दिल्ली में आप को कड़ी टक्कर
आर राजागोपालन वरिष्ठ पत्रकार rajagopalan1951@gmail.com दिल्ली के मतदाताओं के रुख के विश्लेषण से लगता है कि आम आदमी पार्टी (आप) फिर सरकार बना रही है, लेकिन उसकी सीटें काफी कम होंगी. किसी भी पक्ष में लहर नहीं है. केजरीवाल का करिश्मा और मोदी का मैजिक असर दिखा रहा है. आप और भाजपा के बीच जोरदार […]
आर राजागोपालन
वरिष्ठ पत्रकार
rajagopalan1951@gmail.com
दिल्ली के मतदाताओं के रुख के विश्लेषण से लगता है कि आम आदमी पार्टी (आप) फिर सरकार बना रही है, लेकिन उसकी सीटें काफी कम होंगी. किसी भी पक्ष में लहर नहीं है. केजरीवाल का करिश्मा और मोदी का मैजिक असर दिखा रहा है. आप और भाजपा के बीच जोरदार संघर्ष जारी है.
सड़कों पर कांग्रेस नहीं दिख रही है. प्रचार अभियान चरम पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल, योगी आदित्यनाथ, नीतीश कुमार जैसे नेता अपनी पार्टियों के लिए प्रचार कर रहे हैं. चुनावी सर्वेक्षणों आप को साधारण बहुमत दे रहे हैं, लेकिन अंतिम चरण में ‘न’ अक्षर के दो नामों- नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के मैदान में कूदने के बाद भाजपा गठबंधन के समर्थक उत्साहित हैं.
सभी दलों के लिए दशकों से अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने जैसे मसले चुनावी मुद्दे रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी ने बीस लाख परिवारों को पक्की रजिस्ट्री देकर इस मुद्दे को खत्म कर दिया है.
आप की ओर से मेट्रो व बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा, सीमित उपभोग पर पानी व बिजली का शुल्क न लगना जैसे मुद्दे उठाये जाने थे, लेकिन भाजपा ने सभी मुद्दों को शाहीन बाग तक सीमित कर दिया है. इस मसले पर कोई जवाब आप नहीं दे सकी है. मोदी-शाह की जोड़ी की चतुराई भरी यह चाल प्रचार को ‘मुफ्त बिजली-मुफ्त पानी’ से हटाने तथा शाहीन बाग पर केजरीवाल को घेरने के लिए है. आप के चुनावी प्रबंधक उस ताकत से घबरा गये, जिस ताकत से अमित शाह ने आप को मुश्किल में डालने के लिए खुद ही कमान संभाली.
कांग्रेस आम आदमी पार्टी को चुपचाप समर्थन कर रही है. अल्पसंख्यक आप के पक्ष में ही मतदान करेंगे. लेकिन असली नुकसान कांग्रेस को है. तीनों गांधी जब नाश्ते की मेज पर बैठते होंगे, तो उन्हें इस बात से खुशी मिलती होगी कि भाजपा को दिल्ली चुनाव में रोक दिया गया है.
महाराष्ट्र, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस ने भाजपा और मोदी को रोकने के लिए अलग-अलग रणनीति अपनायी है. आप के लिए समस्या यह है कि उसे केवल केजरीवाल पर निर्भर रहना पड़ रहा है. सोशल मीडिया पर अनुमान लगाया जा रहा है कि आप बड़ी जीत हासिल कर रही है. आप ने प्रशांत किशोर के चुनाव रणनीतिकारों की सेवाएं ली है. ऐसी खबरें हैं कि आप सड़क पर प्रचार में कम खर्च कर रही है और सोशल मीडिया में ज्यादा, जो करोड़ों में है. भाजपा ने मोदी से लेकर अनेक राज्यों के विभिन्न नेताओं को लगाया है. भाजपा दक्षिण भारत के सभी राज्यों से भी कार्यकर्ताओं को लायी है.
निवर्तमान विधानसभा में भाजपा के चार विधायक हैं. अगर वह 20-25 की संख्या भी हासिल कर लेती हैं, तो यह बड़ी जीत होगी. ऐसे में वह केजरीवाल की लोकप्रिय योजनाओं को रोक सकती है. यदि भाजपा मजबूत विपक्ष होगी, तो विधानसभा को चलाना मुश्किल होगा. तब उप-राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव लाने, केंद्रीय योजनाओं को खारिज करने, पुलिस आयुक्त व मुख्य सचिव को हटाने जैसे प्रस्ताव पारित करने के लिए अक्सर विधानसभा का सत्र बुलाने जैसी बेवकूफी केजरीवाल नहीं कर सकते हैं.
साल 2014 में मोदी से लड़ने के लिए वाराणसी जानेवाले तथा उन्हें साइकोपैथ जैसी गालियां देनेवाले केजरीवाल 2019 में दिल्ली में आप के सफाये के बाद अचानक पिछले छह माह से मोदी को लेकर बिल्कुल चुप हैं. उन्होंने सकारात्मक रवैये की कला सीख ली है. अति वाम से दक्षिण तक वे पेंडुलम की तरह झूले हैं- हिंदू मतों को रिझाने के लिए इन्कलाब जिंदाबाद से वंदे मातरम और सभाओं में हनुमान चालीसा पढ़ने तक.
जब दिल्ली चुनाव की घोषणा हुई थी, तब आप की जीत का ग्राफ ऊपर जा रहा था, पर जैसे-जैसे दिन बीते, शाहीन बाग का अवरोध आप के लिए स्पीड ब्रेकर बनता गया. वहां दो सौ महिलाएं दोपहर बाद आकर प्रदर्शन करती हैं, लेकिन इससे उस रास्ते गुजरनेवाले दो लाख लोग आप के खिलाफ हो गये.
लोगों का मानना है कि यह आप का किया-धरा है, जिसे भाजपा भी अक्सर दुहराती है. तेजतर्रार नेता की तरह अमित शाह ने शाहीन बाग के बंद होने से लंबी दूरी तय करनेवालों यात्रियों की मुश्किल का फायदा उठाते हुए इसे हिंदू व मुसलमानों के बीच का सांप्रदायिक मुद्दा बना दिया. उन्होंने यह भी कह दिया कि भाजपा के लिए हर वोट का मतलब शाहीन बाग में बैठीं दादियों व मांओं को हटाने के लिए वोट है. भाजपा ने यह सुनिश्चित किया कि केजरीवाल के लोकप्रिय मुद्दों पर आधारित प्रचार को सड़क अवरुद्ध करने को लेकर बनीं भावनाओं से कुंद किया जाये.
अमित शाह ने इसे व्यक्तिगत लड़ाई बना लिया है और घर-घर जाकर व नुक्कड़ सभाएं कर आप के अपूर्ण वादों पर मजबूत हमला कर रहे हैं.
भाजपा के प्रचार का तरीका हमेशा अलग होता है.
प्रकाश जावड़ेकर ने टिप्पणी कर दी कि अरविंद केजरीवाल आतंकवादी हैं. बहरहाल, दिल्ली को किसी भी नजरिये से देखें, आप कम सीटों के साथ जीत की ओर अग्रसर है. भाजपा ने उसे कड़ी टक्कर दी है. इन दोनों के बीच कांग्रेस पिस कर मृतप्राय संगठन बन गयी है. वह चुनाव नहीं लड़ रही है, मानो उसने हार से समझौता कर लिया है. इसका श्रेय शीला दीक्षित के निधन के बाद तीन गांधियों के निर्णय को जाता है.
(यह लेखक का निजी विचार है)