13 फरवरी विश्व रेडियो दिवस : स्मार्टफोन से रेडियो को नया जीवन

सुनील बादल sunilbadal@gmail.com साल 2012 में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में प्रमुख रेडियो प्रसारकों, स्थानीय रेडियो स्टेशनों और दुनियाभर के श्रोताओं को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने पहली बार व्यापक पहल की थी. रंगीन टेलीविजन के डीटीएच संस्करण के बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 13, 2020 6:52 AM
सुनील बादल
sunilbadal@gmail.com
साल 2012 में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में प्रमुख रेडियो प्रसारकों, स्थानीय रेडियो स्टेशनों और दुनियाभर के श्रोताओं को एक मंच पर लाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने पहली बार व्यापक पहल की थी.
रंगीन टेलीविजन के डीटीएच संस्करण के बाद यूट्यूब और ऑनलाइन वेबसाइट की भीड़ में सबसे ज्यादा खतरा रेडियो को है. बीबीसी ने 31 जनवरी, 2020 से अपना शॉर्ट वेव रेडियो प्रसारण बंद कर दिया है, पर कभी बड़े वॉल्व वाला रेडियो आज डिजिटल बन गया है. पर, इसे असल में स्मार्टफोन ने जीवनदान दिया है. विश्व के सबसे बड़े प्रसारण तंत्र आकाशवाणी ने भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम के बाद से बड़े बदलाव के तहत डिजिटल प्रसारण से लेकर न्यूज ऑन एआइआर एप से ज्यादातर स्टेशनों को जोड़कर इसकी पहुंच ग्लोबल स्तर की कर दी है.
महानगरों के वाहनों से लेकर सड़कों के ट्रकों और खेत में चलते ट्रैक्टरों तक तथा दुकानों-कारखानों में काम कर रहे करोड़ों लोगों के साथ बड़ी संख्या बुजुर्गों, दृष्टिबाधितों और घरों में व्यस्त महिलाओं की भी है, जिनके लिए रेडियो जीवन रेखा की तरह है. डॉक्टर स्वामीनाथन के रेडियो राइस, पल्स पोलियो, चेचक, टीबी से लेकर स्वच्छ भारत अभियान तक की सफलता रेडियो के बिना संभव नहीं थी. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बान की मून ने एक बार कहा था कि बाढ़ या प्राकृतिक आपदा के समय रेडियो की भूमिका बेहद अहम है.
कभी पोस्टकार्ड से की गयी फरमाइश झुमरी तलैया से लेकर भाटापारा और कितनी ही ऐसे छोटी जगहों और अनजान लोगों को देश-विदेश में मशहूर कर देती थी.
टीवी और इंटरनेट की चमक के साथ फीके होते रेडियो से जुड़े ऐसे हजारों दीवाने श्रोताओं के बीच भी सबसे सस्ते मनोरंजन और प्रसिद्धि का दौर अब थम गया है, पर अब भाग-दौड़ की जीवन-शैली ने टीवी से जुड़ाव को भी कम कर दिया है. इसका स्थान एफएम और इसके इंटरनेट संस्करण ने लेना शुरू कर दिया है. अब फरमाइश भी एसएमएस, व्हॉट्सएप और इमेल से हो रही है.
हम हैं रेडियो के दीवाने, रेडियो दोस्त रांची, देशप्रेमी रेडियो, भारतीय श्रोता ग्रुप, ओल्ड रेडियो लिस्नर्स ग्रुप और जाने कितने स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रोताओं के व्हॉट्सएप ग्रुप ने छोटे शहरों से लेकर विदेशों में बसे रेडियो प्रेमियों को जोड़ रखा है.
