बजट की आहट : कर में राहत देने की जरूरत

सतीश सिंह आर्थिक मामलों के जानकार singhsatish@sbi.co.in राजस्व वसूली के मोर्चे पर सरकार अपेक्षित लक्ष्य हासिल में नाकाम रही है. कॉर्पोरेट कर में उल्लेखनीय राहत देने के बाद सरकार लगातार राजस्व की कमी से जूझ रही है. इसी वजह से सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से भी लाभांश मांगा है. अस्तु, राजस्व में इजाफा करने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 28, 2020 5:26 AM
सतीश सिंह
आर्थिक मामलों के जानकार
singhsatish@sbi.co.in
राजस्व वसूली के मोर्चे पर सरकार अपेक्षित लक्ष्य हासिल में नाकाम रही है. कॉर्पोरेट कर में उल्लेखनीय राहत देने के बाद सरकार लगातार राजस्व की कमी से जूझ रही है. इसी वजह से सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से भी लाभांश मांगा है.
अस्तु, राजस्व में इजाफा करने के लिए सरकार आम बजट में करदाताओं के लिए कर रियायत योजना लाने पर विचार कर रही है. प्रस्तावित योजना के तहत करदाता पिछले पांच सालों के वैसे आय का खुलासा कर सकते हैं, जिसका खुलासा उन्होंने आयकर रिटर्न भरते समय नहीं किया था.
प्रस्तावित योजना के अंतर्गत करदाताओं द्वारा कर चोरी की रकम पर दंड राशि नहीं भरना होगा और न ही उन्हें कोई सजा होगी. इससे करदाता दंड राशि जमा करने या सजा की आशंका के बिना पूर्व में घोषित आय का संशोधित रिटर्न दाखिल कर सकेंगे.
इससे अनुपालन में सुधार होगा और सरकार के राजस्व में भी इजाफा होगा. एक अनुमान के अनुसार, अगर इस योजना को लागू किया जाता है, तो सरकार को पहले साल में लगभग 50,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होगी. आयकर विभाग का मानना है कि करदाता छुपाई हुई आय का खुलासा करना चाहते हैं, पर जुर्माने के डर से वे ऐसा नहीं कर रहे हैं.
आयकर विभाग का यह भी मानना है कि इस योजना से अदालत में दाखिल वादों की संख्या में भी कमी आयेगी, साथ ही भविष्य में अदालतों में कम वाद दाखिल किये जायेंगे. गौरतलब है कि वर्तमान में आयकर विभाग को मुकदमों पर भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ती है, फिर भी उन्हें जीत केवल 20 प्रतिशत मामलों में ही मिलती है. अभी, अदालतों और पंचाटों में लगभग 5,00,000 से अधिक आयकर चोरी से संबंधित मामले लंबित हैं. इनमें तकरीबन सात से आठ लाख करोड़ रुपये की राशि फंसी हुई है.
अधिकांश कर विवादों में आयकर विभाग अपीलकर्ता की भूमिका में है. इसलिए, प्रस्तावित योजना से न केवल सरकार की आय बढ़ेगी, बल्कि पंचाटों और अदालतों पर लंबित मुकदमों का बोझ भी कम होगा. कारोबारियों और विदेशी निवेशकों के बीच सकारात्मक माहौल भी बनेगा और सरकार के खर्च में भी कमी आयेगी.
अगस्त 2019 में वाद दाखिल करने की सीमा राशि में बढ़ोतरी की गयी. संशोधन के बाद आयकर विभाग के लिए पंचाट के समक्ष अपील हेतु कर की सीमा को 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये, हाइकोर्ट के लिए 50 लाख रुपये से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये और सुप्रीम कोर्ट के लिए एक करोड़ रुपये से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये की गयी है. इसके बाद आयकर विभाग ने बड़ी संख्या में लंबित अपीलों को वापस ले लिया है, जिससे विभाग के परिचालन खर्च में कमी आयी है.
जानकारों का कहना है कि अगर प्रत्यक्ष कर समाधान योजना में ब्याज और जुर्माना माफ कर दिया जाता है और विवादित राशि के 50 प्रतिशत हिस्से के भुगतान का विकल्प दिया जाता है, तो अनेक करदाता प्रस्तावित योजना का फायदा उठा सकते हैं.
ऐसा करने से बेकार पड़ी नकदी भी चलन में आ सकती है. ऐसी मांग औद्योगिक संगठनों की तरफ से भी की जा रही है. सरकार भी इस प्रस्ताव को लागू करने के प्रति गंभीर दिख रही है. अगर सरकार लोगों को नकदी को चलन में लाने का व्यावहारिक मौका देती है, तो सरकारी आय में बढ़ोतरी के साथ-साथ उद्योग और रोजगार सृजन दोनों में तेजी आ सकती है.
यह भी कहा जा रहा है कि सरकार प्रस्तावित रियायत के साथ कुछ शर्तें भी जोड़ सकती है, जैसे, छूट मिली राशि का इस्तेमाल कारोबार में करना होगा. जानकारों के अनुसार, नोटबंदी के बाद से नकदी आधारित कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और काफी लोग बेरोजगार हुए. मैन्यूफैक्चरिंग में जारी गिरावट और कैपिटल गुड्स में कमी भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं.
प्रस्तावित रियायत योजना के साथ-साथ सरकार बजट में आयकर के स्लैब में भी बदलाव कर सकती है. माना जा रहा है कि 50,000 रुपये तक की छूट स्लैब में दी जा सकती है, ताकि उपभोग में वृद्धि हो. सरकार चाहती है कि अर्थव्यवस्था में छायी सुस्ती को दूर करने के लिए उपभोग में ज्यादा से ज्यादा वृद्धि की जाये.
उपभोग में वृद्धि करके ही मांग में तेजी लायी जा सकती है. विगत चार तिमाहियों से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट आ रही है. चालू वित्त वर्ष के लिए भी जीडीपी में केवल 5 प्रतिशत की दर से वृद्धि का अनुमान लगाया गया है.
वित्त वर्ष 2019-20 में देश के प्रत्यक्ष कर राजस्व में भारी कमी आयी है. बीते 15 दिसंबर तक के आंकड़ों के अनुसार प्रत्यक्ष कर संग्रह की वृद्धि दर रिफंड के बाद महज 0.7 प्रतिशत रही है, जबकि बजट में इसका लक्ष्य 17.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने का था, जो राशि में 13.35 लाख करोड़ रुपये है. इस अवधि में अग्रिम कर संग्रह भी 2.51 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले साल समान अवधि में यह 2.47 लाख करोड़ रुपये रहा था. इस तरह इसकी वृद्धि महज 1.6 प्रतिशत रही.
मौजूदा समय में अर्थव्यवस्था में छायी सुस्ती को दूर करने के लिए अंतिम उपभोग व्यय को बढ़ाना जरूरी है. उपभोग की मात्रा में वृद्धि से ही मांग में वृद्धि हो सकती है. इसके लिए आम लोगों को कर में राहत देने की जरूरत है. अतिरिक्त आय होने पर ही आम आदमी अपने खर्च में बढ़ोतरी कर सकता है. इस आलोक में पूर्व में की गयी कर चोरी एवं आयकर के स्लैब में राहत देना दोनों ही मुफीद हो सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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