपनियों के टैक्स में कटौती ही था. उद्योग जगत बहुत समय से यही मांग कर रहा था.

तब से शेयर बाजार में तेजी भी दिख रही है. लेकिन, स्लोडाउन या मंदी का डर बढ़ रहा है. इसलिए प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि उद्योगपति हिम्मत दिखायें और खुलकर निवेश करें. प्रधानमंत्री का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी ताकत दिखा रही है और मंदी या सुस्ती को पटखनी देने का वक्त आ गया है.

राहुल बजाज ने जिस अंदाज में गृहमंत्री अमित शाह के सामने सवाल उठाये, उससे सरकार और उद्योग जगत में भी बहुत से लोग असहज महसूस कर रहे हैं, यह साफ दिखता है. हालांकि, किसी ने राहुल बजाज को गलत बताने की हिम्मत तो नहीं दिखायी, लेकिन यह कहनेवाले भी अनेक हैं कि कहीं कोई डर का माहौल नहीं है.

उधर सरकार की तरफ से भी पूरा दम लगाया जा रहा है. खबर है कि पच्चीस बड़ी कंपनियों से सीधी बातचीत चल रही है, ताकि समझा जा सके कि वे कहां कितना पैसा लगाने की योजना बना रही हैं. अगर उन्हें कहीं कोई दिक्कत दिख रही है, तो उसे दूर किया जाये. इससे एक बात तो साफ दिखती है कि सरकार अब स्लोडाउन की चर्चा को हवा में नहीं उड़ा रही. वह चिंतित है और मुकाबले की तैयारी कर रही है.

उद्योगपति भी तैयारी में हैं कि इस मौके का फायदा उठा लें. जहां एक तरफ बड़ी कंपनियां सरकार से अपनी मुश्किलें दूर करवाने की कोशिश में हैं, वहीं ऐसे बयान भी आने लगे हैं, जिससे माहौल में सुधार का एहसास हो. पिछले हफ्ते सीआईआई की एफएमसीजी समिट में यह बात कई लोगों ने कही कि अब ग्रीन शूट्स यानी सुधार के संकेत दिखने लगे हैं. नेस्ले के सीएमडी सुरेश नारायणन ने कहा कि उनकी कंपनी में तो सोच ही यही है कि जीडीपी की चिंता अर्थशास्त्रियों के लिए छोड़ दी जाये और अपना ध्यान सिर्फ अपने काम पर रखा जाये.

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि नये प्रोजेक्ट्स के लिए बैंकों से जो लोन पास हुए हैं और कंपनियां जिस तरह अचल संपत्ति यानी फैक्ट्री और इमारतों पर खर्च बढ़ा रही हैं, उसे देख कहा जा सकता है कि कहीं कुछ नये अंकुर फूटते दिख रहे हैं. देखना यह है कि ये कितने टिकाऊ होते हैं. अगले तीन से छह महीने तक यही रुख जारी रहा, तभी माना जा सकेगा कि अर्थव्यवस्था सुधार की ओर है.

जानकारों का कहना है कि इस वक्त रिजर्व बैंक के हाथ में बहुत कुछ करने की गुंजाइश नहीं है. अब तो सरकार को ही कदम उठाने हैं और उसका सबसे बड़ा कदम अपना खजाना खोलकर खर्च करना ही होगा. सरकार के पास सबसे प्रभावी रास्ता तो मनरेगा और किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं पर खर्च बढ़ाना है. क्योंकि इससे निकली रकम तुरंत घूमकर बाजार में आ जाती है. सरकार अगर राज्यों को ज्यादा से ज्यादा पैसा दे, तो अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने की रफ्तार बढ़ सकती है.

हालांकि, अब सब कुछ बजट के ही भरोसे है और इसीलिए अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि अब जो सुधार होगा, अगले वित्त वर्ष से पहले उसका असर दिखायी नहीं पड़ेगा. अभी तो सिर्फ भरोसा जगाया जा सकता है, उम्मीद जगायी जा सकती है.

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