अमल वाले शायर

आलोक पुराणिक व्यंगकार puranika@gmail.com बजट आया, उससे पहले आर्थिक समीक्षा आयी. केंद्रीय वित्त मंत्री ने तमिल विद्वानों, तमिल कवियों की रचनाएं बजट में पेश कीं, जिनमें बताया गया था कि अच्छे देश को कैसा होना चाहिए. चचा गालिब ने ऊपर करवट बदलते हुए मीर से कहा-हमारी रचना कोई न पेश करता बजट में. मीर ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 3, 2020 7:10 AM
आलोक पुराणिक
व्यंगकार
puranika@gmail.com
बजट आया, उससे पहले आर्थिक समीक्षा आयी. केंद्रीय वित्त मंत्री ने तमिल विद्वानों, तमिल कवियों की रचनाएं बजट में पेश कीं, जिनमें बताया गया था कि अच्छे देश को कैसा होना चाहिए. चचा गालिब ने ऊपर करवट बदलते हुए मीर से कहा-हमारी रचना कोई न पेश करता बजट में.
मीर ने बताया-गालिब तुम्हारी रचनाएं पेश न की जातीं, तुम्हारे शेरों पर तो सरकारें अमल करती हैं. बेपनाह दिल खोलकर खर्च करती हैं, बिना आय की चिंता किये हुए. गालिब तुम्हारा शेर है न- कर्ज की पीते थे मय, लेकिन समझते थे कि हां, रंग लायेगी हमारी फाका मस्ती, एक दिन. सरकारें कर्ज ले रही हैं, चिंता नहीं है, कोई तो भरेगा. तुम्हारे शेर अमल से ताल्लुक रखते हैं, पेश करने से नहीं.
गालिब को अपनी सार्थकता का अहसास फिर एक बार हुआ. महान कवि और महान शायर समूची दुनिया के काम आते हैं, सरकारों के भी. इस बार 2019-20 की आर्थिक समीक्षा में थालीनोमिक्स का विश्लेषण पेश किया गया है यानी खाने-पीने की चीजों पर विशेष ध्यान दिया गया है. आर्थिक समीक्षा के अनुसार 2015-16 से शाकाहारी थाली के मामले में खाद्य मूल्य में कमी होने से पांच लोगों के औसत परिवार को औसतन लगभग 10,887 रुपये सालाना का लाभ हुआ है.
मांसाहारी परिवार को 11,887 रुपये सालाना का लाभ हुआ है. सरकारें हमारा भला करने के लिए प्रतिबद्ध बैठी होती हैं, हम महसूस नहीं कर पाते. सरकारों को बताना पड़ता है कि तुम्हारा भला हो गया, और तुम प्याज के भावों को रो रहे हो. बहुत संभव है कि पांच साल बाद कोई बताये कि हमने 2019-20 में प्याज के भावों में बहुत रकम बचा ली, प्याज के भाव हजार रुपये किलो हो सकते थे, सिर्फ अस्सी रुपये किलो पर जाकर रुक गये.
खैर, आर्थिक समीक्षा 2019-20 के खंड एक चैप्टर वन में शीर्ष पर तमिल क्लासिक थिरुकुराल का एक सूत्र दर्ज है, जिसका आशय है- धन बनाओ, शत्रुओं के मान-मर्दन के लिए धन से ज्यादा धारदार कोई हथियार नहीं.
कई नेता इस सूत्र पर धुआंधार चल रहे हैं. अलबत्ता, उन्होने थिरुकुराल को पढ़ा होगा, इसमें संदेह है. थिरुकुराल को बढ़े बिना भी धन बन रहा है. बहुत संभव है कि कोई नेता पकड़ा जाये तो कह दे कि उसे धन बनाने की प्रेरणा थिरुकुराल से मिली.
आर्थिक समीक्षा बताती है कि भारत का केवल एक बैंक विश्व के 100 शीर्ष बैंकों में शामिल हैं. यह स्थिति भारत को उन देशों की श्रेणी में ले जाती हैं जिनकी अर्थव्यवस्था का आकार भारत के मुकाबले कई गुना कम है, जैसे कि फिनलैंड की अर्थव्यवस्था जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लगभग 1/11वें हिस्से के बराबर है. बड़ी अर्थव्यवस्था में बड़ा बैंक क्यों नहीं है, समीक्षा का सवाल है. यही सवाल विजय माल्या भी पूछ सकते हैं, कितने बैंक साफ करने पड़े उन्हें. एक बड़ा बैंक होता, उस पर ही हाथ साफ कर लेते तो कई बैंकों को तकलीफ देने की जहमत से बच जाते माल्या.

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