न हो बच्चों की मौत पर राजनीति
कोटा के अस्पताल में बड़ी संख्या में नवजात बच्चों की मौत की खबर आने के साथ ही आरोप-प्रत्यारोप की ओछी राजनीति शुरू हो गयी.इसे लाशों पर राजनीति ही कहा जायेगा. इस तरह के दुखद मामलों पर एक-दूसरे आरोप लगाकर राजनीतिक लाभ लेनेवाली राजनीति देश को शर्मसार ही करती है. ऐसी राजनीति से बचने की नसीहत […]
कोटा के अस्पताल में बड़ी संख्या में नवजात बच्चों की मौत की खबर आने के साथ ही आरोप-प्रत्यारोप की ओछी राजनीति शुरू हो गयी.इसे लाशों पर राजनीति ही कहा जायेगा. इस तरह के दुखद मामलों पर एक-दूसरे आरोप लगाकर राजनीतिक लाभ लेनेवाली राजनीति देश को शर्मसार ही करती है. ऐसी राजनीति से बचने की नसीहत वे नहीं दे सकते, जो खुद ऐसा करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. जब गोरखपुर के एक अस्पताल में कोटा की तरह बच्चों की मौत का मामला सामने आया था, तो उसके बहाने राजनीति चमकाने की भद्दी होड़ मची थी.
जैसे वह राजनीति निदंनीय थी, वैसे ही कोटा के मामले में हो रही राजनीति भी निंदनीय है. सरकारी तंत्र की ढिलाई और लापरवाही को उजागर किया ही जाना चाहिए, लेकिन इसी के साथ कोशिश होनी चाहिए कि बदहाली के आलम से छुटकारा कैसे मिले? अस्पतालों की तरह स्कूल, सार्वजनिक परिवहन के साधन आदि भी दयनीय दशा से दो-चार हैं और इसके लिए राजनीति ही अधिक जिम्मेदार है.
डॉ हेमंत कुमार, भागलपुर, बिहार