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बढ़ती जा रही है कैंसर की चुनौती

डॉ बालकृष्ण चौबे येल विश्वविद्यालय, अमेरिका balkrishna.chaube@yale.edu विश्व कैंसर दिवस से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके साथ काम करने वाली ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ ने दो रिपोर्टें जारी की. विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट में 10 भारतीयों में से एक को अपने जीवनकाल में कैंसर होने और 15 में से एक […]

डॉ बालकृष्ण चौबे
येल विश्वविद्यालय, अमेरिका
balkrishna.chaube@yale.edu
विश्व कैंसर दिवस से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके साथ काम करने वाली ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ ने दो रिपोर्टें जारी की. विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिपोर्ट में 10 भारतीयों में से एक को अपने जीवनकाल में कैंसर होने और 15 में से एक की इस बीमारी से मौत होने की आशंका जतायी गई है. रिपोर्ट के अनुसार 2018 में भारत में कैंसर के 11.6 लाख नये मामले सामने आये थे.
दुनियाभर में कैंसर एक गंभीर और चिंताजनक बीमारी है. शरीर में उत्पन्न यह असामान्य विकार बहुत तेजी से बढ़ता है, जिससे प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावित होने लगता है. कैंसर की पहचान करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है.
कुछ शोध से स्पष्ट हुआ है कि लगभग सभी प्रकार के कैंसर के लक्षण में कुछ समानता होती है. इससे एक उम्मीद बनती है कि भविष्य में हम ठोस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं. इसमें कुछ निश्चित हॉलमार्क होते हैं, जिससे इसकी पहचान की जाती है. यह हमें आशा देता है कि अगर हॉलमार्क को निशाना बनाया जाये, तो कैंसर को रोका और इलाज किया जा सकता है. विगत वर्षों में शोध में बताया गया है कि अगर प्रतिरक्षा तंत्र को फिर से एक्टिवेट कर दिया जाये, तो कैंसर को बहुत हद नियंत्रित किया जा सकता है और कुछ हद तक इलाज भी संभव है. इस खोज के लिए 2018 में मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था.
सवाल है कि कैंसर क्या होता है. इसके लिए हमें इलाज से पहले बचाव के बारे में जानना जरूरी है. हमारे देशमें इसका इलाज बहुत महंगा है.
अगर शुरुआती चरण में इसकी पहचान हो जाती है, तो इलाज की कोशिश की जा सकती है, जो बहुत महंगी प्रक्रिया है. सीटी स्कैन से प्रारंभिक जानकारी इकट्ठा की जाती है और फिर लक्षण को परखा जाता है. अगली प्रक्रिया में बायोप्सी की जाती है. सीरम बायो मार्कर, टिश्यू एक्सप्रेशन मार्कर या मॉलिकुलर मॉर्कर द्वारा इसे कन्फर्म किया जाता है. प्रोटीन और जीन एक्प्रेशन के आधार पर जानकारी इकट्ठा की जाती है.
भारत में कैंसर की समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल, 2019 के आंकड़े दर्शाते हैं कि साल 2017 से 2018 के बीच कैंसर के मामलों में 300 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी हुई है. प्रति एक लाख पर कैंसर रोगियों की संख्या 258 पहुंच चुकी है, जो 2016 में 106 थी. ब्रेस्ट, सर्वाइकल और मुंह के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं.
इसकी दो प्रमुख वजहें हैं- हमारी जीवनशैली और खानपान की बदलती आदतें. भारत में बहुत से लोगों की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है. दूसरी समस्या बढ़ते मोटापे की है. पिछले दशक की तुलना में मोटापाग्रस्त लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है. मोटापे की वजह से ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है.
इससे ब्रेस्ट और पेट के कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है. इस बीमारी का एक बड़ा कारण है- प्रदूषण. इससे फेफड़े के कैंसर का डर बना रहता है. निकोटिन की वजह से गले और मुंह के कैंसर होने की आशंका रहती है. व्यायाम या शारीरिक श्रम नहीं करने की वजह से बीएमआर (बेसल मेटाबॉलिक रेट) धीमा हो जाता है.
इससे हमारा उपापचय प्रभावित होता है और बड़ी मात्रा में रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पेसीज बनती है. यही कैंसर का कारण बन सकती है. प्रदूषण से हमारा प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावित होता है. हमें एंटीऑक्सीडेंट रिच खान-पान पर जोर देना चाहिए. इससे हैवी मेटल की वजह से बननेवाली रिएक्टिव ऑक्सीजन को रोका जा सकता है.
व्यस्त जीवनशैली में लोग डिब्बाबंद या प्रसंस्करित खाद्य सामग्री का इस्तेमाल करने लगे हैं, यह बीमारी को खुली दावत देने जैसा है. बाजार में उपलब्ध पैकेज्ड खाद्य सामग्री में कुछ ऐसे रसायन पाये जाते हैं, जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक हैं. बीएमआर कम होने से कई बीमारियों के लक्षण उभरते हैं, जैसे हृदय संबंधी बीमारियां, कैंसर आदि. ताजे फल-सब्जी को खान-पान में शामिल करना चाहिए. शुरुआत में कुछ गंभीर बीमारियों की पहचान नहीं हो पाती है. इसके लिए समय-समय पर चेक-अप कराते रहना चाहिए. कुछ लक्षण जरूर होते हैं, जिसके उभरने पर चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए.
बहुत दिनों तक कफ बनने पर फेफड़ों से जुड़ी समस्या हो सकती है, इसे नजरअंदाज न करें. बहुत जल्दी-जल्दी थकान महसूस हो रही है या वजन गिर रहा है, तो चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए. अगर कफ या मूत्र में खून आ रहा है, तो बिना इंतजार किये डॉक्टर से मिलना चाहिए. भारत में कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इसे छोटे शहरों और दूर-दराज गांवों तक पहुंचाने की जरूरत है. गांवों में बहुत से लोग समस्या को छिपाते रहते हैं और जब डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, तो बहुत देर हो चुकी होती है.
ऐसे लोगों को सामुदायिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से कैंसर आदि बीमारियों और उसके लक्षणों के बारे में जागरूक करना चाहिए. हमारे देश में महिलाओं से जुड़ी कई तरह की समस्याएं हैं. ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में जरूरी है कि उन्हें साफ-सफाई के महत्व को बताया जाये. स्वच्छता मुहिम को तेज करना चाहिए. तंबाकू और शराब सेवन पर सरकार को यथासंभव रोक लगानी चाहिए, यह बीमारी की बड़ी वजह है. अत्यधिक शराब सेवन से लिवर प्रभावित होता है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.
शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए योग जरूरी है. इससे बीएमआर को व्यवस्थित रखने में मदद मिलती है. हम जितना कम कैलोरी लेंगे, उपापचय प्रक्रिया बेहतर होगी और कैंसर होने का खतरा कम रहेगा. कुछ अंतराल पर उपवास करने से शरीर को तरोताजा होने में मदद मिलती है. हमारे लैब के एक रिसर्च में निष्कर्ष निकाला गया है कि कैलोरी कम करने से न केवल प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ती है, बल्कि इलाज के दौरान रिकवरी में भी मदद मिलती है.
फैट या कॉर्बोहाइड्रेट का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए. ट्यूमर के मरीजों को शुगर कम से कम देना चाहिए. इससे जल्दी रिकवरी होती है. सुक्रोज की बजाय कॉम्प्लेक्स शुगर के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए. फाइबर रिच और होल ग्रेन खानपान को बढ़ावा देने से देश की बड़ी आबादी को बीमारियों से बचाया जा सकता है.

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