भारत का समतामूलक समाज

भारतीय समतामूलक समाज का मूलमंत्र है- ‘संतोषम् परमम् सुखम्’. धार्मिक वैमनस्यता की रागिनी ज्यादा दिन तक नहीं गायी जा सकती. भारतीय समतामूलक समाज में धार्मिक व जातीय सह-अस्तित्व को भारतीय जनमानस ने करके दिखाया है. भारत की सहृदय जनता ने यहां आये हूणों, मंगोलों, तुर्कों, कबाइलियों, तातारों, पुर्तगालियों, ईसाइयों आदि सभी को अपने समाज में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 31, 2019 7:52 AM

भारतीय समतामूलक समाज का मूलमंत्र है- ‘संतोषम् परमम् सुखम्’. धार्मिक वैमनस्यता की रागिनी ज्यादा दिन तक नहीं गायी जा सकती. भारतीय समतामूलक समाज में धार्मिक व जातीय सह-अस्तित्व को भारतीय जनमानस ने करके दिखाया है. भारत की सहृदय जनता ने यहां आये हूणों, मंगोलों, तुर्कों, कबाइलियों, तातारों, पुर्तगालियों, ईसाइयों आदि सभी को अपने समाज में रचा-बसा लिया है.

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के नाम का सहारा लेकर उनके कुछ कथित ध्वजाधर्मवाहक अनुयायी आज माहौल खराब कर रहे हैं. वे भूल जाते हैं कि प्रभु श्रीराम समतामूलक समाज के सबसे जबर्दस्त हिमायती रहे हैं. रावण जैसे ताकतवर राजा से युद्ध करने के लिए उन्होंने इस देश के सभी समाज के लोगों से सहयोग लिया था, मगर आज केंद्र की हमारी सरकार इसके विपरीत दिख रही है और सहृदय जनता को सुशासन देने के बजाय उसमें असंतोष की वाहक बन रही है.

निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

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