मोबाइल बनने की चाहत

दिविक रमेश साहित्यकार delhi@prabhatkhabar.in कुछ समय पहले मोबाइल और बच्चे को लेकर सोशल मीडिया पर एक मजेदार, लेकिन गंभीर रचना पढ़ने को मिली थी. उसके अनुसार, जब एक बच्चे से पूछा गया कि वह जीवन में क्या बनना चाहता है, तो जवाब आया- मोबाइल. पूछनेवाले के साथ और लोग भी चौंके. जवाब का कारण पूछा, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 4, 2020 8:13 AM
दिविक रमेश
साहित्यकार
delhi@prabhatkhabar.in
कुछ समय पहले मोबाइल और बच्चे को लेकर सोशल मीडिया पर एक मजेदार, लेकिन गंभीर रचना पढ़ने को मिली थी. उसके अनुसार, जब एक बच्चे से पूछा गया कि वह जीवन में क्या बनना चाहता है, तो जवाब आया- मोबाइल. पूछनेवाले के साथ और लोग भी चौंके. जवाब का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया, मेरे घर में मेरी जगह मोबाइल की पूछ कहीं ज्यादा है.
मेरी मां सहित सब उसे ही सबसे ज्यादा प्यार करते हैं.मोबाइल पर जरा-सी घंटी बज जाये या खट हो जाये, तो झट उसे उठा लिया जाता है, जबकि कितनी ही बार न मुझ पर और न ही मेरी बातों पर ध्यान दिया जाता है. वस्तुत: यह बच्चे की एक शिकायत है, अपने प्रति समुचित ध्यान न देने, उसे उचित प्राथमिकता न देने को लेकर. यह किस्सा, यदि इसे मैं किस्सा ही मान लूं, मोबाइल वाले अधिकतर घरों में व्याप्त हमारी आज की जीवनशैली का वर्णन करता है. यह सच है कि आज हमारे अधिकतर बच्चे, खासकर विद्यार्थी मोबाइल की गिरफ्त में हैं, आदी होने की हद तक भी, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अधिकतर बड़े भी उनके प्रेरक हैं.
मैं तकनीकी उपलब्धियों का विरोधी नहीं हूं. उनके अपने उपयोग सिद्ध हैं. मोबाइल को ही लें, तो उसकी उपयोगिता विविधधर्मी है. वह हर समय हमें संपर्क में रखता है. उसके माध्यम से हम कितनी ही जानकारी गति के साथ अर्जित कर सकते हैं.
समय अधिक हो, तो उसे मोबाइल के सहारे भी गुजार सकते हैं. वह हमें गतिशील रखता है. लेकिन, जरा सोचें कि यदि उसकी उपयोगिता पर हम, अपने कारणों से दुरुपयोगों के सहारे, बुराइयों की परतें चढ़ा दें तो? वह भी जान-बूझकर? मसलन, उसके अधिक, हर समय के, आदी होने की हद तक के उपयोग के कारण गतिशील होने के स्थान पर जड़ बन जायें तो?
अपने में अपने ही होकर अर्थात हम अपनों से कट जायें तो? बस उसी के होकर रह जायें! यहां तक कि उसके आगे अपनी पढ़ाई तक की बलि चढ़ाने लगें तो? ऊपर जिस बच्चे की मां और बड़ों के प्रति शिकायत की बात कही गयी है, हम बच्चे भी, मोबाइल को लेकर वैसे ही हो जायें तो? जरूरत से ज्यादा के उपयोग के कारण हमारी सेहत और खासकर आंखों पर जो बुरा प्रभाव पड़ता है, वह अलग. मोबाइल के अनुभव पर केंद्रित मेरी एक बाल कविता है ‘जरूरत भर, ‘समझदार हाथी, समझदार चींटी’ में प्रकाशित है. एक छोटा-सा अंश पढ़िये-
सभी जानते चीज मजे की/ होती कितनी यह मोबाइल./जहां चाहूं, वहां ले जाऊं / घंटों-घंटों बातें करूं मैं / जब भी चाहूं, जिससे चाहूं./ गेम खेल लूं / बटन दबाते गिनती कर लूं /…खूब सुरीली / धुन भी सुन लूं./ और उधर पापा कहते हैं
बस जरूरत भर ही इसको/ अपने कानों तक ले जाओ. किसकी मानूं किसकी छोड़ूं/ बहुत कठिन है बात यह भाई/ पर पापा कितने प्यारे हैं/बात उन्हीं की मानूं भाई.

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