इनमें से बहुत से ऐसे हैं, जो प्रवासी भारतीय हैं या रोजगार के सिलसिले में विदेशों में रह रहे हैं, परदेश में भी अपने गांव, कस्बे या शहर की मिट्टी की खुशबू उन फरमाइशी गीतों के साथ अपने नाम के ऑडियो क्लिप में महसूस करते हैं, जो उन्हें भारत से भेजे जाते हैं. ऐसे ही एक हैं कांटाटोली रांची निवासी मोहम्मद कुतुबुद्दीन जो फिलहाल दुबई में रहते हैं और रांची के ‘हेलो सुनिए’ कार्यक्रम से लेकर कई आकाशवाणी केंद्रों को सुनते हैं.
बरकाकाना को राष्ट्रीय ख्याति दिलानेवाले रेडियो श्रोताओं के एक राष्ट्रीय ग्रुप- ओल्ड लिस्नर्स ग्रुप- से जुड़े डॉक्टर अफजाल मलिक ने देश के अनेक भागों की यात्रा कर श्रोताओं का राष्ट्रीय नेटवर्क बनाया है. वे अपने संस्मरण बताते हैं- ‘उस जमाने में श्रोताओं का अपना-अपना श्रोता क्लब हुआ करता था.
महेंद्र मोदी ने मुंबई के मीरा रोड में 2005 में अखिल भारतीय स्तर पर ओल्ड लिस्नर्स ग्रुप की स्थापना की. यह ग्रुप झारखंड सरकार द्वारा पंजीकृत है तथा इसकी त्रैमासिक पत्रिका- लिस्नर्स बुलेटिन- का वितरण श्रोताओं और आकाशवाणी उद्घोषकों के बीच नि:शुल्क किया जाता है. हर साल 20 अगस्त को श्रोता दिवस देश के कोने-कोने में मनाया जाता है.
रेडियो दोस्त के नाम से एक राष्ट्रीय स्तर का व्हॉट्सएप ग्रुप चलानेवाले नटवार के एसएन दूबे, बड़कागांव हजारीबाग के 77 वर्षीय बाबूलाल ठाकुर, खरसावां के सुकरा नायक, बड़ा बांबो के सुपाई साईं, चक्रधरपुर के देवेंद्र तांती, टावर चौक गुमला के एसएम जावेद, जमशेदपुर के नवनीत भाटिया, स्वांग कोलियरी बोकारो के रामचंद्र रवानी, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के निखिल कुमार, बिहारी कॉलोनी दिल्ली के तुलसी मस्कीन, देशप्रेमी रेडियो श्रोता समूह (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों में सक्रिय), भारतीय श्रोता ग्रुप, हम हैं रेडियो के दीवाने जैसे अनेक ग्रुप स्थानीय केंद्रों के कार्यक्रम सुनने के लिए अनेक रेडियो सेट रखते हैं और एक-दूसरे को ग्रुप के माध्यम से जानकारी देते हैं कि भाटापारा, रायपुर या अन्य शहरों के श्रोताओं के नाम शामिल हो गये. अक्सर व्हॉट्सएप से रिकॉर्डिंग भी भेजी जाती है. इस तरह भौगोलिक दूरियां बेमानी हो गयी हैं. भारत में ओल्ड लिस्नर्स ग्रुप ने मुंबई में 2006 में महेंद्र मोदी की पहल पर रेडियो श्रोता दिवस मनाया था, पर पारंपरिक रूप से रेडियो श्रोता दिवस मनाना शुरू करने का श्रेय छत्तीसगढ़ को जाता है.
इस नये राज्य में भारत में 20 अगस्त, 1921 को हुए प्रथम रेडियो प्रसारण की याद में हर साल श्रोताओं के विभिन्न संगठनों और रेडियो कल्याण समिति द्वारा विश्व रेडियो श्रोता दिवस का आयोजन किया जाता रहा है. इस वर्ष भुवनेश्वर में विश्व श्रोता दिवस के अवसर पर 13 और 14 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय रेडियो मेला 2020 आयोजित किया जा रहा है, जिसमें रेडियो प्रसारण के इतिहास, उपकरणों और अन्य ऐतिहासिक साक्ष्यों को प्रदर्शित किया जायेगा.
(लेखक ऑल इंडिया रेिडयो से संबद्ध हैं)

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