राजकोषीय प्रोत्साहन का बजट

अजीत रानाडे सीनियर फेलो, तक्षशिला इंस्टीट्यूशन editor@thebillionpress.org केंद्रीय बजट का वृहत संदर्भ स्वयं में निराशाजनक था. सांकेतिक वृद्धि दर 42 वर्षों के निम्नतम स्तर पर है, पर्याप्त तरलता के बावजूद बैंक ऋण प्रवाह बदहाल है तथा विनिर्माण एवं निर्यात के क्षेत्र जड़ता से ग्रस्त हैं. उपभोक्ता, निवेश तथा निर्यात व्यय फीके ही हैं. चूंकि, इस […]

By अजीत रानाडे | February 4, 2020 8:18 AM
अजीत रानाडे
सीनियर फेलो, तक्षशिला इंस्टीट्यूशन
editor@thebillionpress.org
केंद्रीय बजट का वृहत संदर्भ स्वयं में निराशाजनक था. सांकेतिक वृद्धि दर 42 वर्षों के निम्नतम स्तर पर है, पर्याप्त तरलता के बावजूद बैंक ऋण प्रवाह बदहाल है तथा विनिर्माण एवं निर्यात के क्षेत्र जड़ता से ग्रस्त हैं. उपभोक्ता, निवेश तथा निर्यात व्यय फीके ही हैं.
चूंकि, इस वृद्धि में तेजी लाने के अन्य स्रोत सूखे पड़े हैं, इसलिए सरकार से ही मजबूत कदमों की उम्मीद थी. वित्तमंत्री को यह चुनौती स्वीकार करनी पड़ी कि वे राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम एक्ट) द्वारा राजकोषीय व्यय की निर्धारित अधिकतम सीमा रेखा (यदि अर्थ व्यवस्था की सक्षम वृद्धि दर में 2.5 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आ जाये, तो राजकोषीय घाटे की हद में जीडीपी के 0.5 प्रतिशत तक के उल्लंघन की छूट) को तोड़े बगैर अर्थव्यवस्था को एक बड़ा प्रोत्साहन प्रदान करें.
इन सीमाओं के अंदर वित्तमंत्री ने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के अंदर रखते हुए भी विभिन्न क्षेत्रों की वृद्धि जरूरतों पर समुचित ध्यान दिया है.
यह सही है कि बजटीय परिधि के बाहर एफसीआइ एवं एनएचएआइ जैसे संगठनों द्वारा ऋण लिये जा रहे हैं, पर बजटीय ढांचे के अंदर आयकर में कटौती के रूप में उपभोग को प्रोत्साहन दिया गया है. यह कॉरपोरेट कर में कुछ ही मास पहले दिये गये कटौती के अलावा है. अब भारत की कर दरें जी-20 के हमारे समकक्ष देशों के बराबर अथवा उनसे भी अधिक अनुकूल हो गयी हैं. जीडीपी के मुकाबले कर संग्रहण का अनुपात न्यूनतम स्तर पर है. लाभांश वितरण कर (डीडीटी) के खात्मे के द्वारा कॉरपोरेट को एक और प्रोत्साहन दिया गया है. यह विदेशी बहुराष्ट्रीय या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए एक खुशखबरी है.
कृषि क्षेत्र को 1.4 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की सेहतमंद खुराक भी मिली है. वित्तमंत्री ने कृषि क्षेत्र में जान फूंकने हेतु 16-सूत्रीय योजना की घोषणा की.
इनमें विनियमनों में ढील, अन्नागारों के लिए वित्तपोषण, आपूर्ति शृंखला में सुधार एवं किसानों को शहरी मध्यवर्ग से जोड़ना शामिल हैं. कृषि का पुनर्जीवन और ग्रामीण क्रयशक्ति में वृद्धि लाने को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए. दुभाग्यपूर्ण है कि पीएम किसान सम्मान निधि तथा मनरेगा के लिए प्रस्तावित आवंटन में वृद्धि नहीं की गयी.
बैंक जमा बीमा की उच्च सीमा में वृद्धि बैंक जमाकर्ताओं में व्याप्त भय तथा आतंक को शांत कर सकेगी, पर न तो बैंकों के विनिवेश का इरादा बताया गया, न ही उनके पूंजीकरण की दिशा में कोई अतिरिक्त आवंटन ही किया गया. जब वित्तमंत्री बजटीय भाषण दे रही थीं, तो बैंककर्मी राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर थे. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शासन संबंधी सुधार के लिए जेपी नायक कमिटी की अनुशंसाएं लागू किये जाने की जरूरत है.
