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5जी से रखें चीनी कंपनी को बाहर

डॉ अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com डिजिटल सेलुलर नेटवर्क के लिए 5वीं पीढ़ी की वायरलेस तकनीक है 5जी. जिस मोबाइल फोन का हम उपयोग करते हैं, वह प्रोद्योगिकी नेटवर्क द्वारा संचालित होता है. बेहतर डेटा स्पीड के लिए सेलुलर नेटवर्क प्रौद्योगिकी में लगातार प्रगति होती रही है. हाल ही के वर्षों में मोबाइल प्रौद्योगिकी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2020 7:29 AM

डॉ अश्विनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan@rediffmail.com

डिजिटल सेलुलर नेटवर्क के लिए 5वीं पीढ़ी की वायरलेस तकनीक है 5जी. जिस मोबाइल फोन का हम उपयोग करते हैं, वह प्रोद्योगिकी नेटवर्क द्वारा संचालित होता है. बेहतर डेटा स्पीड के लिए सेलुलर नेटवर्क प्रौद्योगिकी में लगातार प्रगति होती रही है. हाल ही के वर्षों में मोबाइल प्रौद्योगिकी 2जी से 3जी और 4जी की ओर अग्रसर हुई. हर बार डेटा की स्पीड और गुणवत्ता बढ़ती गयी. अब मोबाइल नेटवर्क को 5जी के साथ अपग्रेड करने की कवायद जारी है.

ये सभी तकनीकें ज्यादातर विदेशी कंपनियों द्वारा उपलब्ध करायी जाती रही हैं और वही इनका संचालन भी करती हैं. हुआवे, एरिक्सन, नोकिया, जेडटीई समेत कई कंपनियों ने इन तकनीकों को उपलब्ध कराया है. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस क्षेत्र में भारतीय कंपनियां विश्वस्तरीय मानकों को पूरा करती हैं, और यहां तक कि विदेशी बाजारों में भी चीनी कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में पछाड़ रही हैं, फिर भी भारत के बाजारों में वे अवसरों से वंचित हैं. तमाम संभावनाओं के बावजूद सभी प्रौद्योगिकी साजो-सामान विदेशों, खासतौर पर चीन से आयात हो रहे हैं.

हाल ही में दूरसंचार विभाग ने भारत में 5जी परीक्षण करने के लिए चीनी कंपनी हुआवे समेत विभिन्न विदेशी कंपनियों को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है.

इस परीक्षण में हुआवे के शामिल होने से एक चिंता की लहर है, क्योंकि इस कंपनी के दुनियाभर में कार्यकलाप इस आशंका को पुष्ट करते हैं कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचा सकती है. हुआवे को सैद्धांतिक अनुमोदन का मतलब यह नहीं है कि अनुबंध भी इसी कंपनी को दिया जायेगा. इसके बावजूद यह संदेह हमेशा बना रहेगा कि यह कंपनी टेंडर पाने के लिए कम कीमत का आॅफर दे सकती है.

हुआवे कई देशों में प्रतिबंधित है. इस बात के भी पर्याप्त सबूत हैं कि चीनी कंपनियां अपने उपकरणों के माध्यम से संवेदनशील सूचनाओं की चोरी करती रही हैं. कई देशों को संदेह है कि चीनी कंपनियां साइबर हैकिंग के माध्यम से भारी मात्रा में सैन्य एवं तकनीकी रहस्यों की चोरी करने में भी लिप्त हैं. चीनी कंपनियां अपनी सरकार के साथ खुफिया जानकारी साझा करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हैं. साफ है कि हमारे दूरसंचार नेटवर्क में चीनी कंपनियों की उपस्थिति हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता करेगी.

दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ नौकरशाहों के निहित स्वार्थों द्वारा यह भ्रांति फैलायी जाती है कि भारत के पास 5जी या 6जी का समाधान प्रदान करने के लिए पर्याप्त क्षमता नहीं है. जबकि एक भारतीय कंपनी ने तो अमेरिका में अपनी 6जी प्रौद्योगिकी का पेटेंट भी करवाया है. भारतीय उद्यमियों को इस क्षेत्र में विकास हेतु सरकारी संरक्षण की आवश्यकता है. टेलिकाॅम प्रौद्योगिकी में बड़ी छलांग लगाने हेतु यह सरकारी संरक्षण एक सुरक्षा कवच प्रदान करेगा, जिससे देश की सुरक्षा से समझौता किये बिना हम देश में दूरसंचार नेटवर्क स्थापित कर सकेंगे.

जहां भारत में हुआवे को 5जी परीक्षण की अनुमति दी जा रही है, वहीं चीन सरकार भारत समेत किसी भी देश की कंपनियों के उपकरणों एवं साॅफ्टवेयर को बाजार पहुंच की अनुमति नहीं देती है. ऐसे में चीनी कंपनियों को अनुमति देना परस्परता के सिद्धांत के भी खिलाफ है.

पूर्व दूरसंचार सचिव अरूणा सुंदराजन ने कहा था कि दूरसंचार विभाग दुनिया में हो रहे घटनाक्रमों पर कड़ी नजर रखे हुए है. हुआवे को तभी अनुमति दी जायेगी, जब यह सुनिश्चित हो जायेगा कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा नहीं है. एक बार हमारी निर्भरता उन पर होने के बाद हमारी मजबूरी का चीनी सरकार नाजायज फायदा उठा सकती है.

दूरसंचार में स्वदेशी उपकरणों से ज्यादा कुछ भी सुरक्षित नहीं है. प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के विजयराघवन 5जी पर उच्च स्तरीय समिति के भी प्रमुख हैं, जिन्होंने कहा है कि भारत को चीन को छोड़ शेष सभी के साथ 5जी परीक्षण करना चाहिए. 5जी परीक्षणों के लिए समिति में शामिल इंटेलीजेंस ब्यूरो, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, दूरसंचार विभाग, विज्ञान और प्रौद्यागिकी विभाग शामिल हैं. इन सभी ने हुआवे के साथ काम करते हुए सावधान रहने का सुझाव दिया है.

चीनी सरकार बड़े पैमाने पर अपनी कंपनियों को भारत समेत अन्य देशों में संवेदनशील बुनियादी ढांचे के लिए निविदाएं जीतने के लिए मदद देती है. चीनी कंपनियां सीमा शुल्क की भी चोरी करती हैं. उधर दूरसंचार विभाग स्वदेशी कंपनियों को बकाया के भुगतान में भी कोताही करता है.

यही नहीं भारतीय निहित स्वार्थों की मिलीभगत से भारतीय बोलीदाताओं को उन विशिष्टताओं का पालन करने के लिए भी मजबूर किया जाता है, जिनकी उस प्रकल्प में जरूरत भी नहीं होती, लेकिन जिन्हें विदेशी कंपनियां पूरा कर लेती हैं. इससे स्पष्ट है कि भारतीय कंपनियों को अपने ही देश में भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

देश को सुरक्षा खतरों से बचाने के लिए एकमात्र उपाय यह है कि भारत के दूरसंचार नेटवर्क को पूरी तरह से स्वदेशी बनाया जाये और सुरक्षा आधार पर इसे भारतीय कंपनियों के लिए आरक्षित किया जाये.

दूरसंचार को भारत की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक बुनियादी ढांचा घोषित किया जाना चाहिए. ऐसा करने पर इस निर्णय को डब्ल्यूटीओ में चुनौती नहीं दी जा सकती. ‘मेक इन इंडिया’ पाॅलिसी के तहत सरकार द्वारा चीनी आयात पर प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है. चीनी कंपनियों को प्राथमिकता देनेवाले टेंडरों की जांच होनी चाहिए और दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाना चाहिए.

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