सभी को स्वास्थ्य बीमा

गरीब तबके को अच्छे इलाज की सुविधा मुहैया कराने के इरादे से संचालित आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के दायरे में देश की आबादी का 40 फीसदी हिस्सा है. इसमें निर्धारित दरों के 1578 पैकेज हैं तथा पांच लाख रुपये की इस बीमा से 21 हजार से अधिक अस्पतालों में उपचार कराया जा सकता है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 14, 2020 6:51 AM

गरीब तबके को अच्छे इलाज की सुविधा मुहैया कराने के इरादे से संचालित आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के दायरे में देश की आबादी का 40 फीसदी हिस्सा है. इसमें निर्धारित दरों के 1578 पैकेज हैं तथा पांच लाख रुपये की इस बीमा से 21 हजार से अधिक अस्पतालों में उपचार कराया जा सकता है. स्वास्थ्य सेवाओं का व्यापक विस्तार केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में है तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कई तरह की पहलों और कार्यक्रमों की शुरुआत की गयी है.

इन प्रयासों के बावजूद अब भी हमारा देश उन देशों में है, जहां स्वास्थ्य के मद में सकल घरेलू उत्पादन के अनुपात में सबसे कम खर्च किया जाता है, जो सवा एक फीसदी के आसपास है. सरकार ने 2025 तक इसे 2.5 फीसदी तक करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी तय किया है. ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों के अभाव या उनमें समुचित संसाधनों की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोगों का ठीक से इलाज नहीं हो पाता है. इस वजह से वैसी बीमारियों से भी बहुत लोग मौत के शिकार हो जाते हैं, जिनका निदान उपलब्ध है. एक बड़ी मुश्किल अस्पतालों में महंगे इलाज की भी है.

एक आकलन के मुताबिक, कैंसर के उपचार में एक औसत भारतीय परिवार की सालाना आमदनी से अधिक खर्च होता है. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लचर होने से अन्य रोगों के इलाज में भी अधिकांश हिस्सा लोगों को अपनी जेब से देना पड़ता है. इस कारण लाखों की तादाद में हर साल लोग गरीबी रेखा से नीचे जाने के लिए भी अभिशप्त होते हैं. आयुष्मान भारत के बीमा कवच से करोड़ों लोगों को राहत मिली है, पर अब भी एक बड़े हिस्से को ऐसी योजना की जरूरत है.

नीति आयोग इस तरह की एक व्यवस्था की रूप-रेखा तैयार कर रही है, जिसके तहत वैसे लोगों को भी बीमा की सुविधा मिल सकेगी, जो आयुष्मान भारत के दायरे से बाहर हैं. कुछ दिन पहले जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आयोग ने जानकारी दी है कि नेशनल सैंपल सर्वे के 71वें चरण के मुताबिक, देश के 80 फीसदी भारतीयों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं हैं. शहरी आबादी में सिर्फ 18 फीसदी बीमाधारक हैं, जिनमें से 12 फीसदी के बीमा का वित्तपोषण सरकार द्वारा किया जाता है. ग्रामीण आबादी के 14 फीसदी भाग के पास बीमा है, जिनमें से 13 फीसदी का कोष सरकार देती है. ये आंकड़े आयुष्मान भारत के अंतर्गत बीमा सुविधाप्राप्त 50 करोड़ लोगों की संख्या से अलग हैं.

नीति आयोग द्वारा तैयार की जा रही योजना का उद्देश्य शेष जनसंख्या को बीमा सुरक्षा प्रदान करना है. इनमें वैसे लोगों को लक्षित किया गया है, जो गरीब नहीं हैं, लेकिन उनके पास आर्थिक सामर्थ्य कम है और गंभीर बीमारी की स्थिति में उन्हें मदद की दरकार होती है. उम्मीद है कि आयोग द्वारा तैयार योजना को जल्दी ही सरकार की मंजूरी मिल जायेगी तथा सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा हमारे देश में एक वास्तविकता बन जायेगी.

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