जरूरी कानूनी पहल
सहकारी बैंकों के प्रबंधन को दुरुस्त करने और घपलों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने बैंक नियमन कानून में असरदार संशोधन का निर्णय किया है. कैबिनेट द्वारा मंजूर प्रावधानों में सहकारी बैंकों पर रिजर्व बैंक को नियंत्रण के अधिक अधिकार देने का प्रस्ताव है, ताकि भ्रष्टाचार को रोका जा सके और ऐसे बैंकों का […]
सहकारी बैंकों के प्रबंधन को दुरुस्त करने और घपलों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने बैंक नियमन कानून में असरदार संशोधन का निर्णय किया है. कैबिनेट द्वारा मंजूर प्रावधानों में सहकारी बैंकों पर रिजर्व बैंक को नियंत्रण के अधिक अधिकार देने का प्रस्ताव है, ताकि भ्रष्टाचार को रोका जा सके और ऐसे बैंकों का समुचित संचालन सुनिश्चित किया जा सके. रिजर्व बैंक के अनुसार, बीते पांच वित्त वर्षों में शहरी सहकारी बैंकों में करीब एक हजार धोखाधड़ी के मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें 220 करोड़ से अधिक राशि का नुकसान हो चुका है.
प्रस्तावित संशोधन शहरी और अनेक राज्यों में सक्रिय सहकारी बैंकों पर लागू होंगे. देश के 1540 सहकारी बैंकों में साढ़े आठ करोड़ से अधिक खाताधारक हैं, जिनके लगभग पांच लाख करोड़ रुपये जमा हैं. सरकार का कहना है कि इस कदम से इस राशि को सुरक्षा हो सकेगी. कुछ समय पहले पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी बैंक घपले की वजह से डूबने के कगार पर पहुंच गया था. इस बैंक ने मनमानी से कर्ज बांटा था और इसके बारे में सही जानकारी नहीं दी थी.
ऐसे में रिजर्व बैंक को उसका नियंत्रण अपने हाथ में लेना पड़ा था. बैंक के डूबने से खाताधारकों का चिंतित होना स्वाभाविक था. निकासी की सीमा तय करने से भी उन्हें बड़ी परेशानी हुई थी, जो अब भी कमोबेश जारी है. इस तरह के कुछ और मामले भी सामने आते रहे हैं.
ऐसी स्थिति में समूचे सहकारी क्षेत्र में भरोसे का संकट भी पैदा हो गया था. सीमित अधिकारों के कारण रिजर्व बैंक के लिए भी ठोस पहल करना आसान नहीं है. पर सरकार के प्रस्तावों पर संसद की मुहर लगने के बाद हालात की बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है.
बैंकिंग व्यवस्था आर्थिकी का आधारभूत स्तंभ है. उसमें होनेवाली गड़बड़ियां पूरी अर्थव्यवस्था पर असर डालती हैं. बैंकिंग सेक्टर में सहकारी बैंकों का महत्वपूर्ण स्थान है तथा आर्थिक व वित्तीय गतिविधियों के विकेंद्रीकरण और स्थानीयकरण करने में इनका अहम योगदान होता है.
भ्रष्टाचार तथा बिना जांचे-परखे कर्ज देने की वजह से समूचा सेक्टर फंसे हुए कर्ज तथा धोखाधड़ी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. सरकार द्वारा किये गये सुधारों तथा रिजर्व बैंक के कड़े रुख से स्थिति में बहुत सुधार हुआ है, परंतु अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. संशोधनों के बाद रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार बैंकों का लेखा-जोखा होगा तथा प्रबंधन में लोगों को रखने के लिए निर्धारित योग्यताओं में भी बदलाव होगा.
व्यावसायिक बैंकों के प्रमुखों की नियुक्ति से पहले रिजर्व बैंक की अनुमति जरूरी होती है. यह नियम अब सहकारी बैंकों पर भी लागू हो सकेगा. यदि कोई बैंक संकट में फंसेगा, तो रिजर्व बैंक राज्य सरकार से सलाह कर उसके बोर्ड के फैसलों को भी बदल सकेगा. कुछ ही दिन में वित्त मंत्रालय की ओर से संशोधनों को संसद में पेश किया जा सकता है. उम्मीद है कि ये प्रावधान जल्दी ही कानून का हिस्सा बनकर लागू होंगे तथा सहकारी बैंकों को अधिक भरोसेमंद बनाया जा सकेगा.