जरूरी स्पष्टीकरण
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक बार फिर सरकार की ओर से स्पष्ट किया है कि देशभर में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) बनाने के बारे में अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है. इसके साथ ही यह भी जानकारी दी गयी है कि राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) को अद्यतन बनाने की प्रक्रिया […]
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक बार फिर सरकार की ओर से स्पष्ट किया है कि देशभर में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) बनाने के बारे में अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है. इसके साथ ही यह भी जानकारी दी गयी है कि राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) को अद्यतन बनाने की प्रक्रिया में लोगों से कोई भी दस्तावेज नहीं लिया जायेगा और आधार संख्या देना भी स्वैच्छिक होगा. इस संबंध में चिंताओं के निवारण के लिए राज्यों से भी चर्चा हो रही है.
संसद द्वारा नागरिकता संशोधन कानून पर मुहर लगाने के बाद से ही देश के विभिन्न इलाकों में इस कानून, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में आंदोलन चल रहे हैं. इन आंदोलनों के शुरुआती चरण में अनेक जगहों पर हिंसा की घटनाएं भी हो चुकी हैं, जिनमें कई जानें जा चुकी हैं. सरकार की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पहले भी कह चुके हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी लाने पर अभी कोई विचार नहीं किया गया है. सरकार की ओर से पहले के बयानों, असम में एनआरसी के नतीजे और नागरिकता संशोधन से जुड़े विवादों के कारण यह पूरा मुद्दा कई तरह के विरोधाभासों से घिर गया है. आंदोलनों के नहीं थमने की एक वजह यह भी है.
असम में लगभग 19 लाख लोग एनआरसी की सूची से बाहर हैं और इन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए विशेष ट्रिब्यूनल के सामने जाना होगा. ऐसे लोगों के लिए बने अस्थायी केंद्रों को लेकर भी अलग-अलग खबरें आती रही हैं. संशोधन अधिनियम में तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के प्रावधान से आंदोलनकारियों को यह आशंका है कि इन तीन प्रक्रियाओं से बड़ी संख्या में लोगों की नागरिकता खतरे में पड़ सकती है.
यह चिंता वैसे लोगों को लेकर भी जतायी जा रही है, जिनके पास समुचित दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं. ऐसी शंकाओं के जड़ पकड़ने का एक कारण यह भी है कि सरकार और विरोधियों के बीच समुचित संवाद का अभाव रहा है. कुछ दिन पहले सरकार की ओर से संकेत दिया गया है कि बातचीत की शुरुआत जल्दी हो सकती है. स्पष्टीकरण के साथ यह रुख भी सराहनीय है. अप्रैल में जनगणना की प्रक्रिया भी प्रारंभ हो रही है और इसी के साथ एनपीआर को भी अद्यतन किया जाना है. भ्रम और आशंका के माहौल में इन बहुत बड़ी प्रक्रियाओं को ठीक से पूरा कर पाना मुश्किल हो सकता है. कई समूहों और आंदोलनों की तरफ से एनपीआर के बहिष्कार की घोषणा हो चुकी है.
अनेक राज्य सरकारें भी कह चुकी हैं कि वे इसमें सहयोग नहीं करेंगी. बिना राज्य सरकार की सहभागिता के भी जनगणना और एनपीआर करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है. ऐसे में सरकार के हालिया बयानों का महत्व बढ़ जाता है. जरूरत इस बात की है कि केंद्र सरकार सभी संबद्ध सरकारी व गैर-सरकारी पक्षों के साथ बातचीत को आगे बढ़ाये ताकि चिंताओं को दूर कर भरोसे का माहौल बने.