साहित्य के प्रति अनुराग होना ही चाहिए. साहित्य की समझ और उसके शब्दों के भावों को सही तरीके से समझा जाए, तो एक साहित्यकार की रचना साकार होकर मन को तो छूती है. साथ ही साहित्य हमें एक-दूसरे से जोड़ता भी है. साहित्य की विधा में स्तरीय रचनाओं का अनुसरण हम शिक्षा के पाठ्यक्रमों में करते ही आये हैं. मेरी अपील है कि साहित्यिक किताबों को रद्दी में न बेच कर उन्हें वाचनालयों, विद्यालयों, महाविद्यालयों, साहित्यिक संस्थाओं या फिर परिचितों को भेंट करना चाहिए, ताकि साहित्य के उपासकों के श्रम को सार्थकता व सच्चा सम्मान मिल सके तथा साहित्यिक कृतियों को समाज के बड़े वर्ग तक पहुंचाने में मदद मिल सके.
– संजय वर्मा ‘दॄष्टि ‘ धार, मध्य प्रदेश