बजट में समाधान नहीं
लगभग हर बजट को सरकार के समर्थक एवं सत्तारूढ़ दल के लोग आम आदमी का बजट कहते हैं. इसे देश के लिए सर्वोत्तम कहा जाता है. किसानों, मजदूरों व बेरोजगारों का बजट कहा जाता है. इस बार भी ऐसा ही कुछ कहा गया. लेकिन क्या पिछले छह साल में हमारी अर्थव्यवस्था का विकास दर किये […]
लगभग हर बजट को सरकार के समर्थक एवं सत्तारूढ़ दल के लोग आम आदमी का बजट कहते हैं. इसे देश के लिए सर्वोत्तम कहा जाता है. किसानों, मजदूरों व बेरोजगारों का बजट कहा जाता है. इस बार भी ऐसा ही कुछ कहा गया. लेकिन क्या पिछले छह साल में हमारी अर्थव्यवस्था का विकास दर किये गये दावों से मेल खाता है? इस बजट की सिर्फ इस बात पर गौर करें कि जो करदाताओं एवं लाभांश पानेवालों को छूट मिली है, उससे 65 हजार करोड़ तक वित्तीय घाटे में बढ़त होगी.
जाहिर है, इसकी भरपाई सरकार ऋण लेकर करेगी. कर्ज का बोझ लगातार बढ़ाना क्या देश की सेहत के लिए शुभ हो सकता है? सबसे बड़ी बात बाजार में मांग ही नहीं है. बिना निजी पूंजी निवेश के बेहतरी की गुंजाइश भी नहीं है. क्या इस बजट में उस पर ध्यान दिया गया है? बेरोजगारों के बढ़ते सैलाब को कैसे संभाला जायेगा? बजट में इन सवालों के जवाब नहीं हैं.
– जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड