बैंकों की बेहतरी

अर्थव्यवस्था की चिंताओं के बीच सार्वजनिक बैंकों की सेहत में सुधार की राहत भरी खबर भविष्य के लिए भरोसा जगाती है. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में 13 बैंकों ने मुनाफा कमाया है. वित्तीय तंत्र को अनुशासित और पारदर्शी बनाने के इरादे से बीते सालों में सरकार द्वारा सुधार के अनेक प्रयास हुए हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 30, 2019 7:32 AM

अर्थव्यवस्था की चिंताओं के बीच सार्वजनिक बैंकों की सेहत में सुधार की राहत भरी खबर भविष्य के लिए भरोसा जगाती है. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में 13 बैंकों ने मुनाफा कमाया है. वित्तीय तंत्र को अनुशासित और पारदर्शी बनाने के इरादे से बीते सालों में सरकार द्वारा सुधार के अनेक प्रयास हुए हैं. ये प्रयास अब भी जारी हैं. इसका एक सकारात्मक परिणाम बैंकों के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के दबाव में कमी के रूप में सामने आया है. फंसे हुए कर्ज की वसूली न हो पाने से बैंक पूंजी के संकट से जूझ रहे थे और इस वजह से उनके पास नये कर्ज देने की गुंजाइश भी कमतर हो गयी थी.

हालांकि अब भी यह समस्या बहुत गंभीर है, लेकिन फंसे हुए कर्ज की राशि इस साल सितंबर में घट कर 7.27 लाख करोड़ के स्तर पर आ गयी है, जो 2018 के मार्च में 8.96 लाख करोड़ रुपये थी. इससे इंगित होता है कि वसूली के उपाय, नियमन, बैंकों के प्रबंधन को दुरुस्त करने तथा दिवालिया कानून जैसे उपाय अपना असर दिखाने लगे हैं.

पिछले वर्षों में सरकार द्वारा समुचित पूंजी मुहैया कराये जाने से बैंकों का कामकाज भी सुचारु रूप से चलता रहा है. एस्सार मामले के निबटारे से बैंकों को लगभग 39 हजार करोड़ रुपये मिले हैं. इसके अलावा बीते साढ़े चार साल में 4.53 लाख करोड़ रुपये की वसूली भी हुई है. पिछले तीन वित्त वर्षों में बैंकों ने 2.3 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति भी जब्त की है. इन कारकों की वजह से कई बैंकों का हिसाब अब फायदे में बदलने लगा है.

सुदृढ़ बैंकिंग प्रणाली अर्थव्यवस्था का सबसे अहम आधार होती है. अनेक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारणों से हमारी आर्थिकी की बढ़त में कमी आयी है. ऐसे में मांग और उपभोग का स्तर बढ़ाने तथा उद्यमों, उद्योगों व निवेश के लिए नकदी उपलब्ध कराने में बैंकों की अग्रणी भूमिका है, लेकिन चुनौतियों के बादल अब भी मंडरा रहे हैं. रिजर्व बैंक ने अंदेशा जताया है कि कमजोर अर्थव्यवस्था और सिकुड़ते कर्ज की वजह से एनपीए का अनुपात बढ़ सकता है.

यह अनुपात सितंबर में 9.3 फीसदी था, जो अगले वर्ष सितंबर में 9.9 फीसदी हो सकता है. ऐसे में सार्वजनिक बैंकों को कामकाजी घाटे को रोकने के लिए समुचित नकदी रखने तथा उद्योगों को सक्षम प्रबंधन पर ध्यान देने की रिजर्व बैंक की सलाह बहुत महत्वपूर्ण है. पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक के घोटाले ने डेढ़ हजार से अधिक शहरी सहकारी बैंकों में व्याप्त अव्यवस्था को उजागर किया है.

इस बैंक में अरबों रुपये का घाटा झेल रही एक कंपनी को दिये गये कर्ज को 21 हजार फर्जी खातों के जरिये छुपाने की कोशिश की गयी थी. अब सरकार व रिजर्व बैंक सहकारी बैंकों से जुड़े नियमों में ठोस बदलाव की तैयारी में हैं. फर्जीवाड़े के 90 फीसदी मामले कर्ज से जुड़े हैं. इसके अलावा, ग्राहकों से भी ठगी की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. सुधार और मुस्तैदी से ही चुनौतियों का समाधान हो सकेगा.

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