ताकि समृद्ध हो ज्ञान-परंपरा

शफक महजबीन टिप्पणीकार mahjabeenshafaq@gmail.com पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर टहल रही थी. हेयर ड्रेसर सैलून वाली वह तस्वीर केरल की थी, जिसमें नाई एक आदमी का बाल काटता दिख रहा है, वहीं उसके पीछे बाल कटवाने के लिए अपनी बारी के इंतजार में बैठा दूसरा आदमी किताब पढ़ रहा है. सैलून में एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 9, 2020 3:58 AM
शफक महजबीन
टिप्पणीकार
mahjabeenshafaq@gmail.com
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर टहल रही थी. हेयर ड्रेसर सैलून वाली वह तस्वीर केरल की थी, जिसमें नाई एक आदमी का बाल काटता दिख रहा है, वहीं उसके पीछे बाल कटवाने के लिए अपनी बारी के इंतजार में बैठा दूसरा आदमी किताब पढ़ रहा है. सैलून में एक बड़ा-सा बुकशेल्फ है, जिसमें सैकड़ों किताबें रखी हुई हैं.
तस्वीर का मतलब साफ है कि सैलून में बाल कटवाने आनेवाले लोग इंतजार के लम्हों में किताब पढ़ें. यह एक शानदार पहल है. सैलून वाली लाइब्रेरी की इतनी खूबसूरत तस्वीर मैंने पहली बार देखी थी. उस शख्स की सोच कितनी उम्दा होगी, जिसने अपने सैलून में किताबों की लाइब्रेरी बना रखी हो.
मैं जब अपने शहर की गलियों और बाजारों से गुजरती हूं, तो वहां देखती हूं कि सैलूनों में एलईडी टीवी पर कोई फिल्म चल रही होती है, एफएम रेडियो पर कोई गाना बज रहा होता है, या फिर मोबाइल के जरिये यूट्यूब पर कुछ देखा जा रहा होता है.
वहां बाल कटवाने आनेवाला ग्राहकों के लिए ये सब मनोरंजन के सामान हैं. कोई यह कह सकता है कि सैलून में जाकर ही किताब क्यों पढ़ें? मनोरंजन का लुत्फ क्यों न उठायें? लेकिन मैं यही कहूंगी कि सैलून क्या, लाइब्रेरी क्या, लोग तो अपने घरों में भी एक अदद किताब नहीं रखते और ऐसे लोगों की संख्या बहुत है हमारे देश में. पढ़नेवाले बच्चों के कोर्स की किताबों की बात छोड़ दें, तो लोगों के घरों में धार्मिक किताबें तो मिलती हैं, लेकिन संविधान, विज्ञान, राजनीति, इतिहास, भूगोल, साहित्य, दर्शन और जीवनियों की किताबें नहीं मिलती हैं.
अफसोस होता है कि हम जिस ज्ञान-परंपरा वाले देश में रहते हैं, वहां पठनीयता को लेकर जागरूकता इतनी कम है. केरल के सैलून वाली यह तस्वीर उत्तर भारत के शहर के सैलूनों में भी मिलनी चाहिए. युवाओं में पठीनयता का संचार करने के लिए यह एक सार्थक पहल हो सकती है.
अभी बीते साल के आखिरी महीने में झारखंड विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद जब झामुमो नेता हेमंत सोरेन को देशभर से बधाइयां मिलने लगीं, तो उन्होंने लोगों से बधाई स्वरूप बुके की जगह बुक देने की अपील की. चौबीस घंटे के अंदर ही हेमंत सोरेन के पास दो सौ के करीब किताबें लोगों ने भेज दी और देखते ही देखते कुछ ही दिन में हेमंत सोरेन के आवासीय कार्यालय का एक कमरा किताबों से भर गया. सोरेन ने कहा कि उन किताबों की वे एक लाइब्रेरी बनायेंगे.
स्वस्थ परंपराएं ऐसे ही कायम होती हैं, जो समाज को दिशा देती हैं. केरल के सैलून वाले की तरह बाकी दुकानदार भी, जहां ग्राहकों को अपनी सेवा के लिए इंतजार करना पड़ता है, इस परंपरा को स्थापित करके देश को ज्ञान की दिशा दे सकते हैं. वहीं, हेमंत सोरेन द्वारा शुरू की गयी पहल को भी देशभर के नेताओं को अपनानी चाहिए. इस तरह लाइब्रेरी कायम करने की यह परंपरा हमें पठनीयता से तो जोड़ेगी ही, हमारी ज्ञान-परंपरा को भी समृद्ध करेगी. हम जितना ही पढ़ेंगे, उतना ही आगे बढ़ेंगे और देश की तरक्की में भागीदार बनेंगे.

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