फिर उनमें बड़ी मात्रा में इक्विटी पूंजी डालने की भी आवश्यकता है, जिसे यदि राजकोषीय स्रोतों से संभव न हो, तो विनिवेश द्वारा भी किया जाना जरूरी है. वर्ष 2001 में एनडीए के ही एक वित्तमंत्री ने इस इरादे की घोषणा की थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 33 प्रतिशत तक लाते हुए उनकी ‘सार्वजनिक क्षेत्र प्रकृति’ को अछूता रखा जायेगा. यह योजना कभी पूरी नहीं हो सकी.
खैर जो भी हो, हमें विनिवेश की दिशा में एक मजबूत इरादा जरूर दिखता है, जिसके लिए दो लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का एक लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इस हेतु जीवन बीमा निगम में शेयरों की आंशिक बिक्री भी की जायेगी.
दरअसल, वर्ष 2021 के लिए निर्धारित राजकोषीय लक्ष्य हासिल करने की दिशा में विनिवेश से आनेवाली आय अहम है. केंद्रीय कैबिनेट ने पहले ही एयर इंडिया, बीपीसीएल आदि बड़ी कंपनियों के विनिवेश को मंजूरी दी है. यह बजट से पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण के संदेश के भी मुताबिक है, जो कहता है कि हमें निजी क्षेत्र हेतु एक ज्यादा बड़ी भूमिका की जरूरत है, जो अपने सार्वजनिक समकक्षों से कहीं अधिक कार्य कुशल और उत्पादक है. दरअसल, सर्वेक्षण में कही गयी बाजार-हितैषी नीतियों को वास्तविक रूप देने की दिशा में काफी कुछ और भी किया जा सकता था.
इन बजट प्रस्तावों द्वारा जो कुछ छोड़ दिया गया, वह संकट से घिरे गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों के साथ ही ऑटो और रियल इस्टेट कंपनियों को उबारने के लिए बड़े कदमों की घोषणा थी. यह सही है कि रियल इस्टेट, आवासन तथा निर्माण क्षेत्रों की परियोजनाओं के अंतिम चरणों को पूरा करने के लिए एक इक्विटी फंड की घोषणा की गयी है.
कुछ महीने पहले घोषित कदमों के असर को देखा जाना अभी भी बाकी ही है. रियल इस्टेट एवं निर्माण क्षेत्र बड़ी तादाद में रोजगार सृजन तो करते ही हैं, वे तीन सौ से अधिक अनुषंगी उपक्षेत्रों को सहारा भी देते हैं. इसलिए अर्थव्यवस्था के विकास के लिए रियल इस्टेट क्षेत्र का पुनर्जीवन तथा अच्छा स्वास्थ्य आवश्यक है. संभव है कि आनेवाले महीनों में इसके लिए कुछ और कदमों की घोषणा की जाये, जैसा जुलाई में पेश अंतरिम बजट के बाद किया गया था.
अंततः यह स्वीकार किया ही जाना चाहिए कि 10 प्रतिशत सांकेतिक जीडीपी वृद्धि का लक्ष्य विश्वसनीय है और उसे हासिल भी किया जा सकता है. इस तरह वित्तमंत्री अगले साल की वृद्धि के लिए किसी अतिरिक्त आशावादी और अवास्तविक तस्वीर पेश करने के लोभ से बच सकी हैं.
यह बेहतर है कि अभी के लिए कमतर अनुमानों को लेकर चलते हुए बाद में बेहतर उपलब्धियों के सुखद एहसास को सामने आने दिया जाये, क्योंकि किसी को भी नहीं पता कि आगे कच्चे तेल की कीमतों में कमी, निर्यात के सुअवसरों का चीन से भारत में स्थानांतरण तथा विनिर्माण के क्षेत्र में तेजी जैसी अच्छे तथ्य सामने आयें और उनके बल पर इस बजट में व्यक्त वृद्धि अनुमानों से भी बेहतर नतीजे मिल जायें. वैकल्पिक रूप में हम अगले साल भी छह प्रतिशत की वृद्धि दर तो हासिल कर ही सकते हैं. तब पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना थोड़ा और दूर जरूर जा सकता है, मगर उसके बावजूद हम वहां तक पहुंच तो सकते ही हैं.
(अनुवाद: विजय नंदन)
ये लेखक के निजी विचार हैं.

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