पिछले सबक और नये संकल्प
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in पिछले साल के जाने और नये साल के आगमन पर अमृता प्रीतम की कविता है जैसे दिल के फिकरे से, एक अक्षर बुझ गया जैसे विश्वास के कागज पर, सियाही गिर गयी जैसे समय के होठों से, एक गहरी सांस निकल गयी और आदमजात की आंखों में, […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
पिछले साल के जाने और नये साल के आगमन पर अमृता प्रीतम की कविता है
जैसे दिल के फिकरे से, एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के कागज पर, सियाही गिर गयी
जैसे समय के होठों से, एक गहरी सांस निकल गयी
और आदमजात की आंखों में, जैसे एक आंसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया
पिछला साल विदा ले रहा है और नये साल का आगाज नयी उम्मीदों के साथ हो रहा है. यह समय पिछली घटनाओं पर नजर डालने का है, ताकि नये साल में उससे कुछ सबक लिया जा सके. साथ ही भविष्य की योजनाओं के निर्माण का भी यह वक्त है. हर साल अनेक उतार-चढ़ाव और खट्टे-मीठे अनुभव देकर जाता है, लेकिन उम्मीदें नहीं टूटनी चाहिए. यही वजह है कि पूरी दुनिया नये साल का जोशोखरोश के साथ स्वागत करती है. जिंदगी में उतार-चढ़ाव जीवन का अभिन्न अंग हैं.
इनसे बचा नहीं जा सकता है, लेकिन नया साल हमें एक नयी शुरुआत करने को प्रेरित करता है. पिछले खट्टे-मीठे अनुभव हमें सुंदर, सुखद और न्यायपूर्ण भविष्य का निर्माण करने में मदद कर सकते हैं. झारखंड में नये साल में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नयी सरकार ने सत्ता संभाली है, तो दूसरी ओर इस साल केंद्र में मोदी सरकार को दूसरा कार्यकाल मिला है. दोनों सरकारों से लोगों को भारी उम्मीदें हैं.
महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती हमने मनायी. ऐसे भी अनेक लोग हैं, जो गांधी को अप्रासंगिक मान बैठे हैं. मौजूदा दौर में गांधी के सिद्धातों और आदर्शों की जरूरत एक बार फिर बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही है. इस दौर की चुनौतियां की काट महात्मा गांधी के पास ही है. गांधी को अपने हिंदू होने पर गर्व था और वे अत्यंत धर्मनिष्ठ हिंदू थे, परंतु उन पर अन्य धर्मों का प्रभाव भी था.
गांधी का कहना था कि उनकी आस्था सहिष्णुता पर आधारित है. महात्मा गांधी के पास अहिंसा, सत्याग्रह और स्वराज नाम के तीन हथियार थे. सत्याग्रह और अहिंसा के उनके सिद्धांतों ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को अपने अधिकारों और अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी. यही वजह है कि इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन अहिंसा के आधार पर लड़ा गया. महात्मा गांधी ने अपना पूरा जीवन अहिंसक समाज के निर्माण में लगाया.
भारतीय लोकतंत्र धार्मिक समरसता और विविधता में एकता की मिसाल है. यहां अलग-अलग जाति, धर्म, संस्कृति को मानने वाले लोग वर्षों से बिना किसी भेदभाव के रहते आये हैं. भारत जैसी विविधिता दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलती.
यह भारत की बहुत बड़ी पूंजी है और यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि इसे बचा कर रखें. दुर्भाग्यवश आजादी के 72 साल बाद देश में भीड़ की हिंसा जैसा मुद्दा हमारे सामने जीवित है. समाज को इस पर चिंतन करना होगा. इन घटनाओं से सीधे तौर से हम और आप जैसे आम लोग जुड़े हैं, पर दुर्भाग्य यह है कि ये मामले रह-रह कर हमारे सामने आ रहे हैं. ऐसी घटनाओं से देश का माहौल खराब होता है. सभ्य समाज में ऐसी घटनाएं स्वीकार्य नहीं हैं.
