अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी और वाणिज्य मंत्री पेनी प्रिट्ज्कर की यात्रा के कुछ दिनों बाद रक्षा मंत्री चुक हगेल का भारत आना महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटना है. इस तीन दिवसीय यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच करीब 20,000 करोड़ रुपये के बड़े रक्षा सौदों, आतंकी गतिविधियों पर गोपनीय सूचनाओं के आदान-प्रदान और सैन्य-सहयोग बढ़ाने से जुड़े समझौतों पर सहमति की संभावना है.
19 जुलाई को रक्षा एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में हुई रक्षा अभिग्रहण परिषद् की बैठक में सेना के लिए जरूरी साजो-सामान खरीदने का निर्णय लिया गया था. रिपोर्टो के अनुसार, इस बैठक में 34,260 करोड़ रुपये के खरीद की मंजूरी दी गयी थी. केंद्र सरकार ने रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी विनिवेश के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. ऐसे में स्वाभाविक है कि अमेरिका जैसा रक्षा व्यापार में अग्रणी देश इस अवसर का लाभ उठाने की कोशिश करे.
हालांकि रक्षा मंत्री हगेल की यात्रा को सिर्फ यहीं तक सीमित करके देखना ठीक नहीं होगा. उन्होंने भारत आने से एक दिन पहले जर्मनी में एक सभा में कहा भी कि उनकी यात्रा अमेरिकी विदेश मंत्री व वाणिज्य मंत्री की यात्रा का पूरक है और अमेरिका भारत की नयी सरकार के साथ बेहतर संबंधों का आकांक्षी है. इन यात्रा ओं का एक बड़ा उद्देश्य अगले महीने राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच होनेवाली बैठक की तैयारी भी है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन को लेकर अमेरिका और रूस में ठनी हुई है. इधर, चीन अमेरिका के आर्थिक वर्चस्व के लिए बड़ी चुनौती के रूप में स्थापित हो चुका है. ब्रिक्स के मंच के जरिये भारत चीन के साथ बेहतर आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भारत को भरोसे में रखना अमेरिका की कूटनीतिक मजबूरी है. इस स्थिति से उसे इनकार भी नहीं है.
हगेल ने स्पष्ट कहा है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र की मौजूदा संभावनाओं व चुनौतियों के मद्देनजर अमेरिका के लिए भारत का सहयोग जरूरी है. वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका के बीच फिलहाल भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध संतोषजनक हैं. संकेत साफ हैं, बदलते अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के मद्देनजर अमेरिका इसे और बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत है.