जीवन के हर क्षेत्र में पीढ़ियों का परिवर्तन हमेशा मुश्किल होता है. इसके लिए साहसिक पहल की जरूरत होती है. भारत आज विश्व में सब से अधिक युवा आबादी वाला देश है, लेकिन युवा शक्ति को अवसर नहीं मिल रहे हैं. मैं इस पक्ष में हूं कि पुरानी पीढ़ी के अनुभव का हमें लाभ उठाना चाहिए, लेकिन पीढ़ियों के परिवर्तन के लिए हमें साहसिक कदम उठाने होंगे.
सरकारी व निजी क्षेत्र की नौकरी से आदमी 58 या फिर 60 साल की उम्र में रिटायर होता है. मेरा मानना है कि यह नियम राजनीति के क्षेत्र में भी लागू होना चाहिए. राजनीति में उम्र की सीमा नहीं होती. भले ही आप शारीरिक और मानसिक रूप से उतने चैतन्य न रहें. यही वजह है कि सभी राजनीतिक दलों में बूढ़े नेता सत्ता से चिपके रहते हैं. कोई नेता रिटायर होना ही नहीं चाहता है. इस दिशा में साहसिक कदम उठाए जाने की जरूरत है.
हम लोगों को इस बात का एहसास नहीं है कि टेक्नोलॉजी कितनी तेजी से हम सबको अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है. इसका दुष्परिणाम यह है कि हम सब एक आभासी दुनिया में जीने लगे हैं. यह हमें लत लगा देती है. क्या युवा, क्या बुजुर्ग तकनीक के एक छोटे से खिलौने, मोबाइल से हमारा सोना-जागना, पढ़ना-लिखना और खान-पान सब प्रभावित हो जाता है.
हम सब बेगाने से होते जा रहे हैं. यह जान लीजिए कि टेक्नोलॉजी दोतरफा तलवार है. एक ओर जहां यह वरदान है, तो दूसरी ओर मारक भी है. टेक्नोलॉजी के प्रभाव से कोई भी मुक्त नहीं रह सकता है. दिक्कत यह है कि हम सब यह चाहते हैं कि देश में आधुनिक टेक्नोलॉजी आए, पर उसके साथ किस तरह तारतम्य बिठाना है, इस पर विचार नहीं करते. हमें नयी परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के विषय में सोचना होगा. यह समस्या पूरी दुनिया की है.
सभी देश इससे जूझ रहे हैं, लेकिन वे समस्या का समाधान निकाल रहे हैं. एक हल तो यह है कि लोग सीमित समय तक ही मोबाइल पर वक्त बिताएं. कुछ समय बाद कंप्यूटर अथवा मोबाइल पर अपने आप चेतावनी सामने आए, लेकिन भारत में अब तक इस दिशा में कोई विमर्श नहीं हुआ है.
प्रदूषण इस देश के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है. दिल्ली की स्थिति इतनी खराब है कि प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट को वहां हेल्थ इमरजेंसी घोषित करनी पड़ी थी. दिल्ली एनसीआर में सभी निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और स्कूलों को बंद कर दिया गया था. बावजूद इनके, दिल्ली की आबोहवा में सुधार का कोई संकेत नहीं हैं. दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति गंभीर तो है ही, बिहार और झारखंड के कई शहरों में भी हालात बहुत बेहतर नहीं हैं.
पिछले दिनों पटना से खबरें आयीं कि वहां वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक हुई है. देश के विभिन्न शहरों से प्रदूषण को लेकर पिछले कई वर्षों से लगातार चिंताजनक रिपोर्टें आ रही हैं, लेकिन स्थिति जस-की-तस है. हम इस ओर आंख मूंदे हैं. कोई चिंता नहीं जतायी जा रही है. समाज में भी इसको लेकर कोई विमर्श नहीं हो रहा है. गंभीर सवाल है कि क्या हम किसी हादसे के बाद ही चेतेंगे? हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहने की स्थिति किसी भी देश के लिए बेहद चिंताजनक हैं. अगर व्यवस्था ठान ले, तो परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है.
और अंत में हरिवंश राय बच्चन की कविता की चंद लाइनें
वर्ष पुराना, ले, अब जाता
कुछ प्रसन्न-सा, कुछ पछताता
दे जी भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
उठ इसका स्वागत करने को
स्नेह बाहुओं में भरने को
नये साल के लिए, देख, यह नयी वेदनाएं लाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!